पाकिस्तान में
ट्रेन अगवा करने की खबर से बलूचिस्तान चर्चा में है. यहाँ के अलगाववादी संगठन
बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी (बीएलए) के लड़ाकों ने 500 यात्रियों को क्वेटा से पेशावर ले जा रही जफर एक्सप्रेस को
अगवा कर लिया. उन्होंने ट्रेन में सवार महिलाओं, बुज़ुर्गों,
बच्चों और बलूच लोगों को सुरक्षित रिहा कर दिया किन्तु 20 सुरक्षाकर्मियों को मार दिया तथा सैकड़ों यात्रियों को बंधक बना लिया है. बीएलए
ने ट्रेन के बंधकों को छोड़ने के बदले बलूच राजनीतिक कैदियों और गायब किए गए व्यक्तियों की
बिना शर्त रिहाई की माँग की है. इस घटना के बाद भारत, पाकिस्तान सहित अन्य देशों में बलूच
लड़ाकों, बलूचिस्तान का नाम फिर चर्चा में है. भारत में इससे पहले अगस्त 2016 में
बलूचिस्तान का मुद्दा जबरदस्त तरीके से चर्चा में आया था जबकि भारतीय प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी ने लाल किले से अपने भाषण में बलूच नागरिकों पर पाकिस्तान के
अत्याचारों का जिक्र किया था. बलूच एक जातीय समूह है जो बलूचिस्तान के मूल निवासी
हैं. यह क्षेत्र पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान तक फैला हुआ
है. इनका आरोप है कि पाकिस्तान उनके प्राकृतिक संसाधनों का
दोहन कर रहा है और बदले में उनके मौलिक अधिकारों का हनन कर रहा है. इस कारण
बलूचिस्तान में लगातार विरोध प्रदर्शन होते रहे हैं. ट्रेन को अगवा करने वाली घटना
को इसी सन्दर्भ में देखा जा सकता है.
पाकिस्तान के
विरोध में बलूचिस्तान के अनेक संगठन शांतिपूर्ण आंदोलन करते रहे हैं तो कई संगठनों
ने हथियारबंद आंदोलन किये हैं. ऐसे हथियारबंद संगठन आए दिन पाकिस्तान के सैन्य और
नागरिक ठिकानों पर हमला करते रहते हैं. विगत लम्बे समय से एक हथियारबंद संगठन बीएलए
सबसे ज्यादा चर्चा में रहा है, जिसने पाकिस्तान को लगातार नुक़सान भी पहुँचाया है, उसे परेशान भी किया है. बीएलए को बलूचिस्तान
के मरी, बुगती, मेंगल और अन्य बलोच
कबीलों का समर्थन मिला हुआ है. इसके छह हजार से अधिक लड़ाके बलूचिस्तान और
अफगानिस्तान से लगे क्षेत्रों में सक्रिय हैं. यद्यपि पाकिस्तान ने 2006 में बीएलए पर पाबंदी लगा दी थी तथापि विगत कुछ वर्षों में बीएलए ने
बलूचिस्तान के ग्रामीण क्षेत्रों में अपना अच्छा नेटवर्क बना लिया है.
बलूचिस्तान के गठन
के बाद से ही वहाँ के लोग लगातार पाकिस्तान के विरुद्ध संघर्ष करते रहे हैं. दरअसल
पाकिस्तान बनने पर उसमें कई रियासतों का विलय हुआ, कई का विलय दबाव से करवाया गया
और कुछ पर कब्जा भी किया गया. पाकिस्तान ने अपने गठन के बाद मार्च 1948 को कलात रियासत का जबरन विलय कर
लिया. इसके बाद तीन अन्य रियासतों को मिलाकर बलूचिस्तान प्रांत बना दिया. इससे नाराज होकर बलूच लोगों ने विद्रोह शुरू कर दिए, जिन्हें पाकिस्तान
अपनी सैन्य शक्ति से दबाता रहा. एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के अनुसार 2011
से अब तक दस हजार से ज्यादा बलूच लापता हो चुके हैं. बलूच लोगों का
मानना है कि वो या तो पाकिस्तान की कैद में हैं या उन्हें मार दिया गया है. बलूच राष्ट्रवादियों का कहना है कि वे लोग अपनी मर्जी से पाकिस्तान में
नहीं मिले. उनका आरोप है कि पाकिस्तान ने कब्जा करने के बाद बलूचिस्तान के
प्राकृतिक संसाधनों का भारी दोहन किया है, बदले में बलूच लोगों को कुछ नहीं मिल
रहा. यहाँ क्रोमाइट, फ्लोराइट,
संगमरमर, सोना, गैस, लोहा और पेट्रोलियम
सहित प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं. इसके साथ ही 1100 किमी सीमा समुद्र से लगती है जो
समुद्री संसाधनों और व्यापार की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है. बलूचिस्तान के
साथ पाकिस्तान के भेदभाव को इससे ही समझा जा सकता है कि पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत
होने के बाद भी बलूचिस्तान सबसे कम जनसंख्या वाले और सबसे गरीब प्रांतों में से एक
है. पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का 44 प्रतिशत हिस्सा होने
के बाद भी कुल जनसंख्या का मात्र 6 प्रतिशत ही बलूचिस्तान में है.
पाकिस्तान ने
बलूचिस्तान का गठन अवश्य किया मगर उसे सदैव हाशिये पर रखा गया. यहाँ के निवासियों
को सेना सहित राजनीति में अपेक्षित प्रतिनिधित्व न मिलने के कारण असंतोष बना रहा. पाकिस्तान
सरकार द्वारा बलूचिस्तान की प्रांतीय परिषद को ज्यादातर बर्खास्त किये जाने के
कारण यहाँ स्वायत्तता, स्वतंत्रता, जातीय संघर्ष को बल मिला. इसका परिणाम यह हुआ
कि बलूचिस्तान में स्थानीय लोगों द्वारा बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए), बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (बीएलएफ), बलूच रिपब्लिकन आर्मी (बीआरए) जैसे संगठन बना लिए
गए. ये संगठन स्वयं को स्वतंत्रता सेनानी मानते हैं जबकि पाकिस्तान द्वारा इनको आतंकवादी
संगठन बताया जाता है. इन स्थानीय संगठनों के अलावा अलकायदा, क्वेटा शूरा-ए-तालिबान, तहरीक तालिबान आदि
जैसे कई कट्टरपंथी संगठन भी यहाँ सक्रिय हो गए हैं. इन समूहों की गतिविधियों ने
संघर्ष की स्थिति को जटिल बना दिया है. यहाँ की अस्थिर रणनीतिक स्थिति और बिगड़ी
अर्थव्यवस्था ने इन संगठनों को मजहबी कट्टरता के साथ संगठित अपराधों की तरफ बढ़ाया
है.
पाकिस्तान द्वारा
बलूचिस्तान की लगातार अनदेखी करने के कारण बढ़ते असंतोष, संघर्ष और पाकिस्तान की वर्तमान
स्थिति देखकर लगता है कि जल्द ही बलूचिस्तान अपने स्वतंत्र होने की घोषणा कर सकता
है. इस तरह का अंदेशा फरवरी 2025 में पाकिस्तानी सांसद मौलाना फजलुर्रहमान ने
व्यक्त करते हुए कहा था कि उनका देश एक बार फिर से टूट सकता है. बलूचिस्तान प्रांत
के एक हिस्से में पाकिस्तान से लोग खुश नहीं हैं. ये अलग होने का फैसला लेकर एक
बार फिर 1971 जैसी स्थिति पैदा कर सकते हैं, जब पाकिस्तान टूट गया था और बांग्लादेश बना था. यद्यपि भारत द्वारा
पाकिस्तान अथवा किसी दूसरे देश की आंतरिक स्थिति में दखल न देने की कूटनीति अपनाई
जाती रही है तथापि वर्तमान सन्दर्भ में उसे निश्चित रूप रूप से ऐसे हालात पर सजग
रहने की आवश्यकता है.
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