24 फ़रवरी 2025

डरना मना है

कुछ दिन पहले हमारे एक मित्र ने बातचीत के दौरान पूछा कि डर, भय क्या होता है? किसे कहते हैं? इससे कैसे निपटा जाये? ये सवाल देखने में बहुत ही सहज मालूम पड़ते हैं पर इनके जवाब उतने सहज नहीं हैं. उस समय सामान्य बातचीत के चलते सहज रूप में भय का अर्थ अलग-अलग घटनाओं, स्थितियों के सन्दर्भ में अलग-अलग ही समझ आया. यदि स्थिति आर्थिक है तो भय अलग तरह का होगा, स्थिति यदि सामाजिक है तो डर के पीछे का कारण दूसरा होगा. स्थितियों के अनुसार भय का होना अलग-अलग हो सकता है. ऐसे में इन स्थितियों के सन्दर्भ में उत्पन्न होने वाले भय पर यदि ध्यान दिया जाये तो सहज रूप में समझ आता है कि व्यक्ति के पास से कुछ भी खो देने की स्थिति, कुछ बुरा हो जाने की स्थिति भय को जन्म देती है. इन कारणों-कारकों के साथ-साथ देखा जाये तो भय एक तरह की मानसिक अवस्था है.

 



सम्भव है कि इसके भी अपने-अपने सन्दर्भ निकाले जाएँ, बताये जाएँ मगर जैसा कि व्यक्तिगत अनुभव से, सामाजिक अनुभव से जो देखने-सीखने को मिला उसके अनुसार खुद के पास से खो देने, गलत हो जाने की अवस्था ही भय का कारण है. आर्थिक स्थिति मजबूत होने पर भी बहुसंख्यक लोगों के मन-मष्तिष्क में एक तरह का भय बना ही रहता है. धन के चोरी हो जाने का, आर्थिक रूप से घाटा हो जाने का, किसी निवेश में हानि हो जाने का. इसी तरह से कोई भी क्षेत्र हो सभी में किसी न किसी रूप में भय व्याप्त रहता है. पारिवारिक रूप में भी भय किसी अपने को खो देने का, उसके साथ गलत हो जाने का लगा रहता है.

 

भय से निदान के बारे में भी मित्र द्वारा जानकारी माँगी गई. ऐसा संभवतः उका हमारे स्वभाव को देखते हुए ही रहा होगा. बहुत कम स्थितियाँ ऐसी होती हैं जहाँ कि हमें भय घेरता है. ऐसा नहीं है कि हमें डर नहीं लगता है अथवा भय व्याप्त नहीं होता मगर उसकी स्थितियाँ अलग हैं. किसी भी छोटी-बड़ी बात से घबरा जाना हमारा स्वभाव नहीं. ऐसी कोई स्थिति जो अभी तक सामने नहीं आई है, जिसका महज अंदेशा है या फिर जिसका अनुमान लगाया जा रहा है, ऐसी किसी भी स्थिति से हम नहीं घबराते हैं. इसके अलावा दैनिक जीवन के अनेकानेक उतार-चढाव से भी घबराहट नहीं होती, भय नहीं लगता. एक सीधा सा विचार है कि जिस स्थिति से निपटा जा सकता, उससे डरना कैसे और जिससे निपटा नहीं जा सकता, उससे डरना कैसा, उससे निपटने के प्रयास पर विचार करना चाहिए.

 

सामान्य रूप में जो हमें समझ आया कि यदि व्यक्ति आत्मविश्वास मजबूत बनाये रखे, खुद को हताश-निराश न होने दे तो वह बहुत हद तक अपने भय पर नियंत्रण पा सकता है. संयम रखने से, जल्दबाजी न करने से और मन को शांत रखने से भी भय पर नियंत्रण पाया जा सकता है. भय की स्थिति में होता यही है कि व्यक्ति अपने विश्वास को खो देता है, हड़बड़ी में गलत कदम उठाने लगता है, सोचने-विचारने की क्षमता खोने लगता है. इस कारण से भय उस व्यक्ति को अपने अधिकार में ले लेता है. इससे भी स्थिति सुधरने की बजाय बिगड़ने लगती है. बेहतर हो कि व्यक्ति स्थिति को पहचानते हुए उसका सामना करने के लिए खुद को तैयार करे. इससे भयग्रस्त होने वाली स्थिति से बचा जा सकता है.


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