1990 की बात
है जबकि स्नातक की पढ़ाई हेतु ग्वालियर के साइंस कॉलेज में एडमिशन लिया और रहने के
लिए आशियाना बनाया इसी कॉलेज के हॉस्टल को. प्रवेश की सारी औपचारिकताओं को पूरा
करने के बाद अगस्त महीने में स्वतंत्रता दिवस के एक-दो दिन पहले हॉस्टल में अपना
बोरिया-बिस्तर समेट कर आ गए. पहली मंजिल पर मिला कमरा नंबर 11. पिताजी के अभिन्न
परिचित सदस्य के बेटे राजीव त्रिपाठी हमारे रूम-मेट थे. राजीव का उरई से ही होने
के कारण किसी अनजाने मित्र के साथ कमरे में रहने का डर-भय समाप्त हो चुका था.
यहाँ तक एक परिचय
हॉस्टल के आरम्भिक दिनों से. पोस्ट का असल विषय तो ये है कि हॉस्टल के दिनों में
चाय के कारण एक ऐसा रिश्ता बन गया जो कभी सोचा नहीं था. आज इस पोस्ट को लिखने का
कारण भी यही है कि आज 21 मई को अन्तर्राष्ट्रीय चाय दिवस है और ऐसे में मन में आया
कि चाय की और कोई महत्ता हो या न हो मगर हमारे लिए एक महत्ता ये है कि एक रिश्ता
चाय के कारण बना जो आज भी पूरी गरिमा और स्नेह के साथ चल रहा है.
हॉस्टल में रहते
हुए करीब दो महीने हो गए थे. रैगिंग जैसी किसी डरावनी चीज से हॉस्टल का नाता नहीं
था बल्कि हम सभी छात्रों में आपस में बड़े-छोटे का नाता था. यहाँ सर या किसी और
औपचारिक सम्बोधन के स्थान पर अपने से बड़ों को भाईसाहब कहने का चलन था. हॉस्टल का
माहौल भी पूरी तरह से पारिवारिक था. न तो किसी कमरे में कोई ताला लगाता था और न ही
किसी सामान में ताला लगा मिलता था. ऐसा लगता था जैसे सभी सामान एक-दूसरे का है.
सभी के बीच आपस में कोई औपचारिकता नहीं. मैस में खाना खाते समय एक-दूसरे के सामान
का उपयोग करना हो अथवा अन्य किसी वस्तु का उपयोग, कहीं कोई संकोच नहीं हुआ करता था.
बाँए से - अक्षय भाईसाहब, हम, राकेश भाईसाहब (हॉस्टल के दिन-बलवंत भैया पहाड़ी पर-1991)
हॉस्टल के उन दिनों में कैसे अचानक से चाय पीने की आदत लग गई, पता नहीं. ऐसा इसलिए क्योंकि जितना याद आ रहा है, चाय पीने की आदत जैसी इंटरमीडिएट तक नहीं पड़ी थी उस समय तक सामान्य ढंग से जितनी चाय एक दिन में पीने को मिलती थी, उतनी ही पी जाती थी. इधर हॉस्टल में रहने के कारण चाय पीने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं रहा सो खूब चाय पी जाने लगी. उस समय हॉस्टल में कई लोग थे जो चाय पीते थे मगर एक-दो लोग ही थे जो हॉस्टल में चाय बनाने की व्यवस्था किये थे. ऐसे एक-दो लोगों में एक हम थे, जिनके पास चाय से सम्बंधित समस्त सामग्री चौबीस घंटे उपलब्ध रहती थी. हमारे कमरे की कभी-कभी की बैठकी में कुछ मित्र, कुछ भाईसाहब के चाय का शौक पूरा हो जाया करता था.
उन्हीं दिनों
हॉस्टल में कुछ नए साथियों का आना हुआ. शायद इसे ही संयोग कहा जायेगा या फिर
पूर्व-निर्धारित लिखित विधि का विधान कि कई-कई नए सदस्यों के आने के बीच में दो
लोगों से अनायास ही आकर्षण वाला परिचय हुआ, जैसे स्वतः ही. एक अक्षय कटोच भाईसाहब से और दूसरा नवीन शर्मा
से. अक्षय भाईसाहब हमसे एक क्लास आगे थे और नवीन हमारे ही साथ. दो-चार दिनों की
सामान्य मुलाकातों के बाद एक दिन मैस से रात का खाना खाकर निकलने पर अक्षय भाईसाहब
ने रोका और बोले क्यों चिंटू, सुना है तुम अपने कमरे पर चाय
बनाते हो? एकबारगी लगा कि कहीं ये कोई अपराध तो नहीं जो
हमारे सीनियर द्वारा ऐसा सवाल किया गया मगर अगले ही पल खुद को संयमित करते हुए
संक्षिप्त सा जवाब दिया, जी. ठीक है,
जब रात में बनाओ तो एक कप हमें भी पिला दिया करना, अक्षय
भाईसाहब का स्नेहिल आदेश हम तक आया और अक्षय भाईसाहब ग्राउंड फ्लोर के अपने कमरा नंबर
29 की तरफ चल दिए.
उसी रात को चाय
बनाकर एक गिलास में चाय 11 नंबर कमरे से 29 नंबर कमरे तक जाती. ये क्रम लगभग
हफ्ते-दस दिन चला कि एक दिन अक्षय भाईसाहब ने कहा कि क्यों अपने कमरे में अकेले
चाय के लिए परेशान होते हो. यहीं आ जाया करो, सब लोग इकट्ठे चाय पिया करेंगे. उनका इकट्ठे चाय पीने के बारे
में उनका खुद के साथ-साथ नवीन और राकेश शर्मा भाईसाहब की तरफ इशारा करना था. उसी
रात जब चाय के लिए अक्षय भाईसाहब के कमरे में जाना हुआ तो चाय के सारे सामान के
साथ उनका रूम भी सुसज्जित हमारा इंतजार कर रहा था. समय के साथ चाय, खाना-पीना, पढ़ाई, कॉलेज,
बाजार आदि जाना एकसाथ होने लगा.
अक्षय भाईसाहब
द्वारा उन्हीं दिनों कुछ बातें बहुत ही स्पष्ट रूप से समझाई गईं, जैसे कोई बड़ा समझाता है उसका सुखद
परिणाम ये है कि आज हॉस्टल छोड़े हुए अक्षय भाईसाहब को 33 वर्ष और हमें 32 वर्ष हो
गए हैं मगर हमारे और उनके बीच एक चाय के साथ बना बड़े-छोटे भाई का रिश्ता आज तक
पूरी ईमानदारी, पावनता के साथ चल रहा है. भाभी का स्नेह भी
हमे उसी तरह से मिलता है जैसे किसी देवर को मिलता होगा. अक्षय भाईसाहब को लेकर
हमारे और भाभी के बीच में खूब मजाक होता है. अक्सर सामने होने पर भाईसाहब बस
ख़ामोशी से हँसते हुए इधर-उधर हो लेते हैं.
वाकई सोच में, मानसिकता में,
व्यवहार में, बर्ताव में यदि ईमानदारी है, निष्ठा हो, स्नेह हो, आदर हो
तो एक प्याली चाय के साथ बने संबंधों में, रिश्तों में मिठास
सालों-साल बनी रहती है.
बढ़िया
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