बस कुल छह.....!!! ओ
नक्सलियो, ये तो कलंक है तुम पर. इतनी संख्या में तो तुम तब मारते थे जब तुमने मारना
ही सीखा था. इस समय तो तुम लोग देश के अधिकांश हिस्से में अपना आतंकी साम्राज्य
स्थापित करने वालों में, तिरंगे की बजाय अपना लाल झंडा फहराने वालों में, अपने कुकृत्यों
पर लाल सलाम ठोकने वालों में शामिल हो फिर भी ऐसा चिरकुट सा काम, तुम लोगों को तो
कोई बहुत महान काम करना था. शर्म है तुम सब पर. ये तो वही स्थिति हुई कि किसी
स्नातक, परास्नातक वाले व्यक्ति से कहा जाए कि आगे का पाठ तब सिखाया जायेगा पहले
ए, बी, सी, डी या गिनती लिख कर दिखाओ...डूब मरो चुल्लू भर पानी में. अरे..!! अभी
कुछ दिन पहले जब एक राजनैतिक दल पर हमला किया था तो लगा था कि अब सही ताकत में आये
हो.....पर ये क्या..कुल जमा छह...वो भी पुलिस वाले.
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ओ नक्सलियो..!! ये
तुम लोगों की ताकत के हिसाब से शोभा नहीं देता. तुम लोग तो अब सेना के जवानों को
भी मारने लगे थे, अर्धसैनिक बलों के जवानों को भी अपना शिकार बनाने लगे थे...फिर
ये लुंज-पुंज से पुलिसवाले क्यों चुन लिए? कहीं तुम लोगों की ताकत घट तो नहीं रही,
कहीं तुम लोगों का आतंक कम तो नहीं हो रहा? सोचो अपने संगठन के बारे में, अपनी
ताकत के बारे में, अपने शिकार के बारे में. ऐसे कृत्य तुम्हें नहीं करने चाहिए, वो
भी तब जबकि तुम सबको मालूम है कि सरकारों के अधिकांश नुमाइंदे तुमको अपना भटका हुआ
भाई बताते हैं. अब भाई तो भाई ही है...वो चाहे साथ रहता हो या भटक गया हो...उस पर
कार्यवाही तो होगी नहीं. इसके बाद भी तुम इन पुलिसवालों को मरोगे, वो भी मात्र छह
तो ये तुम्हारे लिए तो कलंक है ही, तुम्हारे उन सुधरे भाइयों के लिए भी कलंक है जो
संसद में, विधानसभाओं में बैठे तुम्हारा पक्ष लेते रहते हैं; तुम्हारी ताकत को
बढ़ाते रहते हैं.
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अरे! मारना है तो अब
सैकड़ों की संख्या में मारो. इससे तुम्हारी ताकत का अंदाज़ा आन जनता को भी लगेगा,
तुम्हारे समर्थकों को भी लगेगा. इस तरह से दो-दो, चार-चार करके मारने से तुम अपना अस्तित्व
ही खतरे में डाल रहे हो. तुम लोगों के पास आधुनिक हथियार हैं, राकेट लोंचर हैं,
ग्रेनेड हैं, बारूदी सुरंग का सामान है..और भी बहुत कुछ है, तब भी दो-दो महीनों
में ऐसी घटना, वो भी कुल छह, उस पर भी पुलिस वाले........अरे एक बार अपना पूरा
दम-ख़म दिखा दो. सैकड़ों की संख्या में लोगों को उड़ा दो. जब तुमने अपनी समर्थक जनता
को मरने से परहेज नहीं किया; नादान-भोले बच्चों को मारने में हिचकिचाहट नहीं
दिखाई; सेना के जवानों को मारने में नहीं डरे; एक राजनैतिक दल पर हमला करने में
नहीं चुके; महिलाओं की गर्दन काटने में हाथ नहीं काँपे तो अब किस बात का संकोच? ये
तो तुम सबको मालूम है कि केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें, कोई भी तुम्हारे खिलाफ
कठोर कदम नहीं उठा सकती; तुम्हारा समूल नाश करने की सोच नहीं सकती; तुम्हारे खिलाफ
कोई सैन्य कार्यवाही नहीं कर सकती; फिर भी तुम इक्का-दुक्का मारने का काम कर रहे
हो. उठो जवानों, उठो नक्सलियो अबकी बार दिखा दो कि तुम खेल-खेल में ही चार-छह को
मारते हो. अबकी बार तुम्हारे हथियार उठें तो कम से कम सैकड़ों की संख्या में लोग
मरें...इससे मतलब नहीं कि सेना के जवान मरें या पुलिस के; आम आदमी मरे या कि
राजनीतिज्ञ. तुम तो मारते रहो...शायद किसी दिन तुम लोगों का नाम भी शांति के नोबेल
पुरस्कार के लिए चला जाए. अरे..! जब लगभग दो दर्जन मारने पर फूलन देवी का नाम जा
सकता है तो तुम लोगों ने तो बहुतों को मौत के घाट उतारा है, तुम्हारा नाम तो ये
सफेदपोश जरूर भेजेंगे, आखिर तुम इनके भटके भाई भी तो हो. तो फिर संकोच नहीं..लगे
रहो, उड़ाते रहो..मारते रहो...पर अगली बार इतनी चिरकुटई नहीं...चार-छह नहीं....!!!
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