पोस्ट यहॉं पेस्ट करें
संकट पर संकट खड़ा करती केंद्र सरकार ने नागरिकों के लिए इस
बार रेल मंत्रालय के माध्यम से मुश्किल पैदा कर दी है. वास्तविकता को जाने बिना
तत्काल प्रभाव से आदेश पारित किया कि अब खिड़की से बनवाए गए ‘वेटिंग टिकट’ पर भी
यात्रा नहीं की जा सकती है, बीच रास्ते यात्री को उतारा भी जा सकता है, उस पर
जुर्माना भी किया जा सकता है. प्रथम दृष्टया रेल मंत्रालय का ये आदेश सही लग सकता
है पर इसके पीछे की वास्तविकता बहुत ही विकृत है. अभी तक ये स्पष्ट नहीं हो सका है
कि कहाँ तक ‘वेटिंग’ होने के बाद उस ट्रेन का सम्बंधित श्रेणी का आरक्षण बंद कर
दिया जायेगा? ऐसे आदेश का तब तक कोई सकारात्मक अर्थ नहीं निकलता जब तक कि एक
निश्चित अल्प-संख्या तक प्रतीक्षारत आरक्षण न किया जाये. क्या फायदा ऐसे आदेश का
जबकि वेटिंग दो सौ की संख्या में मिले?
.
चलिए एकबारगी ये मान भी लिया जाये कि रेलवे इस समस्या का निदान
निकाल लेगा और किसी भी श्रेणी में अल्प-संख्या वेटिंग देना शुरू कर देगा पर इस
समस्या के अलावा और भी ‘भीषण’ समस्याएं हैं जिनसे पार पाना रेलवे की, सरकार की
सामर्थ्य में नहीं है. वेटिंग टिकट पर यात्रा कर रहे यात्री को रेलवे जुर्माना लगा
देगा, बीच रास्ते उतार देगा पर ‘एमएसटी’ बनवाये लोगों द्वारा अनधिकृत यात्रा कर रहे
लोगों से कैसे निपटा जायेगा? आज भी कानपुर-लखनऊ, कानपुर-इलाहाबाद ऐसे मार्ग हैं (ये
तो सिर्फ उदहारण के लिए, ऐसे कई सौ मार्ग हो सकते हैं) जिन पर एक बार में कई-कई
हजार दैनिक यात्री यात्रा करते हैं. ये सबके सब अपनी संख्याबल के आधार पर एसी,
शयनयान श्रेणी में पूरी हनक के साथ यात्रा करते हैं. किसी यात्री, टीसी आदि द्वारा
विरोध करने पर अक्सर मारपीट तक की नौबत आ जाती है.
.
दैनिक यात्रियों के साथ-साथ नियमित रूप से सफ़र करते दूधियों
की गुंडागर्दी को कौन रोकेगा? अलीगढ़ तक की यात्रा का जिसको अनुभव होगा वो उनके
आतंक से आज तक सिहर जाता होगा. पूरी की पूरी ट्रेन पर कब्ज़ा कर लेना, अपनी
मन-मर्जी से ट्रेन का चलवाना-रुकवाना, बिना टिकट के किसी भी श्रेणी में अपने दूध
के दसियों डिब्बों के साथ घुस जाना, आरक्षित यात्रियों को जबरदस्ती उठाकर खड़ा कर
देना इस रूट की आम बात है. इन दूधियों और इन जैसे कई दूसरे दैनिक व्यापारियों
द्वारा अनेक बार यात्रियों के ट्रेन से फेंके जाने तक की घटनाएँ सामने आई हैं.
.
दूधियों की गुंडई के अलावा खाकी वरदी के आतंक से रेलवे का,
सरकार का कौन सा आदेश यात्रियों को बचाएगा. खाकी का जलवा, डंडे की आवाज़, गलियों की
बौछार अच्छे-अच्छे आरक्षित यात्री को चूहा बना देती है. ये किसी का भ्रम हो सकता
है कि खाकी वर्दी सफ़र में उनकी सुरक्षा के लिए है पर ऐसा न होकर ये वरदी वहां आराम
से पैर पसारकर सोने के लिए होती है. वरदी के संरक्षण में ही एक बिना वरदी का गैंग
भी काम करता है, जो तालियाँ पीट-पीट कर, अपने कपड़ों को उतारकर नग्न हो जाने की
धमकी देता हुआ, अश्लील इशारे करता-बोलता हुआ यात्रियों से जबरन वसूली करता दिखता
है. हिजड़ों के ऐसे जोर-जबरदस्ती से रेलवे ने निपटने के लिए कौन सा आदेश निकाला है?
.
इसके अलावा रेलवे स्टाफ के द्वारा, स्थानीय नागरिकों द्वारा,
छुटभैये नेता टाइप लोगों द्वारा, चिरकुट गुंडों द्वारा, उद्दंड लड़कों के झुण्ड द्वारा
आये दिन यात्रियों को परेशान करने की घटनाएँ सामने आती हैं. आरक्षित सीटों पर
अनाधिकृत रूप से, बलपूर्वक कब्ज़ा कर लेने की हरकतें आम हो गई हैं. ऐसे में रेलवे
द्वारा, सरकार द्वारा परेशानियों को सुलझाने के बजाय एक और परेशानी उन यात्रियों के
लिए खड़ी कर दी गई है जो नियमपूर्वक, आरक्षण के द्वारा यात्रा करने में विश्वास
करते हैं. रेलवे का ये आदेश उनके लिए निरर्थक है जो टीसी महोदय को कुछ ले-देकर यात्रा
करने में विश्वास करते हैं. इस आदेश से आरक्षित वर्ग के यात्रियों को सुविधा मिले
या न मिले पर टीसी के सुविधा-शुल्क में वृद्धि हो जाएगी, लेनदेन की यात्रा करने वाले
भ्रष्टाचार में वृद्धि हो जाएगी.
.
वेटिंग टिकट वाला मामला वाकई समस्याकारक है. अब तक तो इमरजेंसी यात्रा में वेटिंग टिकट लेकर जैसे तैसे पूरी कर लेते थे, अब वह भी बंद.
जवाब देंहटाएंबाकी की दूसरी समस्याएं जो आपने लिखी हैं, वह आमतौर पर उत्तरी भारत में अधिक है, दक्षिण में अपेक्षाकृत कम.
वेटिंग टिकट वाला मामला वाकई समस्याकारक है. अब तक तो इमरजेंसी यात्रा में वेटिंग टिकट लेकर जैसे तैसे पूरी कर लेते थे, अब वह भी बंद.
जवाब देंहटाएंबाकी की दूसरी समस्याएं जो आपने लिखी हैं, वह आमतौर पर उत्तरी भारत में अधिक है, दक्षिण में अपेक्षाकृत कम.