20 अक्टूबर 2008

चाँद के पार चलो

चलो दिलदार चलो चाँद के पार चलो. ये पुरानी फ़िल्म पाकीजा का गाना हम नहीं गुनगुना रहे हैं...........ये गाना तो याद आया तब जब देश ने चंद्रयान की तैयारी कर ली. चंद्रमा पर जाने की तैयारी इस हद तक है कि अब चाँद की धरती हमारे क़दमों तले होगी. बेचारा चाँद अब घबरा रहा होगा कि अब यहाँ की शान्ति भी भंग हुई, इस देश में तो अब उपद्रव करने की कोई जगह तो बची ही नहीं है और विदेश में तमाम लोग ऐसे हैं जो उपद्रव मचा रहे हैं तो कहाँ उपद्रव किया जाए, शायद यही सोच कर चाँद पर जाने की तैयारी है.
आप लोग देख रहे हैं अपने देश की तरक्की.........अपने देश में बेघरों को घर नहीं पर जमीन तलाश रहे हैं चाँद पर.........अपने देश का पानी पूरी तरह समाप्ति पर ला दिया और अब तलाश है चाँद-मंगल पर पानी की..............देश के हालत काबू में नहीं हैं पर आतंक काबू करेंगे श्रीलंका में जाकर. आप सोच रहे होंगे कि ये श्रीलंका कहाँ से बीच में आ गया..........बात इस समय ये नहीं कि चाँद की चर्चा हो या श्रीलंका की.......चर्चा हो बस हमारी उपलब्धियों की. इस चर्चा (श्रीलंका वाली) से याद आयी एक कहावत - "अपना फटा सी न पायें, दूजे के फटे में टांग घुसाएँ."
कुछ भी हो बस हौसला न खो जाए ये ध्यान रखना होगा.......कुछ भी हो पर इंसानियत न खोये ये ध्यान रखना होगा. यदि पिछले महीने के वैज्ञानिक परीक्षण "महाप्रयोग" को याद करें तो देश का करोड़ों रुपये इसमें लगा और परिणाम क्या मिला? इसी तरह वर्तमान में देश के हालातों को ध्यान कर इस तरह के प्रयोग होने चाहिए....पर नहीं यहाँ तो शेयर कि गिरावट, मंदी, महंगाई के कारण लोगों के बाल बन रहे है. यदि सरकार न चेती तो चाँद तो दिखने ही लगेगी. तब चंद्रयान परीक्षण शत-प्रतिशत सफल सिद्ध होगा..........

3 टिप्‍पणियां:

  1. शायद सोच रहे हों कि हालत ऐसी कर दी है कि कल को पब्लिक खदेड़ कर भगायेगी तो कहाँ जायेंगे-उसी लिये काँद और मंगल पर ठिया तलाश रहे होंगे. :)

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  2. आपकी चिंता जायज है ।
    अच्छा व्यंग्य किया है आपने ।

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  3. Wah..wa
    व्यंग्य का पुट बढ़िया है
    साधुवाद

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