20 मई 2025

सकारात्मक माहौल में नकारात्मक राजनीति

किसी भी देश के राजनैतिक विकास के लिए उसके सत्ता पक्ष और विपक्ष का समन्वित स्वरूप महत्त्वपूर्ण होता है. यह तब और भी विशेष हो जाती है जबकि देश में कोई संकट की स्थिति हो. आवश्यक नहीं कि संकट सीमा-पार से ही उत्पन्न हो, देश की आंतरिक स्थिति, प्राकृतिक स्थिति के कारण भी संकट का सामना करना पड़ता है. ऐसी किसी भी स्थिति में, आपातकाल में यदि सत्ता पक्ष और विपक्ष में समन्वय रहता है, उनमें सामंजस्य की भावना हो तो समाधान सहजता से हो जाता है. भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में चारों तरफ शांतिपूर्ण माहौल के बाद भी अशांति लगती है. प्रशासनिक सजगता के बाद भी अराजक तत्त्वों की हलचल दिखती है.

 

विगत दिनों देश का सामना एक असामान्य घटना से हुआ. घटना की प्रतिक्रिया में सरकार ने भी कदम उठाया. आतंकी घटना और उसके बाद ऑपरेशन सिन्दूर की समयावधि में ऐसा लगा जैसे सत्ता पक्ष और विपक्ष में तालमेल बना है. एकाधिक बयानबाजियों को छोड़ दें तो प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की तरफ से भी आतंकियों के विरुद्ध कार्यवाही की खुली छूट, सरकार को पूर्ण समर्थन जैसे सहयोगात्मक बयानों का आना हुआ. ऑपरेशन सिन्दूर सफलतापूर्वक अपनी पूर्णता को प्राप्त होता उसके पहले ही युद्ध-विराम को अपनाना पड़ा. यह निर्णय देशवासियों को किसी भी कीमत पर पसंद नहीं आया. पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को ध्वस्त करने की कार्यवाही का नागरिकों ने जितने खुले दिल से समर्थन किया, युद्द-विराम पर उतने खुले रूप में सरकार का विरोध किया.

 

यहीं देश के सत्ता-पक्ष और विपक्ष का चेहरा देखने का अवसर भी मिला. केन्द्र सरकार को किन कारणों, किन कूटनीतिक स्थितियों के चलते युद्ध-विराम पर सहमत होना पड़ा, ये अलग विषय है किन्तु इसके बाद भी सरकार के अडिग नजरिये में, कठोर निर्णयों में कोई परिवर्तन नहीं आया. प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा पाकिस्तान सहित सकल विश्व को स्पष्ट रूप से सन्देश दिया गया कि पाकिस्तान की परमाणु ब्लैकमेलिंग को सहन नहीं किया जायेगा. रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने भी कठोर लहजे में कहा कि ऑपरेशन सिन्दूर तो ट्रेलर था, पिक्चर अभी बाकी है. वैचारिक रूप से अपनी मनोवैज्ञानिक बढ़त के साथ सत्ता पक्ष कूटनीतिक, रणनीतिक रूप से तत्पर था किन्तु विपक्ष अपने पुराने रंग-ढंग में आने लगा.

 



पहलगाम आतंकी हमले के पहले भी कई बार देश ने पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के दंश को सहा है. हर बार देशवासियों की माँग होती कि पाकिस्तान पर हमला कर वहाँ के आतंकी ठिकाने ध्वस्त कर दिए जायें. पाकिस्तान के साथ कई बार युद्ध होने, संघर्ष की स्थिति होने पर देश में उपद्रव होने की आशंका रहती. आतंकी स्लीपर सेल द्वारा गृह-युद्ध जैसे हालात पैदा किए जाने का भय रहता. ऑपरेशन सिन्दूर के बाद सरकार ने पूरी सजगता दिखाई. युद्ध-विराम पर सहमति के बाद भी कार्यवाही को विराम नहीं दिया. उसके द्वारा कूटनीति को धार देते हुए न केवल देश में बल्कि बाहर भी पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया. वैश्विक स्तर पर पाकिस्तान के नापाक इरादे बताने के लिए, ऑपरेशन सिन्दूर की आवश्यकता के बारे में तथा आतंकवाद के विरुद्ध भारत के ठोस और कठोर नजरिये के बारे में सरकार द्वारा अभूतपूर्व कूटनीति तैयार की गई. केन्द्र सरकार ने आक्रामक कूटनीतिक पहल करते हुए सात सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल बनाये जो आगामी कुछ सप्ताहों में अफ्रीका, खाड़ी क्षेत्र, यूरोप, अमेरिका और पूर्वी एशिया जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों का भ्रमण करेंगे. इसका उद्देश्य सहयोगी देशों के साथ सामंजस्य स्थापित करना, पाकिस्तान की आतंकवाद में भूमिका को वैश्विक मंच पर उजागर करना है.

 

एक तरफ सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद की जानकारी देने वैश्विक यात्रा की तैयारी में है, तब नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी द्वारा विदेशमंत्री एस. जयशंकर पर ऑपरेशन सिन्दूर की जानकारी पाकिस्तान को पहले से देने का आरोप तथा वायुसेना के नष्ट हुए विमानों की संख्या माँगना समझ से परे है. राहुल गांधी के इस बयान को पाकिस्तान में भारत विरोधी वातावरण बनाने के उद्देश्य से इस्तेमाल किया जा रहा है. यदि राहुल गांधी का केन्द्र सरकार, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति नजरिये का, बयानों का इतिहास देखें तो यह पहली घटना नहीं है जबकि उनके नकारात्मक विचार सार्वजनिक हुए हैं. उनके द्वारा ऐसा किया जाना आम बात है, बिना यह विचारे कि देश-हित में इन बयानों का क्या प्रभाव पड़ेगा. देखा जाये तो राहुल गांधी का यह बयान देश-विरोधी ताकतों के लिए उत्प्रेरक का कार्य करेगा. संवेदनशील समय में ऐसा बयान देने का कारण तो वही बता सकेंगे किन्तु निश्चित ही ऐसे बयान देश की छवि को नुकसान पहुँचाते हैं. प्रतिनिधिमंडल के लिए कांग्रेस प्रस्तावित चार नामों से इतर शशि थरूर का नाम केन्द्र सरकार द्वारा न केवल प्रतिनिधिमंडल में शामिल करना बल्कि एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व देना कांग्रेस को कतई पसंद नहीं आया. ऑपरेशन सिन्दूर पर केन्द्र सरकार की प्रशंसा करने के लिए कांग्रेस उनसे नाराज चल रही है. ऐसा समझा जा रहा है कि राहुल गांधी का हालिया आरोप इसी की परिणति है.

 

कुछ भी हो मगर ऐसे समय में जबकि पूरा देश आतंकियों के सफाए के लिए एकजुट है; केन्द्र सरकार द्वारा न केवल आंतरिक रूप से बल्कि सीमा पार भी राजनैतिक-कूटनीतिक रूप से सशक्त और सकारात्मक कदम उठा रखे हैं; पड़ोस की भू-राजनीतिक स्थितियों में उथल-पुथल होने के बाद भी देश में स्थिरता वाले माहौल में ऐसे बयान नकारात्मकता पैदा करते हैं. वैश्विक रूप से अपनी सैन्य शक्ति की सशक्तता, निर्णयों की गम्भीरता, कूटनीति की सक्षमता की विकास-यात्रा में यही नकारात्मकता अवरोधक का कार्य करती है. निश्चित रूप से ऐसे बयान न तो परिपक्वता की पहचान कराते हैं और न ही गम्भीरता की.


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