14 जून 2009

चलिए समोसे खाते हैं

‘समोसा’ यह शब्द सुनाई देते ही मुँह में स्वाद बन जाता है, जीभ चटखारे मारने लगती है। और मारे भी क्यों नहीं, समोसा है ही इतना लाजवाब। इस लाजवाब समोसे के किस्से भी लाजवाब हैं। समोसे के जानकार अपने-अपने ढंग से इसके किस्सों को सुनाते रहते हैं।
अभी हाल में एक खबर सुनने में आई कि समोसा एक हजार वर्ष का हो गया है। आज इससे सम्बन्धित और थोड़ा सा समाचार-पत्र में भी पढ़ने को मिला। पढ़कर आश्चर्य हुआ कि बर्गर, पिज्जा से टक्कर लेता हमारा समोसा इतनी उम्र का हो गया है।
ऐसा कहा जाता है कि समोसा सबसे पहले मध्य एशिया से दसवीं शताब्दी में चलन में आया। भारत में इसका आना तेरहवीं, चैदहवीं शताब्दी में हुआ, जब भारत आने वाले व्यापारी इसे अपने साथ लेकर आये।
वैसे भारत में समोसे के होने के प्रमाण अमीर खुसरो (1253-1325) की रचनाओं के माध्यम से तथा चैदहवीं शताब्दी में यात्री इब्नबतूता द्वारा प्रस्तुत वृत्तांत और सोलहवीं शताब्दी के मुगलकालीन दस्तावेज ‘आइने अकबरी’ में हुए जिक्र से मिलते हैं। अमीर खुसरो की यह पहेली तो जग प्रसिद्ध है कि ‘‘जूता पहना न था, समोसा खाया न था’’, इस पहेली का उत्तर है- ‘‘तला न था’’।
इस पहेली स्पष्ट है कि इस कालखण्ड (तेरहवीं, चैदहवीं शताब्दी) में समोसा चलन में आ चुका था। इसको और भी सही रूप में इससे भी प्रमाणित किया जा सकता है कि अमीर खुसरो ने अपनी रचना में लिखा भी है कि घी में तला हुआ स्टफ्ड मीट वाला समोसा शाही परिवार के सदस्यों और अमीरों का लोकप्रिय व्यंजन था। वैसे भी चैदहवीं शताब्दी के यात्री इब्नबतूता ने अपने वृत्तांत में लिखा भी है कि ‘मोहम्मद बिन तुगलक के दरवार में भोजन के दौरान मसालेदार मीट और बादाम स्टफ करके तैयार किया गया समोसा परसा गया, जिसे लोगों ने बड़े ही चाव से खाया।’
समोसे का इतिहास कुछ भी रहा हो परन्तु इसके स्वाद के सभी दीवाने रहे हैं। देश के अलावा विदेशों में भी इसे उसी चाव से खाया जाता है जैसे कि हम पिज्जा और बर्गर आदि को स्वाद लेकर खाते हैं। यह बात और है कि हम जिस तरह तला-भुना समोसा अधिक पसंद करते हैं पश्चिम में ऐसा नहीं है। वहाँ के लोग कम तला-भुना पसंद करते हैं इस कारण से वे लोग बेक किया हुआ समोसा खाना पसंद करते हैं।
समोसा अपनी कितने भी देशों की, कई सदियों की यात्रा भले ही कर चुका हो किन्तु उसके आकार में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं हुआ है। अपने शुरुआती दिनों में भी यह तिकोना बनता था और आज भी यह तिकोना बनता है। जगह और स्वाद ने इसके मसाले को अवश्य ही प्रभावित किया है। समोसे का सबसे प्रचलित और सर्वमान्य रूप तो मसालेदार आलू से भरा समोसा ही है किन्तु बड़ी दुकानों में यह पनीर और मेवे से भी भरा हुआ पाया जाता है। पंजाबियों को चटपटा समोसा पसंद है तो गोवा में मीट भरा समोसा ज्यादा पसंद किया जाता है। मीठे के शौकीन लोगों के लिए मीठा और चाइनीज क्यूनीज पसंद करने वालों के लिए नूडल्स स्टफ समोसे भी बनाये जाते हैं।
समोसे की बढ़ती हुई लोकप्रियता को देखकर अब कम्पनियाँ समोसे को फ्रोजन फूड के रूप में भी पेश कर रहीं हैं। यदि मान लें कि समोसा दसवीं शताब्दी के मध्य में ही अवतरित हुआ तो अभी तक की चटखारेदार यात्रा और लाजवाब स्वाद के बाद जाहिर सी बात है कि उसे कम्पनियाँ अपने फायदे के लिए भी इस्तेमाल करेगीं।
जिसे जो करना हो करे अब इस पोस्ट के बाद समोसे खाना पक्का है। क्या आप भी स्वाद बनाने लगे?


9 टिप्‍पणियां:

  1. काफी चटकदार मसालेदार प्रविष्टि जानकारी करने के लिए धन्यवाद

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  2. समोसे के सफर के साथ आपने स्वादिष्ट जानकारी दी।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  3. कुमारेन्द्र जी एक समय हुआ करता था..जब इस समोसे का राज हुआ करता था शाम की चाय-नाश्ते में..ज़माना बदला तो समोसे की हालत भी हालत के मारे जैसी हो गयी..मगर ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी इसका स्वाद बना हुआ है..मुंह सचमुच चटपटा हो गया..

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