आज एक पत्रिका "समकालीन जनमत" पढ़ रहे थे, अच्छी पत्रिका है। देश के जाने-माने साहित्यकार इसमें अपने कलम का जादू बिखेरते हैं. कुछ नामचीन लोग इसके सम्पादक और संरक्षक मंडल में भी शामिल हैं. ये पत्रिका अपने विशेष कलेवर के कारण मेरी पसंदीदा पत्रिकाओं में है. हर अंक मेरे पास आता है. इस बार नया अंक आया, उत्सुकतावश पहले तो पूरी पत्रिका उलट-पुलट डाली. कवर बड़ा ही आकर्षित कर रहा था, लेकिन जैसे ही अन्तिम हिस्सा देखा (कवर का आख़िर) लगा कि यहाँ भी बस कोसने के अलावा कुछ नहीं है. पृष्ठ के ठीक बीचों-बीच एक तस्वीर है और इबारत लिखी है जिसका तात्पर्य निकलता है कि आतंक का गढ़ आजमगढ़ नहीं अमेरिका है।
ये नजरिये की बात है और किसी के लिए एक बात किसी के लिए दोनों बातें और किसी के लिए इनमें से कुछ भी सही नहीं हो सकता है. किसी दो-चार लड़कों के पकड़ जाने के बाद ये कहने लगना कि आजमगढ़ ही आतंकवाद का गढ़ है ग़लत होगा. ये कोशिश उन लोगों की रहती है जो किसी न किसी रूप में किसी भी घटना से अपनी राजनीति को चमकाना चाहते हैं. याद करिए कुछ दिन पुराना बटाला काण्ड, अब क्या हो रहा है इस पर ये कहने की जरूरत नहीं है. जहाँ तक आजमगढ़ का सवाल है तो जो लोग इसे इसकी साहित्यिक धरोहर के कारण जानते हैं वे तो कटाई ये स्वीकार नहीं करेंगे कि ये आतंक का गढ़ है. इसी के साथ हम सबको जो लोग भी आजमगढ़ के पक्ष में हैं उनको ये भिस्वीकारना होगा कि यहाँ आतंकी घटनाओं में बढोत्तरी अब अधिक हो गई है. इसे कैसे भी रोकना होगा.
उत्तर-प्रदेश इस समय आतंकियों के विशेष निशाने पर है. सभी दलों को स्वार्थ छोड़ कर अब इन ताकतों के खात्मे के लिए काम करना होगा. ये बहुत बड़ा सवाल है कि आम जनता कब तक सौहार्द बनाए रखने में सफल होगी? बनारस के बम धमाके किसी को भूले नहीं होंगे तब भी वहाँ के लोगों ने आपसी सामंजस्य दिखा कर आतंकियों के मंसूबों को कुचल दिया था. कुछ इसी तरह का उदहारण आगे भी देना होगा. जनता तो ये सब कर लेगी पर तथाकथित साहित्यकार, राजनेता, धर्म के ठेकेदार, धर्माचार्य, मुल्ला-मौलवी, कथित धर्मनिरपेक्ष ऐसा कब करेंगे?
अमरेन्द्र जी क्या "समकालीन जनमत" वेब पर भी उपलब्ध है?
जवाब देंहटाएंजब तक कोई प्रभावी कदम न उठे
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