वर्तमान में दो
राष्ट्रों रूस और यूक्रेन के बीच का युद्ध जितनी चर्चा में है, उससे कहीं अधिक चर्चा दो राष्ट्रों
अमेरिका और यूक्रेन के राष्ट्रपतियों की मुलाकात की है. व्हाइट हाउस के ओवल हाउस
में मीडिया के सामने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प और यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की की
मुलाकात में शालीनता, मर्यादा, कूटनीति
के सभी मानदण्डों का विखंडन देखने को मिला. अत्यंत कठोर और अमर्यादित लहजे में हुई
बातचीत को समूचे विश्व ने देखा-सुना. अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प, उपराष्ट्रपति जेडी
वेंस ने सख्त अंदाज़ में यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की को खरी-खोटी सुनाई वह
अप्रत्याशित ही नहीं अशोभनीय भी है. सामान्य शिष्टाचार के रूप में ऐसा आचरण
स्वीकार्य नहीं है, इसके साथ-साथ वैश्विक कूटनीति के स्तर पर भी इसे मर्यादित नहीं
कह सकते. ट्रम्प के व्यवहार को देखकर लगा जैसे वे अपनी ताकत के बल पर, अपने सहयोग के एहसान के बदले यूक्रेन को युद्ध विराम के लिए एक तरह का
दबाव बनाने का प्रयास कर रहे हैं. यूक्रेन को युद्ध के समय अमेरिकी मदद का जिक्र
करना, मदद बिना यूक्रेन का युद्ध लड़ने में सक्षम न होने का
दंभ दिखाना, यूक्रेन पर तीसरे विश्व युद्ध जैसे हालात
उत्पन्न करने जैसा आरोप लगाना ट्रम्प का अहंकारी रवैया ही कहा जायेगा. अमेरिका संग
खनन समझौते के लिए वाशिंगटन पहुँचे ज़ेलेंस्की पर अशालीन ढंग से ट्रम्प द्वारा अपना
फैसला थोपने जैसा कदम उठाया गया.
जहाँ तक
रूस-यूक्रेन युद्ध की बात है तो पिछले तीन सालों से चले आ रहे इस युद्ध का कोई
अंतिम निष्कर्ष न तो निकला है और न ही निकलता दिखाई दे रहा है. इस बातचीत के बाद
तो इस दिशा में अवरोध खड़े होने के आसार अधिक नजर आ रहे हैं. चूँकि ट्रम्प अपने
चुनाव प्रचार के समय से ही रूस-यूक्रेन युद्ध विराम की बात करते रहे हैं, ऐसे में
उनकी हडबडाहट को समझा जा सकता है. इस जल्दबाजी के कारण ही ट्रम्प पूरी मुलाकात में
यूक्रेन के प्रति गम्भीर भाव नहीं दिखा सके. तीन वर्ष पूर्व आरम्भ हुए युद्ध के
लिए वास्तविक जिम्मेदार कौन है, यह चर्चा का विषय अवश्य हो सकता है. रूस कभी भी इससे
प्रसन्न नहीं रहा कि सोवियत संघ के कई देशों ने नाटो की सदस्यता ले ली. 1999 में अन्य यूरोपियन देशों के साथ हुई एक संधि
पर रूस ने इस बात के लिए हस्ताक्षर किये थे कि प्रत्येक देश अपनी सुरक्षा के लिये किसी
भी संगठन से जुड़ने को स्वतंत्र है. ऐसी संधि स्वीकारने के बाद भी रूस को सुखद
प्रतीत नहीं हो रहा था कि यूक्रेन नाटो से जुड़े. ये और बात है कि 2008 में यूक्रेन द्वारा नाटो की सदस्यता माँगे
जाने पर नाटो ने सदस्यता तो नहीं दी किन्तु भविष्य के लिए सदस्यता सम्बन्धी विकल्प
को खुला रखा.
बहरहाल, रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला करने का
एक कारण यूक्रेन द्वारा नाटो की सदस्यता की मंशा रखना था. रूस द्वारा हमला किये
जाने के पश्चात् यूक्रेन ने अपने दुश्मन के विरुद्ध हथियार नहीं डाले. ये भले ही
अमरीकी मदद के बिना सम्भव नहीं हुआ मगर इसका अर्थ यह तो कतई नहीं कि एक राष्ट्रपति
द्वारा दूसरे राष्ट्रपति को अपमानित किया जाये. ट्रम्प इस तथ्य से भली-भांति
परिचित हैं कि अमेरिका की सैन्य सहायता के बिना यूक्रेन द्वारा रूस का प्रतिरोध कर
पाना सहज नहीं होगा. ऐसे में युद्ध विराम के लिए ट्रम्प किसी अगुआ की भांति, किसी महाशक्ति की तरह, किसी सर्वमान्य नेता की तरह
कूटनीति अपनाते हुए ज़ेलेंस्की को युद्ध विराम के लिए तैयार कर लेते तो उनके
प्रयासों का महत्त्व समझ आता. जैसा कि ट्रम्प अपने बड़बोलेपन और अलग तरह की
कार्य-शैली के लिए जाने जाते हैं किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि वे स्वयं को अहंकारी, अक्खड़ तरीके से प्रस्तुत करते हुए किसी दूसरे राष्ट्राध्यक्ष पर दबाव
बनायें. यहाँ ट्रम्प को समझना चाहिए था कि ज़ेलेंस्की ने ट्रम्प से एक तरह का भरोसा
चाहा था. अमेरिका के साथ अपने खनिज संसाधनों को बाँटने की स्थिति में यूक्रेन को
भी आश्वासन चाहिए था कि रूस पीछे हट जाएगा, यूक्रेन के कब्ज़ाए हुए क्षेत्र वापस कर देगा और भविष्य
में यूक्रेन पर आक्रमण नहीं करेगा. देखा जाये तो एक राष्ट्राध्यक्ष के नाते युद्ध
विराम के बदले में ऐसी माँग अनुचित तो नहीं थी. ज़ेलेंस्की भी अच्छी तरह से जानते होंगे
कि रूस के विरुद्ध युद्ध करते हुए यूक्रेन लगातार अपना ही नुकसान कर रहा है. भले
ही यूक्रेन पूरी तरह से परास्त न हो पर वो रूस को अकेले नहीं हरा सकता है. ऐसे में
सम्भव है कि ज़ेलेंस्की और यूक्रेन के नागरिक युद्ध-विराम जैसी स्थिति चाहते हों, भले ही इसके लिए अमेरिका अथवा किसी
अन्य भरोसेमंद राष्ट्र की पहल का इंतजार कर रहे हों.
यहाँ ट्रम्प को यह
नहीं भूलना चाहिए था कि वे राजनयिक अधिकारों एवं शिष्टाचार सम्बन्धी वियना समझौते के
हस्ताक्षरकर्ता राष्ट्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. अहंकार में आकर वे यूक्रेन की
सार्वभौमिकता, सम्प्रभुता का अपमान
नहीं कर सकते. जेलेंस्की उनके मातहत किसी अधिकारी नहीं बल्कि एक संप्रभु, स्वतंत्र राष्ट्र के प्रतिनिधि के रूप
में वहाँ उपस्थित थे. यह अपमान और प्रदर्शन व्हाइट हाउस की असभ्यता है, संयुक्त राष्ट्र संघ के सिद्धांतों का मखौल उड़ाना है. राजनैतिक असहमति के
प्रदर्शन का यह तरीका निहायत ही निम्नस्तरीय है. ज़ेलेंस्की का खनिज समझौते पर
हस्ताक्षर किये बिना वापस लौट आना, ट्रम्प का एकतरफा ऐलान सा
करना कि ज़ेलेंस्की अभी शांति के मूड में नहीं हैं और जब शांति की बात करना चाहें
तो हमारे दरवाजे उनके लिए खुले हैं, निश्चित रूप से युद्ध
विराम सम्बन्धी स्थिति का बनने के पहले ही बिगड़ना है. ट्रम्प के इस तरह के बर्ताव
के बाद यूरोपीय देशों में भी हलचल बढ़ने लगी है; रूस को भी हिम्मत मिली होगी, अब वह
और अधिक हमलावर स्थिति में आने की कोशिश करेगा. यह बदलता परिदृश्य अनिश्चितताएँ
बढ़ाने का कार्य करेगा.
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