मैडम जी पूरे गुस्से में दिखाई दे रही थी और उनके कुछ
विश्वासपात्र चापलूस अपने-अपने मोबाइल पर, बेसिक फोन पर चिपके इधर से उधर कभी चिल्लाते, कभी फुसफुसाते घूम रहे थे। मैडम जी एक बड़े से सोफे पर धंसकर बैठी हुई थी और
उनकी आग उगलती निगाह बार-बार सामने दीवार पर खामोश टंगे टी0वी0 पर टिक जा रही थी। दरअसल मैडम के पास आजकल कोई ऐसा काम
नहीं बचा था जिसके लिए उन्हें घर से बाहर निकलना पड़ता, उनके डॉगी सिंह आजकल बिना भौंके उनके आसपास ही टहलते दिखाई
देते;
उनके कपि महाराज भी कहीं बाहर उछलकूद करने की बजाय मैडम के
बगीचे में ही टहलते रहते। इनके अलावा मैडम पूरी तन्मयता से अपने हुल-हुल बाबा को
दुलराने का काम भी निपटाने में लगी हुई हैं। इन्हीं लोगों के दम पर मैडम अपने अगले
प्रोजेक्ट की तैयारी में लगने वाली हैं। वैसे इन सबके लिए मैडम के तमाम सारे
चाटुकार भी लगे हुए थे फिर भी मैडम थोड़ा बहुत समय निकाल कर टी0वी0 पर मनोरंजन कर ही लेती हैं।
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काम का न होना और हुल-हुल बाबा को प्रोजेक्ट 2014 के लिए तैयार करने के कारण मैडम का ज्यादा से ज्यादा समय
घर में ही बीतता था। आज अपने रुटीन के तमाम सारे काम करके, हुल-हुल बाबा को उनकी पोयम रटवा कर, डॉगी सिंह को पट्टे में बांधकर, कपि महाराज को पिंजरे में बन्द करने के बाद मैडम ने कुछ
तड़कते-भड़कते गीतों के अधिकार अगले प्रोजेक्ट के लिए लेने की सोच कर उन्हें
देखने-सुनने के लिए टी0वी0 की ओर मुंह करके रिमोट का बटन दबा दिया। इधर रिमोट का बटन
दबना हुआ कि उधर नमो-नमो की गूंज पूरे मकान में फैल गई। मैडम एक पल को भौचक सी मुंह
बाये रह गईं और किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में न तो रिमोट के सहारे टी0वी0 बन्द कर पाईं और न ही टी0वी0 से अपनी निगाह हटा पाईं। नमो-नमो की गूंज पूरी ताकत से, पूरे जोश से, पूरी हुंकार से मैडम के कानों में घुसती हुई दिल को चीर-चीर रही थी। उनकी कोठी
के कोने-कोने में एक पल में ही नमो-नमो गुंजायमान हो गया और पूरी कोठी नमो के रंग
में रंगी दिखाई देने लगी। डॉगी सिंह कूं-कूं करते हुए पट्टा तोड़कर उसी कमरे में
दौड़े चले आये और मैडम के पैर चाटते हुए शरणागत हो गये। कपि महाराज ने भी अपनी पूरी
ताकत लगाकर पिंजरे को तोड़-मरोड़ डाला और किकियाते हुए मैडम के कंधे पर बैठकर टी0वी0 को बंदरघुड़की देने लगे। हुल-हुल बाबा बाहर लॉन में अपने
खिलौनों को हाथ में थामे,
साइकिल चलाते, हाथी मेरे साथी गाते हुए खेलने में मगन थे। जैसे ही उनके कान में नमो-नमो का
स्वर पड़ा,
वे भी सबकुछ छोड़कर नमो-नमो करते हुए मम्मी के आंचल में
छिपकर अपना अंगूठा चूसते दिखाई देने लगे।
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मैडम की कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था तभी एक वरिष्ठ चापलूस
ने आनन-फानन टी0वी0 का प्लग निकाल कर टी0वी0 को खामोश किया। इसके बाद भी नमो-नमो की गूंज कमरे में, कोठी में सुनाई दे रही थी। मैडम ने देखा तो उनके कई सारे
पालतू तोते अभी भी नमो-नमो रटने में लगे हुए थे। मैडम ने चीखते हुए उन सभी तोतों
को शान्त करने का आदेश दिया। नमो-नमो करते उन तमाम तोतों की चोंच को दूध-रोटी में
डुबोकर उन्हें शान्त किया गया। मैडम सोफे में धंसी हांफ सी रही थी और इसी हांफा-हांफी
में उन्होंने एक चाटुकार की ओर देखा और सवाल दाग दिया--‘‘इतना सारा शराब-शबाब-कबाब बंटने के बाद भी यह हरकत हुई कैसे? कैसे नमो-नमो हमारे टी0वी0 में दिखाई दिया?’’ चाटुकारों की समझ में नहीं आ रहा था कि ये हो कैसे गया। नमो-नमो चमत्कारी
प्रभाव को मैडम के टी0वी0 में आने से रोकने के लिए सभी तरह के इंतजाम कर दिये गये थे, इसके बाद भी ऐसा अनिष्ट कैसे हो गया? इस बीच चाटुकारों ने फोन करके मौनी बाबा को, मखौल जी को, टिण्डे समेत तमाम अनुभवी चाटुकारों को मैडम की मदद करने को बुलवा लिया। किसी
की भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाये? मौनी बाबा तो अपनी आदत के अनुसार चुपचाप दाढ़ी खुजला रहे थे और टिण्डे को मैडम
ने बकवास करने से रोका। मैडम के एकमात्र तारणहार मखौल जी, जो अभी हाल ही में पति बने थे, ने अपनी खुमारी को दूर करने के लिए लम्बी जमुहाई ली और
सरकते हुए मैडम के नजदीक पहुंचे।
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मैडम और मखौल जी में कुछ बात हो पाती उससे पहले हुल-हुल
बाबा अपना अंगूठा चूसना बन्द करके मैडम के आंचल से बाहर आये और रिरियाते से बोले-‘‘मम्मी, ये नमो-नमो
हमने उस डिब्बे से रिकॉर्ड किया है, जिसमें वो खान अंकल बताते हैं, किस करो,
डिश करो।’’ मैडम की और
तमाम सारे चुप लगाये चाटुकारों की समझ में आ गया कि नमो-नमो का ये सब चक्कर क्या
है। तारणहार मखौल जी ने मैडम के कान में फुसफुसा कर कहा कि इस तरह के डिब्बों को, छतरियों को पूरे देश से खतम ही कर दिया जाये वरना किसी दिन
ये हम सभी की छत ही उड़वा देंगी। इससे बेहतर तो अपना सत्यम शिवम सुन्दरम है, जो कहो, जैसा कहो वही
दिखाता है। इससे पहले कि मैडम कुछ कह भी पाती हुल-हुल बाबा ने अपना राग अलापना
शुरू किया-‘‘मम्मी, मुझे भी
नमो-नमो सीखना है।’’
मम्मी और बाकी लोग अवाक से रह गये, मैडम न हुल-हुल बाबा के कनपटे में एक सेंक लगाई और चिल्लाते
हुए बताया--‘‘ऐसा होने के लिए बहुत लम्बा संघर्ष करना होता है, जनता का सहयोग लेना होता है। परिवार के नाम की माला जपना
छोड़ना होता है। हमारे पास ऐसा कुछ भी नहीं है, इस कारण से हमारा नमो-नमो बनना मुश्किल है। और हां, यदि तुम ऐसी जिद करते रहे तो किसी दिन यहां नमो-नमो का
कब्जा होगा।’’
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मम्मी के द्वारा कनपटी सेंकने और डांटने से हुल-हुल बाबा
सहम सा गया और चुपचाप कमरे से बाहर की ओर निकल गया। इधर सभी चाटुकार और मैडम के
तमाम तारणहार नमो-नमो की काट खोजने में लग गये, परिवार की बेल को और मजबूत करने में लग गये, चाटुकार की चटनी को और चटपटा बनाने में लग गये और अपने कमरे में पहुंच हुल-हुल
बाबा ‘नमो नमो अम्बे दुख हरनी, नमो नमो अम्बे सुख करनी’ का जाप करते
हुए अपने चेहरे पर नकली दाढ़ी लगाकर खुद को नमो-नमो के रूप में देखने लगे।
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