25 मई 2025

सरकार की प्रतिबद्धता से मिटेगा नक्सलवाद

ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्टको अभी तक देश में चलाये गए नक्सल विरोधी अभियानों में सबसे बड़ा और सफल अभियान माना जा रहा है. 21 दिनों तक चले सबसे बड़े नक्सल विरोधी अभियान में सुरक्षा बलों ने छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर नक्सलवाद के विरुद्ध बड़ी सफलता प्राप्त की. 21 अप्रैल से 11 मई 2025 तक संचालित ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट को नक्सली समूहों के गढ़ तथा रणनीतिक रूप से संवेदनशील माने जाने वाले कर्रेगुट्टालु पहाड़ी क्षेत्र में चलाया गया. इस अभियान में केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), विशेष कार्य बल (एसटीएफ), जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) और राज्य पुलिस बलों का संयुक्त प्रयास सुखद परिणाम तक पहुँचा. इनके सकारात्मक-समन्वित सहयोग के परिणामस्वरूप 31 माओवादियों को मार गिराया. अभियान सञ्चालन के दौरान मिली कामयाबियों के साथ-साथ अभियान पूरा होने के बाद भी नक्सलवाद के मिटने के संकेत मिलते रहे. ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट के पूरा होने के बाद छत्तीसगढ़, तेलंगाना और महाराष्ट्र में 54 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया और 84 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया.

 



इसी तरह छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों ने बीजापुर-नारायणपुर सीमा पर एक मुठभेड़ में 27 खूँखार माओवादियों को मार गिराया. मारे जाने वालों में सीपीआई-माओवादी का महासचिव, शीर्ष नेता और नक्सल आंदोलन की रीढ़ नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू भी शामिल है. बसवराजू के मारे जाने को सबसे बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है क्योंकि विगत कई दशकों में यह पहला अवसर है जबकि नक्सलियों का महासचिव स्तर का कोई नेता मारा गया. बसवराजू देश में प्रमुख माओवादी हमलों का मास्टरमाइंड रहा. 2003 के अलीपीरी बम हमले में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका थी. आतंकी हमलों का सबसे घातक हमला इसी के निर्देशन में हुआ था जबकि 2010 में दंतेवाड़ा में किये गए हमले में 76 सीआरपीएफ कर्मी मारे गए. इसके अलावा आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की हत्या का प्रयास भी इसके द्वारा किया गया था. बसवराजू की मौत सीपीआई (माओवादी) के लिए बहुत बड़ी क्षति है साथ ही नक्सली आन्दोलन के लिए सामरिक और मनोवैज्ञानिक रूप से बहुत बड़ा झटका है.

 

दरअसल नक्सलवाद को एक तरह के वामपंथी उग्रवाद के रूप में भी देखा जाता है. यह हमारे देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी और गम्भीर चुनौतियों में से एक है. पश्चिम बंगाल में 1967 के नक्सलबाड़ी आंदोलन से उत्पन्न यह आंदोलन हिंसात्मक रूप लेकर सामानांतर शासन-सत्ता के रूप में फ़ैल गया. इसने केरल, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों को अपनी हिंसात्मक गिरफ्त में ले लिया. नक्सलियों ने इन राज्यों के सुदूरवर्ती, अविकसित और जनजातीय-बहुल क्षेत्रों को अपने कब्जे में लेकर अपनी गतिविधियों को संचालित करने का काम किया. ये लोग भले ही हाशिए के लोगों, जनजातीय समुदायों के हितार्थ लड़ने का दावा करते हों किन्तु उनके द्वारा सशस्त्र हिंसा, जबरन वसूली, बुनियादी ढाँचे को नष्ट करना किया जाने लगा. इस तरह की गतिविधियों का उद्देश्य सशस्त्र विद्रोह करते हुए लोकतांत्रिक संस्थानों को निशाना बनाना तथा अपनी शासन-सत्ता को स्थापित करते हुए भारतीय राज्य व्यवस्था को कमजोर करना है.

 

विगत कुछ समय से केन्द्र सरकार की सुरक्षा, अखंडता, समावेशी विकास, सहभागिता, सामुदायिकता आदि की नीति के चलते अनेकानेक क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं. इसी क्रम में केन्द्र सरकार द्वारा नक्सलवाद समाप्ति के लिए सतत प्रयास किये जा रहे हैं. सरकार ने स्पष्ट रूप से देखा और समझा कि नक्सलवाद के कारण सुदूरवर्ती और जनजातीय क्षेत्रों में विकास अवरोधित है. इसके चलते ये क्षेत्र शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, बैंकिंग, मूलभूत ढाँचा आदि से अछूते हैं. ऐसे में केन्द्र सरकार ने प्रतिबद्ध होकर 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद को पूरी तरह से समाप्त करने की रणनीति बनायी है. इसके लिए गृह मंत्रालय की समग्र रूपरेखा ‘समाधान – SAMADHAN’ को निम्न घटकों के अन्तर्गत क्रियान्वित किया जाना है.

S Smart leadership (कुशल नेतृत्व)

A Aggressive strategy (आक्रामक रणनीति)

M Motivation & Training (अभिप्रेरणा एवं प्रशिक्षण)

A Actionable Intelligence (अभियोज्य गुप्तचर व्यवस्था)

D Dashboard based Key performance indicators and key result area (कार्ययोजना आधारित प्रदर्शन सूचकांक एवं परिणामोन्मुखी क्षेत्र)

H Harnessing Technology (कारगर प्रौद्योगिकी)  

A - Action Plan for each threat (प्रत्येक रणनीति की कार्ययोजना)

N No access to financing (नक्सलियों के वित्त-पोषण को विफल करने की रणनीति)

 



सरकार की ठोस एवं स्पष्ट नीतियों के कारण नक्सलवाद को पर्याप्त क्षति पहुँची है. इससे नक्सल प्रभावित अनेक जिले राष्ट्र की मुख्यधारा में फिर शामिल हो सके हैं. नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या अप्रैल 2024 में 38 रह गई. ऐसे जिले जो पूर्णतः नक्सलवाद की चपेट में थे, उनकी संख्या 12 से घटकर 6 रह गई. इनमें छत्तीसगढ़ के चार जिले-बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर और सुकमा; झारखंड का एक-पश्चिमी सिंहभूमि और महाराष्ट्र का एक जिला-गढ़चिरौली शामिल है. वर्ष 2016 में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लिए आरम्भ की गई ‘सड़क आवश्यकता योजना’ अपने उद्देश्य में पूरी तरह सफल रही है. 2024 तक नक्सल प्रभावित इलाकों में लगभग बारह हजार किमी हाईवे का निर्माण और बीस हजार किमी के आसपास ग्रामीण सड़कें बनाई गईं. सड़क व्यवस्था को सुदृढ़ करने के साथ-साथ सरकार द्वारा पुलिस को मजबूत करने की दृष्टि से ‘विशेष अवसंरचना योजना’ द्वारा नक्सल प्रभावित राज्य के संवेदनशील जिलों में किलेबंद पुलिस स्टेशनों का निर्माण किया गया. इससे नक्सलवाद से जुड़ी हिंसा की घटनाओं में बीते वर्षों की तुलना में लगभग 80 प्रतिशत तक की कमी आई है. 2024 में इस तरह की कुल घटनाओं की संख्या 374 रह गई. इसी एक वर्ष में 290 नक्सलियों को निष्प्रभावित किया गया; 1090 गिरफ्तार किये गए और 881 ने आत्मसमर्पण किया. सुरक्षा बलों की सक्रियता के कारण नक्सली या तो मारे जा रहे हैं अथवा वे आत्मसमर्पण कर रहे हैं. इसका परिणाम यह हुआ है कि नक्सलवाद अब धीरे-धीरे सिमटता जा रहा है.

 

इसमें कोई दोराय नहीं कि नक्सलवाद देश के लिए एक गम्भीर समस्या बनी हुई है. इस आन्दोलन के आरम्भ होने से लेकर आज तक नक्सलवाद आन्दोलनकारियों का प्रयोजन पूरा नहीं हुआ है. किसी समय भूमिहीन किसानों के द्वारा सामंती व्यवस्था के विरोध में शुरू हुआ आन्दोलन आज सरकार के, सुरक्षा बलों के विरुद्ध संचालित किया जाने लगा है. अपने आन्दोलन के मूल उद्देश्य से भटककर नक्सली नेताओं द्वारा सरकारी व्यवस्था के समानांतर अपनी शासन-सत्ता स्थापित की जाने लगी. वर्तमान केन्द्र सरकार देश की सुरक्षा, अखंडता के लिए खतरा बनती किसी भी स्थिति का सफाया करने के लिए दत्तचित्त होकर पूरी गम्भीरता से कार्य कर रही है. सरकार के समन्वित सैन्य और विकासात्मक दृष्टिकोण ने नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई को निर्णायक रूप से बदल दिया है. नक्सलवाद जैसी कई दशकों पुरानी अत्यंत गम्भीर समस्या को एक निश्चित समयावधि में पूर्णतः समाप्त करना भले असम्भव प्रतीत हो रहा हो किन्तु जिस तरह निरन्तर सतर्कता, सामुदायिक सहभागिता और राजनीतिक संकल्प के साथ ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट को अंजाम तक पहुँचाया गया उससे नक्सलवाद-मुक्त भारत का लक्ष्य सम्भव भी लगता है, पहुँच के भीतर भी लगता है.

 


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