01 मार्च 2013

आम बजट : जेब पर हल्ला बोल



          आखिर चिदम्बरम साहब ने जनता के विश्वास को तोड़ा नहीं। जैसा कि सभी को विश्वास था कि उनका वर्तमान आम बजट किसी भी रूप में जनहितकारी नहीं होगा और वैसा हुआ भी। बजट को कहीं न कहीं इस दृष्टि से बनाया गया है मानो दो-चार माह बाद ही सरकार को चुनावों का सामना करना हो। बहरहाल इस बजट के द्वारा सरकार ने आम जनता को देने की कम और वसूलने की ज्यादा कोशिश की है। आयकरदाताओं को किसी भी तरह की आधारभूत राहत न देकर दो हजार रुपये की छूट देना एक तरह का लॉलीपॉप ही पकड़ाना है जिससे किसी भी तरह की बचत को प्रोत्साहन नहीं मिलता है। एक करोड़ रुपये से अधिक की आय वालों पर सरचार्ज लगाकर सरकार ने डरते-डरते इस बात के संकेत दिये हैं कि वह आयकर शिकंजे को कसना चाहती है पर स्वयं ही इस वर्ग की संख्या चालीस हजार से कुछ अधिक बताकर इस कदम का निहितार्थ स्पष्ट कर देती है। आयकर में किसी भी तरह की छूट न देने से जहां बचत प्रभावित होगी वहीं अन्य दूसरी वस्तुओं के मंहगे होने से आयकरदाता की जेब पर बोझ ही बढ़ेगा। वित्तमंत्री ने इस बोझ को कम करने का कोई भी सूत्र अपने बजट में नहीं दिया है। 
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          आयकर के माध्यम से देश के मध्यम वर्ग पर चोट करने के बाद भी वित्तमंत्री जी ने अपने हथौड़े को रोका नहीं। मोबाइल, टी0वी0 सेट टॉप बॉक्स, रेस्टोरेण्ट में भोजन करने को मंहगा करना; पेट्रोलियम पदार्थों-रसोई गैस पर सब्सिडी न बढ़ाने के संकेत भी मध्यमवर्गीय आयकरदाताओं के लिए बोझ ही उत्पन्न करेगा। वित्तमंत्री ने आगामी चुनावों को सूंघकर महिलाओं की संवेदना को लपकने की कोशिश भी अपने बजट में की है पर वे यह भूल गये कि लपकने के इस प्रयास में यदि हाथ फिसल गया तो औंधे मुंह गिरना तय है। विशुद्ध महिलाओं के लिए कार्य करने वाले बैंक को खोले जाने की घोषणा तो बजट में दिखी किन्तु महिलाओं की आय को बढ़ाये जाने सम्बन्धी कोई भी प्रयास इसमें नहीं दिखा। महिलाओं की आमदनी की बढ़ोत्तरी के प्रयासों में नकारात्मकता के साथ ही रसोई गैस कीमतों में किसी भी तरह की राहत न देने के कारण सम्भव है कि आम महिलावर्ग उनका ये झुनझुना बजाने को तैयार न हो। हां, महिलाओं को सोने का लालच तो दिखाया है पर वो भी हास्यास्पद; एक लाख रुपये तक का सोना विदेश से लाने पर ड्यूटी फ्री रहेगा।
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          इसके अतिरक्त नये अवसर विकसित करने, कौशल प्रशिक्षण देने के नाम पर सरकार ने युवाओं को भी अपनी तरफ करने की कोशिश की है किन्तु वह भूल गई कि रेस्टोरेण्ट में भोजन करने को मंहगा करना, मोबाइल को मंहगा करना युवाओं को नाराज भी कर सकता है। फिलहाल, अभी बजट का सांगोपांग अध्ययन हो रहा है और देश के वर्तमान हालातों के मध्य इस तरह का निराशाजनक बजट प्रस्तुत करना सरकार की मंशा पर संदेह ही जताता है। कीमतों पर, मंहगाई पर किसी भी तरह के नियंत्रण का प्रयास न करना और ऐसे प्रावधानों को लगा देना जिनसे आम जनता, मध्यम वर्ग पर अतिरिक्त बोझ पड़े, सरकार की नेकनीयत को नहीं दर्शाता है। ऐसा नहीं है कि वित्तमंत्री ने राहते देने सम्बन्धी कोई भी कदम न उठायें हों पर वे ऐसे वर्ग के लिए हैं जिनको या तो पहले से ही राहत प्राप्त है अथवा वे वर्ग हैं जिन्हें सुविधायें कभी भी प्राप्त ही नहीं हो पाती हैं। कुल मिलाकर वर्तमान आम बजट आंखों में आंसू तो लाता है, अब से देखने वाले को समझना है कि वे खुशी के आंसू हैं अथवा दुःख के।
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चित्र गूगल छवियों से साभार 

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