सत्ताएँ,
कुर्सियाँ, प्राधिकारी जब अपने-अपने दायित्वों से च्युत होने लगते हैं, हो जाते हैं तो उनको अपनी आवाज़
सुनाने के लिए प्रताड़ित पक्ष को कुछ न कुछ कदम उठाने ही पड़ते हैं. अक्सर प्रताड़ित
पक्ष अपनी अवहेलना के कारण, अपने कार्य में प्रगति होता न
देख क्षुब्ध होकर क्रोधवश ऐसे कदम उठा लेता है जिसे सहज रूप में स्वीकार नहीं किया
जाता है. ये जानते हुए भी कि विरोधात्मक कदम उठाने वाला पक्ष अपनी ओर से कतई गलत
नहीं है मगर समाज आदर्शात्मक रूप में ऐसे किसी भी कदम का समर्थन नहीं करता है जो
कि किसी भी तरह के आदर्श का ध्वंस करते हों, किसी भी तरह से
सामाजिक व्यवस्था में अवरोध पैदा करते हों. यह बिन्दु उस समय और भी महत्त्वपूर्ण
हो जाता है जबकि विरोध का मुद्दा शिक्षित वर्ग से जुड़ा हो,
शिक्षकों से सम्बंधित हो. इस को ध्यान में रखते हुए गांधी महाविद्यालय, उरई के प्राध्यापकों ने व्यवस्था के विरुद्ध आवाज़ भी उठाई और विरोध करने
का, अपनी नाराजगी को प्रदर्शित करने का एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया.
विरोध का, नाराजगी का मामला चूँकि महाविद्यालय
के प्राध्यापकों से जुड़ा हुआ था, ऐसे में उनके द्वारा ऐसे
किसी भी कदम को गलत ठहराया जा सकता था, जिससे किसी व्यवस्था
में अव्यवस्था उत्पन्न होने लगे. गुरुतर दायित्व-बोध का भान होने के कारण प्राध्यापकों
द्वारा किये गए विरोध प्रदर्शन से महाविद्यालय के किसी भी कार्य में किसी भी तरह
की रुकावट नहीं आई. महाविद्यालय में जिन कक्षाओं में अध्यापन कार्य चल रहा था, उन कक्षाओं का सञ्चालन भी सुचारू रूप से होता रहा. स्नातक और परास्नातक
कक्षाओं में नवीन सत्र हेतु प्रवेश प्रक्रिया भी संचालित है,
प्राध्यापकों ने इसका भी ध्यान रखा और उनके विरोधात्मक कदम के बाद भी
विद्यार्थियों के प्रवेश सम्बंधित कक्षाओं में होते रहे. कार्यालयीन कार्य भी
यथोचित रूप से संपन्न होते रहे.
आपको बताते चलें
कि महाविद्यालयों में कैरियर एडवांसमेंट स्कीम के अन्तर्गत प्राध्यापकों की
प्रोन्नति प्रक्रिया को अपनाया जाता है. इस प्रक्रिया के अंतर्गत प्रोन्नति के
नियमों और सेवा-शर्तों को पूरा करने वाले प्राध्यापकों को निश्चित प्रारूप में
अपना आवेदन समस्त अभिलेखों के साथ प्राचार्य कार्यालय में जमा करना पड़ता है. गांधी
महाविद्यालय, उरई के दस
प्राध्यापकों द्वारा यथोचित सेवा-शर्तों को पूरा करने के बाद अपनी प्रोन्नति
सम्बन्धी आवेदन की फाइल को समस्त दस्तावेजों के साथ गत वर्ष, 2023 में 15 सितम्बर
को प्राचार्य कार्यालय में जमा किया गया था. उसके बाद से अद्यतन सम्बंधित
प्राधिकारी द्वारा, प्राचार्य द्वारा कोई आधिकारिक जानकारी किसी भी प्राध्यापक को
नहीं दी गई और न ही इस सम्बन्ध में बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी द्वारा गठित साक्षात्कार पैनल को आधिकारीक ढंग से सूचित किया गया.
सम्बंधित उच्चाधिकारी, प्राधिकारी की इस तरह की
कार्य-संस्कृति के चलते पूरा एक वर्ष हो जाने के बाद भी वे दस प्राध्यापक अपनी
प्रोन्नति की राह ताकने में लगे हैं.
इस तरह की
कार्य-संस्कृति,
कार्य-प्रणाली से क्षुब्ध होकर उन दस प्राध्यापकों के साथ-साथ अन्य जागरूक
प्राध्यापकों ने विरोध का, अपनी नाराजगी प्रदर्शित करने का एक नया तरीका अपनाया.
इस विरोध प्रदर्शन में सम्बंधित प्राध्यापकों ने एक वर्ष से फाइलों की स्थिति में
प्रगति ने देखते हुए प्राचार्य कार्यालय में फाइल जमा करने की पहली वर्षगाँठ मनाई.
अवसर भले ही विरोध करने का रहा, भले ही नाराजगी दिखाने का था, प्राचार्य की उदासीन कार्य-प्रणाली के विरुद्ध था मगर किसी भी तरह का तो
शोर-शराबा किया गया, न किसी तरह की नारेबाजी की गई, न किसी तरह से कक्षाओं में अध्यापन कार्य को बाधित किया गया. नारेबाजी, शोरगुल, हंगामा आदि से उलट इस अवसर पर प्राध्यापकों
द्वारा केक काट कर अपना विरोध जताया गया. केक के साथ-साथ महाविद्यालय के समस्त
प्राध्यापकों, कर्मचारियों को जलपान भी करवाया गया. इसमें भी
प्राध्यापकों ने गंभीरतापूर्वक व्यवहार अपनाते हुए इस बात का ध्यान रखा कि
महाविद्यालय का अध्यापन अथवा कार्यालयीन कार्य बाधित न हो, इसलिए सभी विभागों में
जलपान पहुँचाये जाने की व्यवस्था की गई.
महाविद्यालय के
प्राध्यापकों ने इस अवसर पर कहा कि वे लोग शिक्षित वर्ग से आते हैं, शिक्षा देने
का कार्य करते हैं. और तो और शिक्षक को राष्ट्र निर्माता कहा जाता है, ऐसे में
उनके द्वारा विरोध के तरीके से एक तरह का सन्देश भी देना उनका उद्देश्य था, साथ ही विद्यार्थियों में भी
चेतनात्मक विकास करवाना था. आज विरोध, अनशन के नाम पर देश की, समाज की संपत्ति को नुकसान पहुँचाया जाता है, समाज
में अराजकता फैलाई जाती है, यह सब नकारात्मक प्रवृत्ति का परिचायक है. उन्होंने
अपने इस तरह के शालीन, सभ्य, शांत
विरोधात्मक कदम के द्वारा प्रयास किया है कि अपने दायित्वों,
कार्यों के प्रति उदासीन प्राचार्य, प्राधिकारी संभवतः जाग
सकें. प्राध्यापकों ने कहा कि प्रोन्नति के इस मुद्दे के साथ-साथ एनपीएस का मुद्दा
भी उनके महाविद्यालय में उलझा हुआ है. इसके लिए भी प्राध्यापकों और कर्मियों
द्वारा इसी तरह से शालीन, सभ्य विरोध प्रदर्शन करके उदाहरण
निर्मित किया जायेगा.
विरोध प्रदर्शन के
इस अवसर पर शिक्षक संघ अध्यक्ष रोहित कुमार पाठक, महामंत्री डॉ. धर्मेन्द्र कुमार, पूर्व
नैक प्रभारी डॉ. ऋचा सिंह राठौर, पूर्व आईक्यूएसी संयोजक डॉ.
कुमारेन्द्र सिंह सेंगर, डॉ. सुनीता गुप्ता, डॉ. ऋचा पटैरिया, प्रीति परमार, डॉ. मोनू मिश्रा, डॉ. के.के. गुप्ता, डॉ. के.के. त्रिपाठी, डॉ. मसऊद अंसारी, डॉ. कंचन दीक्षित, डॉ. इन्द्रमणि दूबे, डॉ. संदीप
श्रीवास्तव, डॉ. शिवसंपत्त द्विवेदी,
डॉ. वंदना सिंह, डॉ. विश्वप्रभा त्रिपाठी, कश्यप पालीवाल, महेन्द्र सिंह आदि उपस्थित
रहे.
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