देश की राजनैतिक स्थिति लगातार पतन की ओर जाती दिख रही है.
राजनैतिक दलों के, राजनीतिज्ञों के कारनामों को देखकर कई बार आशंका होती है कि
क्या इस देश की राजनीति को अब सकारात्मक दिशा प्राप्त होगी भी या नहीं? तमाम सारी
नकारात्मक बातों के साथ-साथ विगत दिनों दो-तीन बातों ने दर्शा दिया कि हमारे देश
के राजनेताओं को किसी भी रूप में देश के नागरिकों की चिंता नहीं है, देश के सम्मान
की चिंता नहीं है, देश की अंतर्राष्ट्रीय पहचान की कोई फ़िक्र नहीं है. विरोध की
राजनीति क्षुद्रता की पराकाष्ठा तक पहुँचकर सांसदों को विदेशी देश से निवेदन करने
तक ले जाती है. मोदी को वीजा न दिए जाने के लिए देश के सांसदों का अमेरिका को पत्र
लिखना और उसमें भी हस्ताक्षर का फर्जीबाड़ा दर्शाता है कि देश का सम्मान इन
राजनीतिज्ञों ने ताक पर रख दिया है. किसी भी व्यक्ति से, किसी भी दल से, उसकी
विचारधारा से विरोध होना लोकतंत्र की पहचान है किन्तु जब विरोध की राजनीति कटुता
पर आ जाये, क्षुद्रता पर आ जाये तो पतनकारी होती है. मोदी से, भाजपा से विरोध होना
स्वाभाविक हो सकता है किन्तु मोदी के वीजा देने न देने के सम्बन्ध में देश के
सांसदों का अमेरिका को पत्र लिखना हमारी लचर विदेश नीति का परिचायक है. उस पर कुछ
सांसदों के फर्जी हस्ताक्षर होना विरोधियों के मानसिक दीवालियेपन की पहचान है. क्या
अमेरिका या ओबामा हमारे नीति-नियंता हैं, जिनके सामने हमारे सांसद गुहार सी लगाते
दिख रहे हैं. विरोध और वोट-बैंक की क्षुद्र राजनीति में हमारे सांसदों ने फर्जी
हस्ताक्षर कर, अमेरिका को पत्र लिखकर देश के सम्मान से खिलवाड़ ही किया है.
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देश के सम्मान से खेलने के अतिरिक्त हमारी सरकार और कुछ
राजनीतिज्ञ देश के नागरिकों की, गरीबों की भावनाओं से खिलवाड़ करने में लगे हैं.
योजना आयोग के हालिया आंकड़ों ने गरीबों की संख्या, उनके गुजर-बसर के नए मानक तय
किये, जो हास्यास्पद नहीं गरीबों की हालत का मखौल उड़ाते हैं. आज मंहगाई की,
खाद्य-पदार्थों की, आम जरूरत की वस्तुओं की कीमतें जहाँ हैं वहां योजना आयोग के
निर्धारित मानकों से पहुंचना तो दूर, वहां पहुँचने के बारे में सोचा भी नहीं जा
सकता है. योजना आयोग के मजाकिया लहजे को, हास्यास्पद बनाते आंकड़ों को कुछ नेताओं
के बयान विद्रूप बनाते हैं. एक महाशय को दिल्ली में पाँच रुपये में भरपेट भोजन मिल
जाता है तो एक महानुभाव बारह रुपये में मुम्बई में पूरा भोजन आज भी कर लेते हैं. ये
बयानबाज़ी सिर्फ सरकारी आंकड़ों को सही सिद्ध करने की बाजीगिरी ही नहीं वरन चापलूसी
की इन्तिहाँ होने के साथ-साथ गरीबों-गरीबी का मजाक उड़ाने की जिद भी है. ये नेता
दर्शा रहे हैं कि उनके आका जैसा चाहते हैं वही सत्य है. उनके द्वारा दिया गया झूठ
का पुलिंदा भी सत्य का पिटारा है. समझने की बात है जहाँ एक-एक रोटी की कीमत आसमान
छू रही है, सिर्फ नमक पाने को पाँच रुपये अत्यल्प हो वहां भरपेट भोजन की बात कहना
चापलूसी की हद ही कही जाएगी.
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बेशक ये सारी बयानबाजियां आगामी लोकसभा चुनावों को ध्यान में
रखकर सरकारी लीपापोती करने के लिए की जा रही हों पर इससे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर
देश की छवि पर कालिख ही मली जा रही है. अनेकानेक घोटालों, भ्रष्टाचार, कांडों के
कारण अंतर्राष्ट्रीय पटल पर असहाय सा महसूस कर रहे देश में इस तरह की क्षुद्र
बयानबाज़ी गिरावट के नए आयाम विकसित करेगी. वैसे भी आज के चापलूसी, तुष्टिकरण,
पतनकारी, चरित्रहीनता, राजनैतिक अपराधीकरण के इस दौर में शुचिता की, चारित्रिकता
की, संयम की, ईमानदारी की, नागरिकों के प्रति जिम्मेवारी की कल्पना करना निरर्थक
ही है.
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आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(27-7-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
क्या फर्क पड़ता है उनको ..उनकी छवि धूमिल न हो , यही तो होता चला आ रहा है .........वे तो "Think Globally, Act Locally" वाली बात पर चलते रहते हैं ...
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