01 मार्च 2025

विलुप्त होती डायरी लेखन विधा

कई बार बहुत सी बातें अनायास ही निकल आती हैं, ऐसी बातें जिनका कोई चर्चा नहीं हो रहा होता है, जिनके बारे में कोई बात नहीं चल रही होती है. ये मानवीय स्वभाव है कि किसी भी बात को अन्य दूसरी बात से सम्बंधित कर ही लेते हैं. ऐसी ही किसी बात की चर्चा के दौरान अचानक से डायरी लेखन की चर्चा होने लगी. इस चर्चा के आरम्भिक बिन्दु में पहली बात यही उठी कि क्या आजकल डायरी लेखन बंद हो गया है? या फिर साहित्य की इस महत्त्वपूर्ण विधा को महत्त्व नहीं दिया जा रहा है? इन दो सवालों से इतर बात कोई और भी हो तो कहा नहीं जा सकता मगर एक बात ये तो है कि वर्तमान में डायरी लेखन की चर्चा सार्वजनिक रूप से नहीं हो रही है.

 

इधर सामान्य चर्चा के दौरान बात हो रही थी व्यक्ति के व्यवहार की, उसकी मनोदशा की और उससे बाहर निकलने की. इसी में एक बिन्दु यह भी सामने आया कि कोई व्यक्ति यदि किसी बात को लेकर परेशान है, समस्या से ग्रस्त है ऐसे में यदि उसके पास कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जिससे वह अपनी बात को खुलकर कह सके तो यदि वह अपनी बात को लिखकर व्यक्त कर दे तो उसकी समस्या का बहुत बड़ा हिस्सा स्वतः ही वहीं समाधान में बदल जाता है. किसी के लिए यह बात कितनी महत्त्वपूर्ण है, कितनी प्रभावी है इसका तो पता नहीं पर व्यक्तिगत रूप से इस कदम से हमें बहुत लाभ हुआ है. किसी तरह की समस्या होने पर, कुछ दिक्कत होने पर अपनी बात न कह पाने की स्थिति में कागज़ पर कुछ लिख देने से, कोई कविता लिख देने से, उस विषय से सम्बंधित कोई लेख लिख देने से दिल-दिमाग को बहुत आराम मिलता है. संभवतः डायरी विधा के जन्मने का एक कारण यह भी रहा होगा.

 

आजकल देखने में आ रहा है कि कम उम्र के बच्चे भी हताशा-निराशा में आत्महत्या जैसा कदम उठा रहे हैं, मौत को गले लगा रहे हैं. दुनियादारी की भागदौड़ इस कदर तेज है कि अपने परिवार में ही रुककर किसी दूसरे सदस्य की समस्या को देखने की फुर्सत नहीं है, ऐसे में समाज से क्या उम्मीद की जाये. आज के बच्चे अपने आपमें ही नितांत एकाकी जीवन गुजार रहे हैं, ऐसे में उनके सामने अपनी बात कहने की, अपनी समस्या कहने की दिक्कत तो है ही. उनको न तो उनकी पढ़ाई के दौरान, न ही पारिवारिक क्षणों में इस तरह की किसी भी प्रक्रिया से परिचित करवाया गया है. ऐसी स्थिति में उनको डायरी लेखन की वास्तविकता से क्या ही अवगत कराया गया होगा, ये सोचा-समझा जा सकता है.

 

इधर सामान्य चर्चाओं में बहुत से लोगों द्वारा डायरी लेखन और ब्लॉग लेखन को एकसमान, एक जैसा बताने का प्रयास किया जा रहा है. देखा जाये तो ये दोनों स्थितियाँ ही अलग हैं. इन दोनों के बीच किसी भी तरह का कोई साम्य नहीं है. आज की पीढ़ी को डायरी लेखन का महत्त्व समझाना होगा. हिन्दी साहित्य के पाठ्यक्रम में इसे किसी पेपर के एक बिन्दु के रूप में रखने से इस विधा का भला नहीं हो रहा. डायरी लेखन विधा को एक स्वतंत्र विधा के रूप में विकसित करने की, स्थापित करने की आवश्यकता है.


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