मंदिर का बजता लाउडस्पीकर, एक मजहब की इबादत में
खलल पैदा करता समझ में आया परिणामतः संघर्ष की, तनाव की, टकराव की, तुष्टिकरण की,
वैमनष्यता की राजनीति सामने आई. देखा जाये तो ये महज लाउडस्पीकर हटाने की घटना
नहीं है, देखा जाए तो ये एक सम्प्रदाय विशेष के प्रति भेदभाव अथवा सहानुभूति जताने
की घटना नहीं है वरन इससे प्रदेश के सत्ताधारी दल की हताशा प्रदर्शित होती है. समूचे
घटनाक्रम के पार्श्व में अयोध्या मुद्दे पर दो-तीन साल पहले आये अदालत के आदेश,
फिर वर्तमान में लोकसभा चुनावों के परिणामों की आहट देखी-महसूस की जा सकती है. समाजवादी
पार्टी द्वारा शुरूआती दौर से ही मुसलमानों का हितैषी दिखने-बनने की कोशिश की जाती
रही है. इस कारण से उसके द्वारा सदैव अयोध्या मुद्दे को, बाबरी ढाँचे विवाद को हवा
दी जाती रही है. कुछ समय पूर्व अयोध्या मामले में माननीय उच्च न्यायालय के आये
फैसले के बाद से समाजवादी पार्टी के पास मुसलमानों को बहलाने-फुसलाने का कोई
मुद्दा नहीं बचा था. गुजरात, इशरत जहाँ, सोहराबुद्दीन, मोदी, भाजपा, हिंदुत्व जैसे
बिन्दुओं के सहारे मुसलमानों को भयभीत करने का काम लगातार चलता रहा. इसको वर्तमान
लोकसभा चुनावों में पुरजोर तरीके से उछाला भी गया; मुस्लिमों में भाजपा का, मोदी
का, हिंदुत्व का डर पैदा कर उन्हें समाजवादी पार्टी के पक्ष में लामबंद करने का
भरपूर प्रयास किया गया किन्तु चुनाव परिणामों ने सब कुछ धोकर रख दिया.
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मुस्लिम वोट-बैंक के सहारे लोकसभा चुनाव में पार
लगने के अलावा प्रधानमंत्री बनने का सपना चकनाचूर होना तथा इस बात का भ्रम टूटना
कि मुस्लिम वोटों के वगैर कोई दल सत्ता हासिल नहीं कर सकता समाजवादी पार्टी को
कहीं बहुत पीछे धकेलता है. ऐसे में किसी न किसी रूप में उसे मुस्लिम प्रेम
प्रदर्शित करने का एक छोटे से छोटा अवसर ही चाहिए था. पाक रमजान का अवसर ऐसे नापाक
इरादों के लिए मुफीद समझ आया और लगभग ८० प्रतिशत की आबादी वाले स्थान पर भी राजनैतिक
दृष्टि से घोषित किये जा रहे अल्पसंख्यक वर्ग की भावनाओं के आहत होने को कथित तौर
पर प्रमुखता देकर हिन्दुओं की भावनाओं को ही आहत नहीं किया गया वरन इंसानियत को भी
चोट पहुंचाई गई. समझने की बात है कि क्या सम्बंधित क्षेत्र में इससे पहले मंदिर
में लाउडस्पीकर नहीं बजता था? समझना इस बात को भी है कि क्या इससे पहले मुस्लिम
समाज अपनी भावनाओं की लगातार आहत होते देखता रहता था? समझने की बात ये भी है कि
भावनाओं के आहत होने के बाद जब लाउडस्पीकर हटा लिया गया तो क्या मुस्लिम समाज ने
अपनी इबादत के समय हिन्दू भावनाओं का ख्याल रखा?
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इस बात से कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि ये
देश सभी का है और सभी धर्मों का यहाँ समान रूप से आदर होना चाहिए किन्तु जिस तरह
से मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर इस देश में, इस प्रदेश में जो होता है क्या वो सही
है? महज वोट-बैंक की राजनीति के चलते हिन्दुओं को दोयम दर्जे का बना देना,
मुस्लिम-प्रेम को दर्शाने के लिए सरकारी मशीनरी के द्वारा हिन्दुओं पर अत्याचार
करवाना, हिन्दुओं के मंदिर से लाउडस्पीकर उतरवाना और मुस्लिमों को लाउडस्पीकर की
अनुमति रहना, हिन्दू महिलाओं को मंदिर में कीर्तन करने से रोकना और मुस्लिमों को
सड़क पर, रेलवे स्टेशन पर नमाज की अनुमति मिलना कहाँ से प्रासंगिक दीखता है? वर्तमान
सन्दर्भ से इतर न जाते हुए प्रदेश की समाजवादी पार्टी को समझना होगा कि चुनावों
में मुस्लिम वोट-बैंक का मिथक टूटा है, मुस्लिमों ने उनके कुनबे को ही जिताने में
मदद की है. आज समाजवादी पार्टी की तरफ से सारी कवायद भले ही मुस्लिम वोटों को पाने
की लालसा में की जा रही है किन्तु ऐसा ही चलता रहा तो आगामी विधानसभा चुनाव में
लोकसभा चुनाव परिणाम की पुनरावृत्ति होगी. आखिर हिन्दू समाज कब तक घुट-घुट कर,
पिट-पिट कर जीता रहेगा. आज नहीं तो कल वो स्वाभिमान के लिए जागेगा, अपने धर्म के
लिए जागेगा, अपने आराध्यों के लिए जागेगा, अपनी संस्कृति के लिए जागेगा तब उस
क़यामत को रोक पाना किसी के वश में नहीं होगा. भावी इंसानियत के लिए, समाज के लिए,
सभ्यता के लिए समाजवादी पार्टी को, मुस्लिम समाज को, मुस्लिम समाज के हितैषियों
को, हिन्दू विरोधियों को जागने की, समझने की, चेतने की जरूरत है.
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