27 सितंबर 2013

एक गलत क्लिक और बन गए साइबर अपराधी





तकनीक से संपन्न वर्तमान दौर में कम्प्यूटर और इंटरनेट के माध्यम से काम करना बहुत आसान हुआ है। इस विकास ने एक तरफ इन्सान को सुविधा-संपन्न बनाया है वहीं कुछ समस्याओं को भी जन्म दिया है। सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के साथ-साथ उसके दुरुपयोग से साइबर अपराधों में वृद्धि से इनकार नहीं किया जा सकता है। कम्प्यूटर और इंटरनेट के विकास ने सूचना व प्रौद्योगिकी के क्षेत्र भी अपराधियों का प्रवेश करा दिया है। कमरे बैठा व्यक्ति एक माउस लेकर व्यापक नुकसान पहुँचा सकता है। तकनीकी क्षमता से संपन्न इस दौर में अपराधियों ने अपराध करने का नया तरीका साइबर माध्यम को बनाया है। सामान्य भाषा में इंटरनेट के ज़रिए किए जाने वाले अपराधों को साइबर क्राइम कहा जा सकता है। कम्प्यूटर, इंटरनेट के माध्यम से वित्तीय धोखाधड़ी, बैंक खाते की जानकारी लेकर उससे पैसा चुराना, हैकिंग, अश्लीलता का प्रसार-संप्रेषण, वायरस का फैलाव, सॉफ़्टवेयर की चोरी, दोषपूर्ण सॉफ़्टवेयर भेजकर कम्प्यूटर को दूषित करना, किसी अन्य कम्प्यूटर नेटवर्क पर हमला, पोर्नोग्राफी को बढ़ावा, आंतरिक सूचनाओं और बौद्धिक संपदा की चोरी आदि को इससे जोड़ा जाता है। हैकिंग, चाइल्ड पोर्नोग्राफी, साइबर स्टॉकिंग वायरस आक्रमण, सॉफ्टवेयर पायरेसी, क्रेडिटकार्ड धोखाधड़ी, नेट एक्सटोर्शन, फिशिंग आदि इसी अपराध के रूप हैं
.
साइबर अपराधों के अतिरिक्त कुछ और दूसरे रूपों से अपराधी अपने कार्यों को अंजाम देते हैं। इसमें किसी मशहूर ब्रांड, कंपनी, संगठन, इंसान आदि के नाम से जुड़ा डोमेन नेम अनाधिकृत रूप से अपने नाम से बुक करवा लेना; अपने ब्लॉग, वेबसाइट, सोशल नेटवर्किंग या दूसरे इंटरनेट ठिकाने पर किसी के बारे में अपमानजनक या अश्लील टिप्पणी करना; किसी ग्राहक द्वारा मुहैया कराए जाने वाले गोपनीय कारोबारी डेटा की कॉपी बनाकर अपने पास रखना; अपने ग्राहकों के लिए डोमेन नेम बुक कराते समय, वेब होस्टिंग स्पेस लेते और इंटरनेट सेवा मुहैया कराते समय उनका सबसे खास यूजरनेम और पासवर्ड अपने कब्जे में रख लेना, इसे क्रमशः साइबर स्क्वैटिंग, ऑनलाइन मानहानि, कारोबारी डेटा, वेबसाइट, डोमेन नेम पर कब्जा के नाम से जाना जाता है।
.
साइबर अपराध के रूप में सबसे महत्त्वपूर्ण और रोचक तथ्य ये है कि इंटरनेट का उपयोग करने वाले लगभग प्रत्येक व्यक्ति द्वारा कभी न कभी, कोई न कोई साइबर अपराध अवश्य किया गया होता है। आश्चर्यजनक ये है कि हममें से अधिकतर को ऐसे अपराध करने के बाद भी इसका अंदाजा तक नहीं होता है। इंटरनेट पर ऐसे तमाम काम हैं, जो साइबर क्राइम के तहत आते हैं। इनमें कॉपी-पेस्ट या सामग्री की चोरी करना चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना, किसी लोगो की चोरी करना वाई-फाई का दुरुपयोग, किसी दूसरे का अकाउंट खोलकर देखना, पायरेटेड सॉफ्टवेयर का उपयोग करना, गूगल पर फ्रॉड क्लिक करना आदि आता है  
.
भारत में तीन चौथाई इंटरनेट उपभोक्ता किसी न किसी तरह साइबर अपराध का शिकार होते हैं। सुरक्षा समाधान उपलब्ध कराने वाली फर्म सिमैन्टक ने बताया है कि वैश्विक स्तर पर लगभग 65 फीसदी इंटरनेट उपयोक्ता साइबर क्राइम के शिकार हैं, जबकि भारत में यह संख्या 76 प्रतिशत है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार देश में साइबर संबंधी अपराधों की घटनाओं में करीब 50 फीसदी की बढ़ोत्तरी हर साल हो रही है। इधर भारत सरकार ने स्वीकार किया कि देश में साइबर अपराध की घटनाएं बढ़ी हैं और 2009 से 2011 के दौरान विभिन्न कानून के तहत ऐसे 4231 मामले दर्ज किए गए हैं। ये अपराध कई बार जानबूझ कर किये जाते हैं तो कई बार उपभोक्ताओं की नासमझी के कारण ऐसे अपराध हो जाते हैं। यदि इंटरनेट का, कम्प्यूटर का उपभोक्ता सोच-समझकर इनका प्रयोग करे तो वह अनजाने में किये जा रहे साइबर अपराध से खुद को बचा सकता है। हमें समझना होगा कि इंटरनेट ने, कम्प्यूटर ने यदि एक क्लिक कर हमें समूचा ज्ञान देने की सुविधा दी है तो वही सुविधा एक गलत क्लिक पर हमें साइबर अपराधी बना सकता है।
.


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें