भारत
निर्माण के स्वप्न के बीच फाइलों का गायब हो जाना, अतिथि देवो भवः की संकल्पना के
साथ ही विदेशी महिला पर्यटकों के साथ बलात्कार की घटनाएँ, सबसे बड़े लोकतान्त्रिक
देश का दंभ और घनघोर अलोकतांत्रिक हरकतें, विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल
होने के आँकड़े और देश की अर्थव्यवस्था का ही धड़ाम सा होते दिखना, आतंकवाद को कड़े
से कड़ा सबक सिखाने की भभकी और देश का आतंकवाद में भभकना, पड़ोसी देशों के साथ
मैत्री बनाये रखने को बारम्बार शुरुआत फिर भी पड़ोसियों के हाथों पिटते रहने की
विवशता आदि को सिर्फ हम ही नहीं देख रहे हैं बल्कि सम्पूर्ण विश्व देख रहा है. इन
तमाम स्थितियों के अलावा और भी ऐसी स्थितियाँ हैं जो हमारे देश को शर्मसार करती
हैं. इन घटनाओं को रोकने के लिए, इनके समाधान के लिए सरकार, शासन, प्रशासन से सकारात्मक
कदम उठाये जाने के स्थान पर आपसी वाद-विवाद, तर्क-कुतर्क, आरोप-प्रत्यारोप आदि के
काम किया जा रहे हैं. जहाँ एक तरफ सत्ता पक्ष तानाशाह के रूप में काम कर रहा है
वहीं विपक्ष सिर्फ विरोध के लिए विरोध करने की नीति अपनाये हुए है.
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तमाम
सारी विसंगतियों को, अव्यवस्थाओं को सुधारने के स्थान पर, समस्याओं का कोई हल
निकालने के स्थान पर तिकड़मबाज़ी के दौर चलाये जा रहे हैं. बेतुके और ऊलजलूल बयान
दिए जा रहे हैं. ऐसा करते समय ये सब के सब यह भूल जाते हैं कि आज मीडिया, सोशल
मीडिया, विदेशी मीडिया, इंटरनेट आदि के कारण से एक पल में समूचा घटनाचक्र सम्पूर्ण
विश्व में प्रसारित-प्रचारित हो जाता है. ये अपने में दुखद है कि बजाय देश की
मान-मर्यादा को जानने-समझने के सबके सब अपनी-अपनी इज्जत, मान, सम्मान के लिए
उठापटक मचाने में लगे हैं. देश में अपराधी अपराध करते हैं तो तुष्टिकरण के नाम पर
उनको भी धर्म-जाति में बांटकर देखना शुरू कर दिया जाता है. पड़ोसी देश आतंकी हमला
करता है तो वहां भी वोट-बैंक की राजनीति दिखाई जाने लगती है. चीन सीमा में घुसपैठ
करता है तो भी शीर्षस्थ जन खामोश रहते हैं. महिलाओं-बच्चियों के साथ दुष्कर्म की
घटनाएँ होती रहती हैं और सरकार मात्र बिल बनाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती
है. नित नए घोटाले सामने आते रहते हैं और जांच के नाम पर महज खानापूरी होते दिखती
है. कभी कोई जांच या मामला तेजी पकड़ता दीखता है तो कभी कार्यालयों में आग लग जाती
है तो कभी फाइल की फाइल गायब हो जाती हैं, वो भी सैकड़ों की संख्या में.
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सत्ता
सुख के लालच में, धन-बल के मद में चूर शासनाधारियों को समझना चाहिए कि उनकी एक-एक
हरकत को पूरा विश्व देख रहा है. सम्पूर्ण विश्व में देश की साख जहाँ सामाजिक स्तर
पर कम हुई है वहां उसने आर्थिक क्षेत्र में भी नुकसान उठाया है. राजनीतिक रूप से
भी हम कमजोर साबित हुए हैं तो हमारी विदेशनीति, कूटनीति को भी जबरदस्त तरीके से
कमजोर साबित हुई है. आये दिन शीर्सस्थ लोगों द्वारा होती बेढंगी बयानबाज़ी न केवल
देश में अस्थिरता का, संघर्ष का वातावरण बना रही है वरन विदेश में भी तमाम
भारतीयों की छवि को धूमिल कर रही है. वर्तमान दौर तकनीकी का दौर है, इसे वो दौर न
समझा जाये जहाँ किसी भी खबर को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचने में महीनों लग जाया
करते थे. सूचना-संचार के इस क्रांतिकारी दौर में सम्पूर्ण परिदृश्य एक क्लिक पर
सामने आ जाता है. ऐसे में हमारे रणनीतिकार, सत्ताधारी, विपक्षी, राजनीतिज्ञ,
मीडिया, प्रशासन आदि की हवाई बयानबाज़ी, अनर्गल प्रलाप करने से इस देश की समस्याओं
का, विषमताओं का, अव्यवस्थाओं का समाधान होने वाला नहीं अपितु इससे देश की साख
सम्पूर्ण विश्व में बद से बदतर स्थिति में पहुँच जाएगी.
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