केन्द्र सरकार ने एकीकृत
पेंशन स्कीम (यूपीएस) को घोषित
किया है, जो 01 अप्रैल 2025 से लागू होगी. इसे राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली
(एनपीएस) में सुधार के लिए गठित सोमनाथन समिति की सिफारिशों के आधार पर घोषित किया
गया है. इसकी घोषणा के बाद से सरकार द्वारा इसे एनपीएस से बेहतर साबित किया जा रहा है. एनपीएस और
यूपीएस में से कौन सी योजना कर्मचारियों के लिए लाभकारी होगी इसका आकलन तो निकट
भविष्य में किया ही जा सकेगा. एनपीएस की तरह ही यूपीएस भी अंशदायी योजना है. इसमें
भी कर्मचारी को प्रतिमाह वेतन का दस प्रतिशत अंशदान करना होगा जैसा कि एनपीएस में
करना होता है. यहाँ अंतर सरकार के अंशदान में है. जहाँ एनपीएस में सरकार द्वारा 14
प्रतिशत अंशदान किया जाता है वहीं यूपीएस में 18.5 प्रतिशत अंशदान किया जायेगा. सोचने
वाली बात है कि जब दोनों योजनाएँ ही अंशदायी हैं, दोनों योजनाएँ ही सरकार-कर्मचारी के अंशदान पर आधारित हैं और शेयर
बाजार पर निर्भर हैं तो कर्मचारी यूपीएस को क्यों स्वीकारे? यहाँ यह भी विशेष है कि कर्मचारियों द्वारा
पुरानी पेंशन (ओपीएस) की बहाली की माँग की जा रही है, उनके द्वारा न तो एनपीएस में
सुधार की बात की गई और न ही किसी दूसरी पेंशन योजना की माँग रखी गई. ऐसे में सरकार
द्वारा यूपीएस की घोषणा मन में संदेह ही पैदा करता है.
एनपीएस के सापेक्ष
यूपीएस में अभी बहुत से पेंच ऐसे हैं, जिनका समाधान समय के साथ ही हो सकेगा. यहाँ अभी तो कर्मचारियों के सामने
सबसे बड़ा संकट दोनों योजनाओं में से किसी एक का चयन करने को लेकर है. कर्मचारियों
को एनपीएस या यूपीएस में से किसी एक का चयन करना होगा. यदि इन दोनों योजनाओं का
तुलनात्मक विश्लेषण किया जाये तो भी संशय की स्थिति दूर नहीं होती है. एनपीएस में
निश्चित पेंशन की व्यवस्था नहीं है मगर कर्मचारी-सरकार के अंशदान की 60 प्रतिशत
एकमुश्त धनराशि कर्मचारी को मिलने का प्रावधान है, जबकि ऐसा प्रावधान यूपीएस में
नहीं है.एनपीएस में सेवानिवृत्ति कर्मचारी के निधन पश्चात् उसके परिवार को किसी
तरह की पेंशन का लाभ नहीं है, इसे यूपीएस में दूर किया गया
है. इसी तरह से चिकित्सा लाभ के सन्दर्भ में भी यूपीएस योजना को बेहतर माना जा रहा
है. बावजूद इसके यूपीएस को अंशदान से मिलने वाली धनराशि,
प्रतिमाह मिलने वाली पेंशन की धनराशि, ग्रेच्युटी, कर्मचारी को प्रदान की जाने वाली निश्चित धनराशि के पश्चात् शेष धनराशि के
सम्बन्ध में कोई ठोस नीति न होने के कारण कर्मचारियों में यूपीएस को लेकर संदेह
जताया जा रहा है.
सरकार द्वारा
यूपीएस को लेकर दावा किया गया कि इसके द्वारा एनपीएस की कमियों को दूर किया गया है, इसमें ओपीएस की अच्छाइयों को शामिल
किया गया है. यदि वाकई यूपीएस में ओपीएस के समान है तो फिर सरकार को ओपीएस लागू
करने में क्या समस्या है? क्यों पुरानी पेंशन बंद किये जाने
के बाद कभी एनपीएस तो कभी यूपीएस का झुनझुना कर्मचारियों को पकड़ाया जा रहा है? कहीं इसके पीछे चुनावी गणित तो नहीं? ऐसा लगता है कि
इस योजना का उद्देश्य कर्मचारियों का कल्याण कम, आने वाले चुनावों
में राजनीतिक लाभ प्राप्त करना, कर्मचारियों-सरकार के अंशदान से पूँजीपतियों को लाभ पहुँचाना
ज्यादा है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि केन्द्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों ने हाल
में संपन्न हुए चुनावों में कर्मचारियों की नाराजगी को नजदीक से देखा है और इसका
खामियाजा उठाया है. विपक्षी दलों द्वारा भी पहले कर्मचारियों की ओपीएस की माँग पर
किसी तरह का ध्यान नहीं दिया जा रहा था. 2014 के बाद 2019 में भी चुनावों में असफल
रहने के बाद ही विपक्षियों द्वारा पुरानी पेंशन को चुनावी हथियार बनाकर केन्द्र
सरकार के खिलाफ चलाया गया. ऐसे में आने वाले महीनों में हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में होने वाले विधानसभा
चुनावों में केन्द्र सरकार किसी भी कीमत पर विपक्ष से बड़ी चुनौती लेने की मंशा
नहीं रखती है.
यदि देखा जाये तो पेंशन
का मुद्दा कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा का और सरकार की नैतिकता का मुद्दा है. यहाँ
सरकार को पेंशन को लेकर स्पष्ट रुख अपनाए जाने की आवश्यकता है. पुरानी पेंशन को
महज इसीलिए बंद किया गया क्योंकि इसके कारण सरकार पर जबरदस्त वित्तीय बोझ पड़ रहा
था. अब जबकि एनपीएस और यूपीएस के द्वारा अंशदान की व्यवस्था है तब सरकार-कर्मचारी द्वारा
जमा किया जा रहे अंशदान को व्यवस्थित तरीके से निवेशित करके यथोचित पेंशन का भुगतान
किया जा सकता है. कर्मचारियों के टैक्स की सहायता से सरकारें तमाम तरह के लॉलीपॉप लोगों
को बाँटती रहती हैं. अनेक ऐसी योजनाएँ, जो उत्पादन सम्बन्धी लाभ नहीं देती हैं मगर
राजनैतिक लाभ के लिए कर्मचारियों की धनराशि से ही पलती हैं. यदि राजनीतिक लाभ के लिए
अनुत्पादक वर्ग पर राजस्व का एक बड़ा भाग खर्च किया जा सकता है तो उत्पादन करने वाली
कार्यशक्ति अंशदान कर ही रही है, जिसे सरकार को केवल व्यवस्थित और सुरक्षित रखना है.
सरकार को निश्चित पेंशन, अंशदान की धनराशि के सम्बन्ध में स्पष्ट दिशा-निर्देश
जारी करते हुए राजनैतिक झुनझुना बजाना बंद करना चाहिए.
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