मणिपुर में पिछले
साल शुरू हुई हिंसा की स्थिति यह है कि राज्य में हालात अब भी सामान्य नहीं हुए
हैं. हिंसा ने अब और भी भयानक रूप ले लिया है. विगत एक साल से अधिक समय से चल रही
हिंसा में विद्रोहियों द्वारा पहली बार ड्रोन का, रॉकेट का इस्तेमाल किया गया. अब स्थिति को और ज्यादा ख़राब
इसलिए भी कहा जा सकता है क्योंकि स्थानीय पुलिस ने दावा किया है कि राज्य में
ताज़ा हिंसा में अत्याधुनिक ड्रोन और आरपीजी (रॉकेट प्रोपैल्ड गन अर्थात कंधे पर
रखकर रॉकेट दागने वाली बन्दूक) का उपयोग किया गया है. यह खतरनाक है स्थिति क्योंकि
ऐसे हथियारों का प्रयोग आमतौर पर युद्ध में किया जाता है. सुरक्षाबलों और आम
नागरिकों के विरुद्ध इसका इस्तेमाल खतरनाक संकेत देता है. कुकी समुदाय के खतरनाक
इरादों को इसी से समझा जा सकता है कि उनके द्वारा 6 सितंबर को राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. मैरेम्बम
कोइरेंग के घर पर रॉकेट बम फेंका गया. इस हमले में एक बुजुर्ग की मौत हो गई और पाँच लोग घायल हो गए. दरअसल मणिपुर के जिरीबाम
में कुकी उग्रवादियों द्वारा असम की सीमा से सटे मोंगबुंग गाँव में घुसकर मैतेई
समुदाय के एक बुजुर्ग की हत्या किये जाने के बाद वहाँ हिंसा भड़क गई.
मणिपुर भारत के
पूर्वोत्तर में स्थित राज्य है. जिसमें बहुसंख्यक रूप में मैतेई समुदाय के लोग
निवास करते हैं, जबकि लगभग 43
प्रतिशत जनसंख्या कुकी और नगा समुदाय
के लोगों की है. यहाँ तीन
मई 2023 को मैतेई (घाटी बहुल समुदाय) और कुकी (पहाड़ी बहुल समुदाय) के बीच हिंसा
शुरू हुई थी. मैतेई समाज की माँग थी कि उनको भी कुकी की तरह राज्य में अनुसूचित
जनजाति (एसटी) का दर्जा दिया जाए. इस माँग के सापेक्ष मणिपुर उच्च न्यायालय ने 27
मार्च 2023 को राज्य सरकार से मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति
में शामिल करने पर विचार करने को कहा. इस आदेश के कुछ दिन बाद ही राज्य में जातीय
हिंसा भड़क गई और कई लोगों की जान भी गई. मैतेई समुदाय की इस माँग को हिंसा के
पीछे का मुख्य कारण बताया जा रहा है. उनकी इस माँग का विरोध मणिपुर के पहाड़ी
इलाक़ों में रहने वाले कुकी जनजाति के लोग कर रहे हैं.
मणिपुर हिंसा को
लेकर कुकी समुदाय के साथ-साथ भाजपा विरोधी राजनैतिक दलों ने वहाँ की भाजपा सरकार
पर आरोप लगाये हैं. असल में मणिपुर में भाजपा का शासन है और मुख्यमंत्री बीरेन
सिंह मैतेई समुदाय से आते हैं, इस कारण से कुकी समुदाय का आरोप है कि नशीले
पदार्थों के व्यापार को ख़त्म करने की आड़ में उनको निशाना बनाया जा रहा है. इसके
उलट वहाँ कुकी समुदाय के लोग राज्य के विद्रोही समूहों को सरकार, मैतेई समुदाय के विरुद्ध भड़काने,
धर्मान्तरण करवाने, नशीले पदार्थों का व्यापार आदि जैसे
कार्यों में संलिप्त बताये जा रहे हैं. मैतेई जनजाति का मानना है कि वर्षों पहले
उनके राजाओं ने म्यांमार से कुकी समुदाय के लोगों को युद्ध लड़ने के लिए बुलाया था.
उसके बाद ये लोग स्थायी रूप से यहीं बस गए. स्थायी नागरिक के रूप में रहते हुए
कुकी समुदाय के लोगों ने राज्य को नुकसान ही पहुँचाया है. इन लोगों ने रोजगार के
लिए जंगल काटे और अफीम की खेती करनी आरम्भ की. इससे मणिपुर नशीले पदार्थों की
तस्करी का अड्डा बन गया है.
मणिपुर हिंसा भले
ही मैतेई और कुकी समुदाय के बीच का संघर्ष लगे मगर इसके मूल में एक तरह का
षड्यंत्र ही है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसे संकेत मिलते रहे हैं कि बांग्लादेश, म्यांमार और भारतीय पूर्वोत्तर के अरुणाचल
प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम, मेघालय और मणिपुर को मिलाकर ईसाई देश बनाने की साजिश रची जा रही है. इस
साजिश से इंकार भी नहीं किया जा सकता है क्योंकि नागालैंड,
मिजोरम, मेघालय ईसाई बहुल हो चुके हैं और जिस तरह से
धर्मान्तरण का खेल पूर्वोत्तर में चल रहा है, उसे देखते हुए
निकट भविष्य में मणिपुर भी ईसाई बहुल हो जायेगा. मणिपुर का मैतेई समुदाय जहाँ एक
तरफ नशे कारोबार का विरोध कर रहा है दूसरी तरफ ईसाइयत की राह में रोड़ा बना हुआ है.
इस हिंसा को पूर्वोत्तर
में अंतरराष्ट्रीय साजिश के तौर पर देखा जाना चाहिए. मैतई और सेना निरन्तर कुकी विद्रोहियों
के निशाने पर है. अंतरराष्ट्रीय ड्रग रैकेट और पूर्वोत्तर राज्यों को भारत से अलग करने
की मंशा रखने वाली विदेशी शक्तियाँ भी इसमें सक्रिय हैं. अत्याधुनिक हथियारों की आपूर्ति
इसका संकेत है. अभी बांग्लादेश में जो कुछ हुआ उसे मणिपुर की पूर्वपीठिका कहा जा
सकता है. ऐसे में न केवल राज्य सरकार को बल्कि केन्द्र सरकार को मणिपुर जनता की
मदद से कुकी समुदाय के अवैध अप्रवासियों की चुनौतियों का एकजुट होकर सामना करना
चाहिए. यह राज्य के साथ-साथ वहाँ के मूल नागरिकों के हित में है. यहाँ पर एनआरसी
की अनिवार्यता महसूस हो रही है. सरकार इसे लागू करके सभी वास्तविक मणिपुर
निवासियों को उनके अधिकार प्रदान करे. मतदाता सूची, दस्तावेजों का प्रमाणीकरण करके घुसपैठियों को चिन्हित करने का
कार्य किया जाये. अवैध लोगों को बाहर करने का अभियान चलाया जाये. उग्रवादियों के
रूप में चिन्हित कुकी सशस्त्र समूहों और संगठनों पर प्रतिबंध लगाया जाये. जिस तरह
से पिछले कुछ समय से चीन और अमेरिका भारत के पड़ोसी देशों में सक्रिय हुए हैं;
श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश के
आंतरिक हालात जिस तरह के हुए उसे देखते हुए मणिपुर में चल रही हिंसा को महज दो
समुदायों का संघर्ष समझना भारी भूल हो सकती है.
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