आज जिस विषय पर पोस्ट लिखने बैठे तो एकाएक मन में उथल-पुथल सी शुरू हो है. सोच उसे बाद में लिखेंगे पहले अपने मन की उथल-पुथल को शांत कर लें. अब ब्लॉग का चस्का ऐसा लगा कि लग रहा है कि जब तक कुछ पोस्ट न कर दो अधूरा सा रहता है खैर....पहले जिस विषय पर पोस्ट लिखने जा रहे थे उसका विषय दिमाग में था कि ऎसी घटनाओं की चर्चा करेंगे जो एक सी होते हुए भी दो तरह के परिणाम देतीं हैं या एक से लोगों पर दो तरह के निर्णय थोपे जाते हैं या एक सी स्थिति वालों को अलग-अलग तराजू में तौला जाता है।
फिलहाल तो अभी उस पर नहीं पर उसी से मिलता जुलता कुछ हल्का-फुल्का. बात एक सी स्थिति के बाद भी दो तरह की बातें होने की. वो ये कि एक गरीब का लड़का चने खा रहा था तो लोगों ने उसको ताने मारना शुरू कर दिए कि बेचारे को फांके करने पड़ रहे हैं इसी से चने खा कर काम चला रहा है. इसके ठीक उलट एक अमीर का लड़का भी उन्हीं लोगों को चने खाता दिखाई पडा अब वही लोग इस घटना को दूसरे नजरिये से देखने लगे और बोले (थोड़ा अहंकारी भाव दिखाते हुए) "अरे बड़े आदमी हैं शौक फरमा रहे हैं इसी कारण मुंह का स्वाद बदलने के लिए चना खा रहे हैं."
अब देखा आपने एक सी स्थिति "चना खाने की" और उसका असर, परिणाम दो तरह का हुआ.
इसी तरह कभी-कभी घटनाएं दो अलग-अलग तरह की होती हैं और सामने वाले की हैसियत के अनुसार उसका असर, परिणाम एक सा ही रहता है. इसको चाहे हैसियत कहें या फ़िर तुष्टिकरण या फ़िर चापलूसी. कुछ भी हो पर घटनाओं का अलग-अलग होना भी महत्तव नहीं रखता, महत्तव रखती है सामने वाले की स्थिति.
अब इस पर एक हलकी-फुल्की......एक राजा साहब अपने तमाम नौकरों, मंत्रियों, मातहतों आदि के साथ शिकार के लिए निकलते. शिकार छिटपुट ही रहता था. कभी किसी पक्षी को मार लिया कभी किसी छोटे जानवर को. अब इसे कुछ भी कहें, या तो राजा साहब बड़े जानवरों का शिकार करने से डरते थे या फ़िर उन्हें अपने निशाने पर भरोसा नहीं था.....कुछ भी हो हर शाम को राजा साहब अपनी बन्दूक थाम कर निकलते और उड़ते हुए पक्षियों के झुंड पर फायर झोंक देते. फायर झोंकना इसी से कहा जायेगा क्योंकि ये सब बिना निशाना लगाए अंदाजे से किया जाता. राजा साहब का फायर करना होता कि झुंड के दर्ज़नों पक्षियों में से एक-दो घायल होकर या मर कर ज़मीन पर आ गिरते. राजा साहब के मातहत राजा साहब की जय-जयकार करने लगते. राजा साहब अपनी गर्दन ताने बापस लौट आते.
ऐसा कई बार होता, झुंड होने के कारण रोज़ ही राजा साहब सफल रहते। अब एक दिन की बात राजा साहब ने बन्दूक से फायर झोंका पर ये क्या...........अबकी निशाने पर कोई भी पक्षी नहीं आया. अब.....अब सारे के सारे नौकर, मातहत, मंत्री शांत किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या कहा जाए?
ऎसी स्थितियों के लिए भी हर सरकार में कुछ प्यादे होते हैं जो जयकारा लगाते रहते हैं बस राजा साहब के प्यादों में एक प्यादा ऐसा भी था वही ताली बजा कर जोर से चलाया-"वाह राजा साहब! क्या बचा कर निशाना मारा, किसी भी पक्षी को बन्दूक की गोली नहीं लगी, वाह राजा साहब..."
सबने अब तारीफ करनी शुरू की और राजा साहब इस बात में अकड़ते रहे कि ऐसा फायर किया कि झुंड के दर्ज़नों पक्षियों में से कोई भी पक्षी नहीं मरा।
अब आप इसे क्या कहेंगे? कुछ ऐसा ही हो रहा है आजकल देश में. किसी बात के लिए कुछ, किसी के लिए कुछ और. क्या करियेगा जनाब........कहते रहिये वाह राजा साहब वाह!
सिर्फ और सिर्फ चापलूसी। और ऐसे ही लोग आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन सोच भी देखो तुरंत क्या सोचा। मैं तो सोच पर हंसता रह गया।
जवाब देंहटाएंवाह वाह!! आपकी लेखनी की धार भी राजा साहब की निशानेबाज जैसी असली बात को बचा कर निकल गई. आगे असल बात का इन्तजार है. क्या लेखनी पाई है, वाह!! :)
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअच्छा है की आपने भडास को छोड दिया यहां कुछ लोग अपनी बपौती मान कर चल रहे थे।मुझे आज भी घृणा होती है उस ब्यक्ति के लेख से जब उसने लिखा था की हमे पत्रकारो से किसी तरह की मदद नही चाहिए क्योकी इनका चरित्र हम अच्छी तरह जानते है। यह वाकया तब का है जब भडास के तरफ़ से दिल्ली के किसी सज्जन के लिए मदद की अपील की गई थी और मैने कुछ बाहैसियत भेटं की इच्छा जाहिर की थी।हालाकिं बाद मे रुपेश श्रीवास्तव भाई के प्रत्युत्तर के बाद वह तुच्छ भेटं उनके बैक एकाउंट मे ट्रासंफ़र किया था। आज भी मेरे ब्लाग मे उस ब्यक्ति के लिए सन्देश लिखा हुया है।(एक पत्र चरित्र वालो के नाम से पोस्ट पब्लिश है)
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