मनुष्य
के लिए पानी हमेशा से एक महत्वपूर्ण और जीवन-दायक पेय रहा है, ये बात हम सभी को अच्छी
तरह से ज्ञात है. इसके साथ ही इस बात से भी हम अनभिज्ञ नहीं हैं कि कि जल सभी के
जीवित रहने के लिए अनिवार्य है. ऐसा माना जाता है कि मनुष्य बिना भोजन के लगभग दो
माह तक जीवित रह सकता है किन्तु बिना पानी के एक सप्ताह भी जीवित रहना मुश्किल है.
इधर मानवीय क्रियाकलापों के कारण धरती लगातार पेयजल-विहीन होती जा रही है. जल-संकट
को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ की तरफ से विश्व भर में 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाने की शुरुआत की, जिसकी घोषणा वर्ष 1992
में रियो डि जेनेरियो में आयोजित पर्यावरण तथा विकास का संयुक्त
राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीईडी) में की गई. इसके अंतर्गत सर्वप्रथम
वर्ष 1993 में 22 मार्च के ही दिन सम्पूर्ण
विश्व में जल संरक्षण और रख-रखाव पर जागरुकता लाने का कार्य किया गया.
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संयुक्त
राष्ट्र द्वारा प्रत्येक वर्ष विश्व जल दिवस मनाने के लिए एक अलग थीम का निर्माण
किया गया है, इसी के चलते वर्ष 2013 को अंतर्राष्ट्रीय जल सहयोग वर्ष के रूप में मनाने
का निर्णय लिया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने जल सहयोग वर्ष के रूप में सबके लिए जल,
जल के सार्थक उपयोग तथा जल संरक्षण पर विशेष बल दिया है। देखा जाये
तो यह सहयोग शांतिपूर्ण एवं स्थाई विकास की नींव भी डालता है, गरीबी घटाने में कारगर हो सकता है, जल संसाधनों के
संरक्षण, पर्यावरण सुरक्षा एवं शान्ति को बढ़ावा देने में मददगार हो सकता है.
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पूरी
धरती के 70 प्रतिशत भाग में जल होने के बाद भी इसका कुल एक प्रतिशत ही मानवीय
आवश्यकताओं के लिये उपयोगी है. आज सभी को जल की उपलब्धता करवाना मुख्य मुद्दा है. आने
वाले समय में बिना जल-संरक्षण के ऐसा कर पाना कठिन कार्य होगा. इस दृष्टि से जल
संरक्षण भी एक बड़ा मुद्दा है. इसके अलावा शुद्ध पेयजल की आपूर्ति भी एक मुद्दा बना
हुआ है क्योंकि धरती के हर नौवें इंसान को ताजा तथा स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं है. इसके
चलते संक्रमण और अन्य बीमारियों से प्रतिवर्ष 35 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है. विकासशील
देशों में जल से उत्पन्न रोगों को कम करना स्वास्थ्य का एक प्रमुख लक्ष्य है.
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आज
हमारा देश ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व जल-संकट से जूझ रहा है. जल सहयोग के रूप
में प्रमुख कार्य पानी के बारे में जागरूकता बढाने और उसकी अहमियत की जानकारी लोगों
तक पहुंचाने का होना चाहिए. जल उपयोग में मितव्ययता बरतनी होगी और पानी की बर्बादी
को रोकना होगा. इसके अतिरिक्त वर्षा जल के संरक्षण के उपाय खोजने होंगे तथा घरेलू
उपयोग में भी जल-संरक्षण के प्रति सचेत होना पड़ेगा. यदि हम आज इसका उपयोग सावधानी
एवं किफायत से न करेंगे तो भविष्य में स्थिति अत्यंत ही गंभीर हो सकती है.
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