वर्तमान चुनावों में ऐसा लग रहा है कि नेताओं द्वारा वोट मांगना जिस गति से हो रहा है उससे अधिक तेजी से मतदाताओं को मत डालने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। पिछले कई चुनावों में वोट प्रतिशत जिस तेजी से गिरा है वह वाकई लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए चिन्तनीय विषय है। इस पर चर्चा भी होनी चाहिए, चिन्ता भी होनी चाहिए। सरकारी स्तर पर जो प्रयास हो रहे हैं वे तो ठीक हैं गैर-सरकारी स्तर पर भी प्रयास भी तेजी से किये जा रहे हैं।
लोगों को प्रेरित करने से अधिक महत्वपूर्ण यह होना चाहिए कि लोगों की रुचि चुनावों में मतदान से कम क्यों हुई है? क्यों लोग लोकतन्त्र की अपनी शक्ति को प्रयोग में नहीं ला रहे हैं? यह जानने का प्रयास करना चाहिए कि कहीं लोगों का विश्वास तो इस प्रक्रिया से समाप्त तो नहीं होता जा रहा है?
यदि पूरे राजनैतिक परिदृश्य को देखा जाये तो आसानी से दिखाई देता है कि विगत एक दशक में राजनीति में जिस तेजी से अपराधियों का, बाहुबलियों का प्रवेश हुआ है; अस्त्रों-शस्त्रों का प्रयोग बढ़ा है; माफियाओं ने अपने धन-बल को लगाया है उससे आम आदमी ने चुनावों से, राजनीति से अपना ध्यान हटा लिया है।
चुनावों में अब आम आदमी के स्थान पर, सीधे-साधे आदमी के स्थान पर दबंग नेता को, बाहुबली को स्थान अधिक सुलभता से प्राप्त होता है। इनके अलावा राजनीति में संलग्न लोगों के पुत्र-पुत्रियों को स्थान मिलता है। वैसे आज मतदाता भी यही देखता है कि किसके पास कितनी गाड़ियाँ हैं, किसके पास कितने असलहे हैं, किसके साथ कितने आदमी हैं। साथ ही वह यह भी देखता है कि कौन सा व्यक्ति नेता के रूप में उसके काम करवाने में सक्षम है।
नेताओं के साथ भीड़ देखने की ललक, लकदक गाड़ियों के काफिले से उसकी अहमियत को आँकने की भूल के कारण ही आज चुनावों में धन की अधिकता हो गई है। हालांकि चुनाव आयोग द्वारा लगातार य प्रयास किये जाते रहे हैं कि इन सब अनावश्यक तत्वों के प्रयोग को रोका जा सके। कुछ कदम सार्थक भी रहे हैं और कुछ कदमों को हवा में ही उड़ा दिया गया है। चुनाव आयोग को और अधिक सख्ती बरतनी होगी जिससे बाहुबलियों का इस क्षेत्र में प्रवेश बन्द हो सके। इसके साथ ही अच्छे लोगों को भी राजनीति में उतरना होगा जिससे मतदान करने वालों के सामने भी एक अच्छा सा विकल्प मौजूद हो।
हम खुद अपने आपको राजनीति से दूर करके बाहुबलियों के लिए, अपराधियों के लिए, नाकारा लोगों के लिए स्थान खाली कर देते हैं। यदि राजनीति के सुनहरे काल को बापस लाना है, एक नया राजनैतिक समाज स्थापित करना है तो हमें अच्छे लोगों को आगे लाना होगा, स्वयं को आगे लाना होगा।
चुनावी चकल्लस- उन्होंने धीरे से कान में कुछ कहा,
किसी को धन, किसी को काम दिया,
फुसफुसाये जीतने की करो कोई जुगाड़,
चलो कोई भी चाल और बनी रहे आड़,
चुनाव आयोग का डण्डा बड़ा तगड़ा है,
खुलेआम चालबाजी करने में लफड़ा है।
05 अप्रैल 2009
हमें भी राजनीति में हस्तक्षेप करना होगा
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सुधि मतदातओं को मतदाता संगठन बनाने चाहिए।
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