‘देश के युवा, देश के
छात्र, देश के जेन-जी संविधान को बचाएँगे. लोकतंत्र की रक्षा
करेंगे और वोट चोरी को रोकेंगे. मैं उनके साथ हमेशा खड़ा हूँ. जय हिन्द.’ सोशल
मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर ये विचार पोस्ट करने वाला व्यक्ति
कोई आम नागरिक नहीं बल्कि लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी हैं. 18 सितम्बर
2025 को पोस्ट इस विचार का उत्प्रेरक नेपाल की अराजकता के लिए जिम्मेदार जेन-जी
पीढ़ी को माना जा रहा है. इस पोस्ट के माध्यम से उन्होंने न केवल देश के युवाओं को
उकसाने का काम किया बल्कि वोट चोरी जैसे मुद्दे के द्वारा संवैधानिक संस्था पर
प्रश्नचिन्ह लगाने का काम किया है.
ईवीएम का मुद्दा हो या अब वोट चोरी का, इनके द्वारा राहुल गांधी किसी तरह की
सुधारवादी व्यवस्था का सहयोग नहीं करते बल्कि निर्वाचन आयोग पर सवालिया निशान लगाते
हैं. भाजपा की जीत पर ईवीएम से छेड़छाड़ करने, उसे हैक कर लेने का आरोप लगा देना तथा विपक्षी दलों की जीत को
लोकतंत्र की जीत बताने लगना आम बात हो गई है. ईवीएम से छेड़छाड़ किये जाने के आरोप भाजपा
पर लगातार लगाते रहने के बाद भी विपक्षी दलों द्वारा उसे सही सिद्ध न कर पाने से
मतदाताओं ने इसके पीछे की मंशा को भली-भांति समझ लिया. ये सहज रूप में समझ में आता
है कि विपक्षी दलों द्वारा अपनी हार का ठीकरा ईवीएम और निर्वाचन आयोग के ऊपर फोड़कर
लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को कटघरे में खड़ा करना रहा है. कुछ इसी तरह का काम अब
राहुल गांधी करते नजर आ रहे हैं वोट चोरी के नाम पर.
बिहार में पहले चरण के मतदान से ठीक एक दिन पहले राहुल गांधी ने प्रेस कांफ्रेंस के द्वारा हरियाणा
में वोट चोरी होने का आरोप लगाया. उनका कहना था कि पिछले साल हरियाणा के विधानसभा चुनाव
में 25 लाख फर्जी वोटों का इस्तेमाल किया गया जो कुल वोटों का लगभग 12.5 प्रतिशत है.
निर्वाचन आयोग और भाजपा पर मिलीभगत का आरोप लगाने वाले राहुल का मानना है कि इसके
चलते कांग्रेस हार गई. वोट चोरी के सन्दर्भ में उनके द्वारा एक महिला, जो ब्राजील
की मॉडल निकली, की
अनेकानेक फोटो के माध्यम से अपने आरोपों को सही साबित करने का भी प्रयास किया गया.
यहाँ एक बात समझ से परे है कि यदि राहुल गांधी को लगता है कि भाजपा और निर्वाचन
आयोग की मिलीभगत से वाकई वोट चोरी जैसा कदम उठाया जाता है तो इसके समाधान के लिए
वे अदालत की मदद क्यों नहीं ले रहे? उनको कम से कम इसका भान
तो होना ही चाहिए कि इसी देश में 12 जून 1975 को एक ऐतिहासिक फैसले में न्यायमूर्ति
जगमोहनलाल सिन्हा ने उनकी दादी इंदिरा गांधी को चुनावी कदाचार का दोषी पाया था. जिसके
चलते न्यायालय ने इंदिरा गांधी के चुनाव को अमान्य घोषित करते हुए उन्हें छह साल तक
अन्य दूसरा कोई भी चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया था. इस निर्णय के पश्चात्
लागू आपातकाल 1977 में समाप्त होने पर चुनाव सम्पन्न हुए. इन चुनावों में मतदाताओं
ने तानाशाही, चुनावी धाँधली के विरोध में न केवल कांग्रेस को बल्कि रायबरेली से
इंदिरा गांधी को भी हराया. आज संभवतः अराजकता फ़ैलाने की मंशा रखने के कारण राहुल
गांधी मतदाताओं की, न्यायालय की असल ताकत को स्वीकारना नहीं
चाह रहे हैं.
दरअसल राहुल गांधी को वोट चोरी, निर्वाचन आयोग की मिलीभगत को लेकर न्यायालय जाने से ज्यादा आसान लगता है
आरोप लगाना. इसमें न किसी तरह के सबूतों को न्यायालय में प्रस्तुत करना है और न ही
किसी तरह के तथ्यों की पुष्टि करना है. विगत वर्षों में अनेक मामलों में न्यायालय
की तरफ से उनको समझाए जाने के, सजा सुनाये जाने के दृष्टान्त
भी सबके सामने हैं मगर ऐसा लगता है जैसे उन्होंने इनसे कोई सीख नहीं लेने का मन
बना रखा है. इसके अलावा लगता है जैसे राहुल गांधी भारत में उसके पड़ोसी
देशों-पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश आदि की तरह का अराजक माहौल देखने का मंसूबा रखते हैं. यही
कारण है कि वे कभी यहाँ की लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर,
संवैधानिक संस्थाओं पर, संविधान पर आरोप लगाते हैं तो कभी
इंडियन स्टेट के नाम पर, सेना के नाम पर, आतंकियों के नाम पर, वोट चोरी के आरोपों द्वारा, जेन-जी पीढ़ी की क्रांति के रूप में अनर्गल बयानबाजी करते नजर आते हैं.
बिहार चुनावों के परिणामों ने साबित किया है कि यहाँ के मतदाताओं ने न केवल विशेष
गहन पुनरीक्षण को अपनी स्वीकार्यता प्रदान की है बल्कि राहुल गांधी के वोट चोरी के
आरोपों की भी हवा निकाल दी है. ईवीएम सम्बन्धी गड़बड़ियों में मुँह की खाने के बाद, अनेक चुनावों में लगातार हारने के
बाद अब बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण और वोट चोरी आरोपों के नकारे जाने के बाद
राहुल गांधी को स्वयं का विश्लेषण करने की आवश्यकता है. उनको अपने उन मार्गदर्शकों
का आकलन करने की आवश्यकता है जो निरर्थक मुद्दों के द्वारा उनके प्रधानमंत्री बनने
के सपने को हवा देते रहने के साथ-साथ देश को अराजकता की तरफ ले जाना चाहते हैं. उनको
ऐसे बयानवीरों से दूर रहने की आवश्यकता है जो उनके कपोल-कल्पित बयानों को
नाइट्रोजन बम, हाइड्रोजन बम साबित करने की कोशिश में राहुल
गांधी को ही मजाकिया पात्र बना दे रहे हैं.
ये बात न केवल राहुल गांधी को ही बल्कि कांग्रेस पार्टी को भी समझनी होगी कि
वे वर्तमान में लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं और उनके तमाम अनर्गल बयान न केवल
उनकी छवि को धूमिल करते हैं बल्कि देश की राजनीति को भी विवादास्पद बनाने के
साथ-साथ देश की संवैधानिक संस्थाओं को संशय के घेरे में खड़ा करते हैं. ऐसी राजनीति
भले ही उनके सन्दर्भ में उचित हो मगर देश के लिए, लोकतंत्र के लिए, संवैधानिक संस्थाओं के
लिए कतई उचित नहीं है.

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