कल अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस निकला और कल होली आने वाली है। महिला दिवस और होली के इस सामन्जस्य पर एक लोककथा याद आ रही है जिसमें एक पति को अपनी पत्नी को अकारण पीटने की बीमारी थी। आज भी बहुत सारे पतियों को इसी तरह की बीमारी है और इस चक्कर में बेचारे तमाम सारे पति सीता सेनाओं जैसों के शिकार हो जाते हैं। शिकर और शिकारी तो सदा इस जग में रहे हैं, कभी पुरुष शिकारी बना तो कभी शिकार; कभी महिला ने शिकार किया तो कभी बनी शिकार, आप तो इस कथा का आनन्द उठाइये.
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एक गाँव में एक पति को अपनी पत्नी को पीटने की बीमारी थी और पत्नी बेचारी इससे बहुत ही दुःखी रहती थी। एक बार उस गाँव में एक बाबाजी आये (तब महिला मोर्चा जैसी चीजें नहीं थीं तो बेचारी त्रस्त महिलाओं को बाबाओं आदि से सलाह लेना पड़ती थी) बाबाजी से समस्या को बताने पर समाधान ये निकला कि पत्नी पति की मर्जी की सारी स्थितियों को लागू कर दिया करे तो वह संतुष्ट रहेगा और पत्नी पिटाई से बच सकेगी।
बाबाजी ने कहा कि ऐसा कई दिनों तक चलने पर पति की मार-पिटाई की आदत छूट जायेगी और फिर दोनों चैन से रह सकेंगे। पत्नी ने सारी विधि समझी और घर आ गई।
अगले दिन सुबह-सुबह पति सोकर उठा और मंजन-कुल्ला करने निकला। चिल्ला कर पत्नी से पानी माँगा। पत्नी ने उसे पानी दिया तो उसने कहा कि उसे आज ठण्डे पानी से नहीं गरम पानी से कुल्ला करना है (आखिर पीटना जो था) पत्नी ने उसे गरम पानी दे दिया। पति खामोश, चुपचाप कुल्ला किया और बाकी काम में लग गया। नाश्ते के समय चाय, काफी को लेकर चिल्लाया तो पत्नी ने वह भी समस्या दूर कर दी। अब फिर पीटने का सवाल नहीं।
दोपहर में खाना खाने का समय हुआ तो पत्नी ने अपनी कुशलता से इसी तरह से बात को संभाल लिया। कच्चा-पक्का दोनों तरह का खाना बनाया। खीर भी बनाई तो रायता भी बनाया। जो कुछ पति माँग सकता था उसने वह सब बनाया। यहाँ भी पति हार गया और पत्नी पिटाई से बच गई।
इधर पत्नी बाबाजी के बताये हुए गुण से प्रसन्न थी तो पति महाशय निहायत परेशान कि कैसे पत्नी को मारा जाये? इसी उधेड़बुन में सारा दिन गुजर गया। किसी भी तरह से वह अपनी पत्नी को न मार सका।
अब आई रात.............खाना खाने में पत्नी ने फिर वही तरकीब दिखाई। सब कुछ होने के बाद जब सोने का समय आया तो पत्नी तो बेहद ही खुश थी किन्तु पति को तो जैसे कब्जियत होने लगी। उसने अपनी पत्नी से कहा कि कहाँ सोना है? पत्नी ने कहा कि कमरे में, छत पर, बाहर दालान में, आँगन में बिस्तर लगे हैं, जहाँ चाहो सो जाओ।
पति फिर परेशान.......अंततः वह थकहार कर बाहर खुले में जाकर लेट गया। दिमाग बराबर इसी में लगा था कि कैसे पत्नी को पीटा जाये? बगल के बिस्तर पर पत्नी आकर लेट गयी। पति ने ऊपर आसमान की तरफ देखा और वहाँ बनी सफेद रेखाओं को देखकर पूछा कि ये क्या है? पत्नी बेचारी भोली-भाली, जैसा कि हम सबको छोटे में बताया जाता था कि यह सफेद देखा इन्द्र भगवान के हाथी ऐरावत के निकलने की हैं, सो उसने भी अपने पति से कह दिया कि यहाँ से ऐरावत हाथी निकलता है।
बस फिर क्या था...पति महोदय उठे और अपना लट्ठ उठाकर चालू हो गये अपनी पत्नी के ऊपर। बेचारी पत्नी को सूझ न आया कि ऐसा क्या कह दिया कि जिससे उसकी पिटाई होने लगी?
पति अपनी पत्नी को मारते-मारते कहता जाये कि अच्छा इसी कारण बाहर खुले में बिस्तर लगाया है कि यहाँ से ऐरावत हाथी निकले, हमारे ऊपर गिर जाये, हम मर जायें और फिर तुम आजादी से मस्ती कर सको।
अब तो पत्नी ने सिर पीट लिया कि पिटना तो तय है, चाहे कारण कुछ भी बनाया जाये।
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इस प्रकार के पतियों का इलाज किसी बाबा के पास या किसी नारीवादी मंच के पास भी नहीं है।
इस तरह के पतियों के कारण ही समूची पुरुष जाति को महिला-विरोधी होने का आरोप सहना पड़ता है।
(नारी समर्थक लोग हमें इस लोककथा के लिए माफ करेंगे..........क्या कर सकेंगे?)
सही है ... ऐसे ही कुछ पुरूषों के कारण सारे बदनाम हो जाते हैं ... होली की ढेरो शुभकामनाएं।
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