ऐसे दृश्य हम सबकी आँखों के सामने से आये दिन गुजरते ही होंगे जबकि छोटे-बड़े व्यापारिक
संस्थानों, दुकानों, ढाबों आदि में बच्चे काम कर रहे हैं. कहीं कोई चाय-पानी पिलाने का काम कर
रहा है, कहीं कोई झाड़ू-पोंछा करने का काम कर रहा है. सामान्य
रूप में इस स्थिति को बाल श्रम के रूप में जाना जाता है. कृषिकार्य,
पारिवारिक व्यापार में मदद, होटल, ढाबों आदि में बच्चों को जबरिया काम पर
लगा दिया जाता है. कई बार इन बच्चों से बलपूर्वक भी काम लिया जाता है. ऐसा उस
स्थिति में सहजता से होता दिख रहा है जबकि बाल श्रम ( निषेध एवं विनियमन) संशोधन बिल
2016 पारित हो चुका है. इसके पश्चात् बाल श्रम के साथ-साथ किशोरों को भी श्रमिक
सम्बन्धी कार्यों में लगाये जाने को प्रतिबंधित करने के सम्बन्ध में बाल श्रम (निषेध
एवं विनियमन) संशोधन नियम 2017 पारित किया गया. यह संशोधन भारत में बाल और किशोर श्रम
को समाप्त करने के उद्देश्य से कानूनी ढाँचे को मजबूत करने की प्रतिबद्धता को
दर्शाता है. इसके द्वारा नियमों में बाल श्रम के स्थान पर बाल एवं किशोर श्रम शब्द
जोड़ा गया तथा व्यापक आयु वर्ग को मान्यता दी गई. यहाँ बाल श्रम का सन्दर्भ ऐसे कार्यों
से है जिसमें कार्य करने वाला व्यक्ति कानून द्वारा निर्धारित आयु सीमा से छोटा होता
है. इसको कई देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने बच्चों का शोषण करने वाला माना है.
भारत में बाल श्रम की समस्या दशकों से प्रचलित है. सरकारें लगातार इसके उन्मूलन
हेतु चिन्तित दिखाई देती हैं. देश के संविधान का अनुच्छेद 23 खतरनाक उद्योगों में बच्चों
के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है. भारत सरकार द्वारा बाल श्रम की समस्या को समाप्त करने
हेतु नियमित रूप से क़दम उठाए गए हैं. 1986 में बाल श्रम निषेध और नियमन अधिनियम पारित
किया गया. इसके अनुसार खतरनाक उद्योगों में बच्चों की नियुक्ति निषिद्ध है.
इसी तरह वर्ष 1987 में राष्ट्रीय बाल श्रम नीति बनाई गई थी. इसके बाद भी देश में
बाल श्रमिकों की बड़ी संख्या है. इन बाल श्रमिकों में अधिकतर घरेलू नौकर, ग्रामीण और
असंगठित क्षेत्रों में, कृषि क्षेत्र में कार्य करते हैं. इन सामान्य से कार्यों
के अलावा खतरनाक और जोखिमयुक्त माने जाने वाले उद्योगों जैसे बीड़ी बनाना, गलीचा बुनाई, चूड़ी निर्माण, काँच उद्योग, चमड़ा, प्लास्टिक का सामान निर्माण, विस्फोटक आदि में भी कम
उम्र के बच्चे लगे हुए हैं. भारत की जनगणना 2011 के अनुसार 5-14 वर्ष की आयु वर्ग के लगभग एक करोड़ बच्चे
कार्यरत हैं जिनमें से लगभग 80 लाख बच्चे ग्रामीण क्षेत्रों में कृषक और खेतिहर मजदूरों के
रूप में कार्य करते हैं.
किसी अधिनियम के अस्तित्व में आ जाने भर से बाल श्रम को रोका जाना सम्भव नहीं.
ऐसा इसलिए क्योंकि समाज में अनेकानेक परिवार ऐसे हैं जिनको अपना अस्तित्व बनाये
रखने के लिए, अपने जीवन
को बचाए रखने के लिए न चाहते हुए भी अपने बच्चों को श्रमिक के रूप में कार्य
करवाना पड़ता है. ऐसे परिवारों के माता-पिता के लिए बाल श्रम एक सामान्य सी
प्रक्रिया होती है. इस तरह की सोच का मुख्य कारण गरीबी को माना जा सकता
है. आज के दौर का यह बहुत बड़ा सच है कि विकास के बहुत बड़े-बड़े दावे करने के बाद भी
समाज से गरीबी को दूर नहीं किया जा सका है. आज भी बहुतायत में ऐसे परिवार हैं
जिनकी बुनियादी ज़रूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं. ऐसे परिवारों के सामने भोजन,
पानी, वस्त्र, घर, शिक्षा, चिकित्सा आदि की समस्या विकराल रूप में
होती है. ऐसी स्थिति में इन परिवारों को भरण-पोषण सहित अन्य जरूरतों को पूरा करने
के लिए अपने बच्चों को काम पर लगाना पड़ता है.
देखा जाये तो बाल श्रम और गरीबी का सह-सम्बन्ध बना हुआ है. इसका दुष्प्रभाव
निश्चित रूप से बच्चों के स्वास्थ्य पर तो पड़ता ही पड़ता है, उनकी शिक्षा भी नकारात्मक रूप से
प्रभावित होती है. जहाँ एक तरफ कुपोषण और अन्य शारीरिक बीमारियाँ आये दिन बच्चों
को घेरे रहती हैं वहीं दूसरी तरफ गरीबी और बाल श्रम में संलिप्त होने के कारण
बच्चों में अवसरों, शिक्षा की कमी के कारण मानसिक परेशानियाँ देखने को मिलती हैं. बाल
श्रम को रोकने के लिए सरकारों द्वारा समय-समय पर अनेक कानून बनाये गए हैं. इसी तरह
से बच्चों की शिक्षा व्यवस्था पर भी ध्यान देते हुए शिक्षा का अधिकार अधिनियम
पारित किया गया. इस कानून के द्वारा 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य
शिक्षा का अधिकार दिया गया है. इसके पीछे सोच यही रही है कि इस आयु-वर्ग के बच्चे
शिक्षा प्राप्त कर खुद को बाल श्रम, गरीबी आदि के चंगुल से
मुक्त कर सकें. इसके बाद भी स्थितियों को सुखद नहीं कहा जा सकता है.
एक कड़वा सच यही है कि सिर्फ कानूनों के द्वारा बाल श्रम को रोका जाना सम्भव
नहीं. इसके लिए जनजागरूकता भी आवश्यक है, परिवारों की गरीबी दूर होना आवश्यक है. ऐसे में बाल श्रम को समाप्त
करने के लिए समाज और सरकार दोनों को सामूहिक रूप से सक्रिय होना होगा. प्रत्येक नागरिक
को संकल्पित होना पड़ेगा कि वह बाल श्रम में संलिप्त लोगों को जागरूक करेगा. बाल
श्रमिकों के अभिभावकों को बाल श्रम से होने वाले नुकसान के बारे में समझाना होगा. सरकार
को ऐसे अभिभावकों की आय निर्धारण सम्बन्धी कदम उठाने होंगे. बच्चों को स्कूली शिक्षा
के साथ-साथ गरीबी उन्मूलन की दिशा में भी प्रयास करने होंगे. समवेत प्रयासों से ही
बाल श्रम को समाप्त करने की उम्मीद की जा सकती है.
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