07 मार्च 2025

काग दही पर जान गँवायो

काग दही पर जान गँवायो वाक्य को लगभग सभी ने पढ़-सुन रखा होगा और इससे जुड़ी कहानी से भी लगभग सभी लोग परिचित होंगे. ऐसा जानने-समझने के बाद भी इस वाक्य से जुड़ी कहानी एक बार फिर आप सबके बीच रख दी जाए ताकि जिस-जिस को विस्मृत हो गई हो या फिर सही से याद न हो तो उसे पुनः स्मरण हो जाये.

 

इससे जुड़ी कहानी कुछ इस तरह से है कि एक बार एक कवि महोदय हलवाई की दुकान पहुँचे. वहाँ उन्होंने अपने खाने के लिए जलेबी और दही खरीदी और वहीं पड़ी मेज-कुर्सी पर बैठ कर खाने लगे. इस दौरान उन कवि महोदय ने गौर किया कि एक कौआ बहुत देर से दुकान से कुछ न कुछ खाने की जुगाड़ में थे. कई-कई बार की मेहनत के बाद भी उसे कुछ खाने को नहीं मिल पा रहा था क्योंकि हलवाई पूरी तत्परता से उसे भगा देता था. इसी बीच वो कौआ कहीं से जगह बनाने में सफल हो गया और वह दही की परात में चोंच मारकर उड़ गया. ये देखकर हलवाई को बहुत गुस्सा आया, उसने बगल में वजन तौलने वाला बाँट उठा कर उस कौए को दे मारा. कौए की किस्मत ख़राब थी सो वह बाँट सीधे उसे लगा और वो मर गया.

 

इस घटना को देख कवि हृदय द्रवित हो उठा. दही-जलेबी खाने के बाद कवि महोदय जब पानी पीने पहुँचे तो उन्होंने अपने हृदय की पीड़ा को वहीं बनी एक दीवार पर एक कोयले के टुकड़े से एक पंक्ति में लिख दिया-

‘काग दही पर जान गँवायो’

 



कवि महोदय तो अपना काम करके चले गए. उनके जाने के बाद वहाँ एक लिपिकीय कार्यों से सम्बंधित व्यक्ति आता है. वे महाशय अपनी नौकरी के दौरान कागजों में हेराफेरी करने के कारण निलम्बित हो गये थे. उस पानी की टंकी के पास पानी पीने के लिए आने पर उनको कवि महोदय की लिखी पंक्ति दिखाई दी. नजर पड़ते ही उनके मुँह से निकला कि बात तो सही है, बस शब्द लिखने में कुछ त्रुटि हो गई है. ऐसा मन में आते ही उन्होंने अपने मन के अनुसार कवि की लिखी पंक्ति में सुधार कर दिया. उन्होंने उस पंक्ति को कुछ इस तरह पढ़ते हुए सही कर दिया-

‘कागद ही पर जान गँवायो’

 

कवि और उस लिपिक टाइप वाले के जाने के बाद एक लड़का वहाँ आया. शक्ल-सूरत से वह आशिक टाइप, मजनू सरीखा समझ आ रहा था. चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रहीं थीं. ऐसा लग रहा था जैसे अपने प्रेम में हताश-निराश होकर कहीं से चला आ रहा है. पानी पीने के दौरान उसकी नजर भी उस पंक्ति पर पड़ी. पंक्ति पढ़ते ही उसे भी लगा कि कितनी सच्ची बात लिखी है, यदि उसे ये बात पहले पता चल जाती तो वो परेशान न होता. उसने उस पंक्ति को कुछ इस तरह से पढ़ा-

‘का गदही पर जान गँवायो

 

सीधा सा अर्थ है कि हम सभी लोग अपनी स्थिति, अपनी मनोदशा के अनुसार ही सामने वाली स्थिति, परिस्थिति का आकलन करते हैं. हमारी मानसिकता के चलते, कई बार पूर्वाग्रह के चलते वास्तविकता से दूर होकर किसी भी स्थिति को हम सभी अपने अनुसार देखते-समझते हैं. जबकि होना नहीं चाहिए ऐसा. हम सभी को किसी भी स्थिति, परिस्थिति, घटना आदि की वास्तविकता की जानकारी कर लेने के बाद अपना मंतव्य बनाना चाहिए, उस पर कोई फैसला लेना चाहिए.


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