12 अक्टूबर 2008

अब रावण मारना मुश्किल है

विजयादशमी की सभी को शुभकामनाएं देने के बाद घर पर आने वाले लोगों से बधाइयों-शुभकामनाओं का आदान-प्रदान होता रहा. इसी बीच में अपने शहर उरई में रावण-दहन के बारे में ख़बर भी मिलती रही. इस बार ख़बर थोड़ी ख़ास इस कारण से हो गई थी कि सुबह से ही पानी बरसता रहा. हम सब लोग बार बार यही चर्चा कर रहे थे कि अब रावण का पुतला जलने में दिक्कत आयेगी. हुआ भी कुछ ऐसा ही। चूँकि हम तो रावण-दहन पर जा नहीं पाते, ऐसा नहीं है कि जाते नहीं थे. पहले ख़ुद बहुत गए फ़िर मुहल्ले के, अपने परिचितों के छोटे-छोटे बच्चों को दिखने ले जाते रहे. इधर अब कुछ ऐसे हालत हो गए हैं कि जा नहीं पाते.
रावण-दहन के बारे में जैसा लोगों ने बताया तो लगा कि अब कलयुग आ गया है. हम यार-दोस्त जो एक साथ बैठे थे उन्हों ने कहा कि अब रावण को मारना आसान नहीं है. हुआ ये कि बारिश के कारण पुतला पूरी तरह भीग चुका था. अब बेचारे राम जब तीर मारने चले तो तीर तो रावण को लगा पर उसमें आग नहीं लगी. कई प्रयासों के बाद भी जब रावण के पुतले ने आग नहीं पकडी तो आयोजकों ने, कारीगरों ने मिल कर उस पुतले में डीजल, पेट्रोल जैसे ज्वलनशील पदार्थ डाले. आग तेजी से लगे इसलिए रावण के पुतले के भीतर आग पकड़ने वाले, आवाज वाले पठाखे और अन्य दूसरे पदार्थ भी डाले गए. इतना सब होने के बाद ही रावण के पुतले ने आग पकडी.
अब क्या कहेंगे इसे?
वैसे आज के हालातों को देखने बाद लगता है कि रावण जगह-जगह खड़े हैं। तमाम रूप में तमाम सिरों के साथ। इसी बात पर बहुत पहले पढी एक कविता की कुछ पंक्तियाँ याद आतीं हैं
"जन-जन रावण,
घर-घर लंका,
इतने राम कहाँ से लाऊँ?"
लगता है रावण की आत्मा ने हमारे कंप्यूटर को भी कब्जे में कर लिया है. विजयादशमी से आज पाँच बार इस पोस्ट को लिखने बैठे और बिजली म्हारी ने हर बार धोखा देकर घंटों के लिए विदा ले ली. आज सबकी जय बोल कर लिखने बैठे और............

5 टिप्‍पणियां:

  1. नगर निगम ने रावण के पुतले के लिए जितनी राशि मंजूर की उस में से केवल 15% का रावण बना। बाकी रकम महापौर से लेकर बाबू तक मे बंट गई, इलाके के मंत्री भी शामिल थे। अब मरा केवल 15% रावण 85% तो जिन्दा ही रहा। अब रावण कैसे मरे?

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  2. kumarebdra jee aapka BHADAS se jana bilkul achhaa nahi lagaa--ye bhadaas waale log bhi na seedhi seedhi baat nahi karte hai....dusro ko to hiipocrate kahte hai ==jabki khud hi aise hi hippocrate hain===aapki saari post aur pratidin bhadas ko padhtaa hu ---in kamino ne, haraamiyo ne (ye khud hi apne aapko aisa ko kahte hai)aapki ek bhi baat ka sahi sahi jawab nahi diyaa---kya chutiyapa hai..........

    any way
    keep it up ur tempo of life
    bye

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  3. नीतिश जी आपका प्रोफाइल उपलब्ध नहीं है इस कारण यहीं धन्यवाद दे रहे हैं. आपका हमारी पोस्ट को पढ़ना वाकई अच्छा लगा. जहाँ तक भडास से जाने की बात है तो अब पोस्ट लिखना तो नहीं ही हो सकेगा हाँ टिप्पणियाँ तब तक इन..................................(लिख नहीं सकते) का दम निकालतीं रहेंगीं जब तक इनका साधू-संत होने का दंभ नहीं मिट जाता (वैसे साधो-संत भी हिन्दू हुआ न!!!!)

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  4. सच अब रावण मारना मुश्किल है क्योकी कई लोग अपने को रावण के बराबर ही मानते है
    भाई
    समाज मे हर विचारधारा के ब्यक्ति है लेकिन यह जरूरी नही की सब एक दूसरे से सहमत हो। भडास मे सुअर,कुत्ते और हरामजादे कहलाना हो सकता है की एक फ़ैशन हो लेकिन यह सभ्य समाज मान्य नही है।अगर मान्य होता तो हर ब्यक्ति गर्व से अपने को यही कहलाना पसदं करता। कुछ लोग तो नाम के कुत्ते ,सुअर हरामजादा है लेकिन कई कर्म से भी है उन्हे लोगो की भावनाओं से कोई मतलब नही

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  5. बहुत जबरदस्त व्यंग्य है। बधाई स्वीकारें।...
    वैसे रावण एक ही बार में मर जाएगा तो अगली पीढ़ी रावण बध के मेले का लुत्फ उठाने से वंचित रह जाएगी। फिर राम का क्या काम रह जाएगा??????

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