अभी-अभी कुछ देर पहले ही एक पोस्ट लिख कर उठे थे और फ़िर कुछ देर को समय निकाल कर समाचार देखने बैठे। हंगामा.....हंगामा.....हंगामा................यही सब कुछ हो रहा था. राज ठाकरे का "राज" जिस तरह से टी वी पर दिखाया जा रहा था लग रहा था कि वही क़ानून है, वही प्रशासन है, वही सरकार है. ये है स्थिति क़ानून व्यवस्था की, यही स्थिति है हमारे राजनेताओं की। अपने देश में जहाँ एक स्थिति के लिए दो बातें और एक तरह के कामों के लिए दो कानून.
अब ये तो स्पष्ट सा लग रहा है कि किसी और राज्य में हो या न हो पर महाराष्ट्र में उत्तर भारतीय सुरक्षित नहीं हैं. नौकरी की तलाश में गए उत्तर भारतीयों को टेस्ट देने के समय लाठी-डंडों से मार भगाने की हरकत कतई नजर अंदाज़ करने वाली नहीं है. अब कोई किस मुंह से कहेगा कि सारा जहाँ हमारा. अब तो लगता है कि इस देश में आने-जाने के लिए पासपोर्ट और वीजा कि जरूरत पड़ेगी. एकता, अखण्डता की बड़ी-बड़ी बातें करते नेता और हम सब अब चुप हैं क्योंकि किसके लिए कहें, किससे कहें?
जागो उत्तर भारतीयों, महाराष्ट्र तुम्हारा नहीं है, ये देश एकता-शक्ति को भूल चुका है, इस देश में संविधान के लिए किसी के दिल में इज्जत नहीं रह गई है..........फ़िर क्यों मार खाने जाते हो?
बार-बार पिट कर भी महाराष्ट्र जाने की हरकत पर एक ही कहावत याद आती है "सौ-सौ जूते खाएं, तमाशा घुस के देखें"
बडा करारा तमाचा जडा है डाक्टर साब्।
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