03 जून 2024

बढ़ता हुआ तापमान और मानवीय जिम्मेवारी

देश के अनेक राज्य, जिले भीषण गर्मी की चपेट में हैं. भयंकर लू का चलना और रिकॉर्डतोड़ तापमान ने होश उड़ा रखे हैं. एक-दो स्थानों से नहीं बल्कि अनेक जगहों से तापमान के 50 डिग्री सेल्सियस पार जाने की खबर आई. देश की राजधानी दिल्ली के मुंगेशपुर में अधिकतम तापमान 52.9 डिग्री सेल्सियस पहुँच गया. यह अपने आपमें भयावह स्थिति है. गर्मी के आरम्भ होते ही लगभग समूचे देश में तापमान में अचानक से वृद्धि दिखाई देने लगी. इन दिनों में 45 डिग्री सेल्सियस और उससे अधिक तापमान सामान्य रूप से रिकॉर्ड किया गया. इस वर्ष अप्रैल माह में वैश्विक तापमान के सामान्य से 1.32 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाने की घटना के चलते लगातार बढ़ते तापमान को वैश्विक घटना कहकर नकारा नहीं जा सकता है.  

 

तेजी से बढ़ते तापमान का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण असंतुलन है. पर्यावरण असंतुलन के लिए तीव्रगति से बढ़ती जनसंख्या और उपभोक्तावादी प्रवृत्ति का लगातार बढ़ते जाना प्रमुख रूप से जिम्मेवार हैं. बढ़ती हुई जनसंख्या हो या फिर व्यक्ति की भोगवादी सोच, दोनों में नुकसान प्रकृति को ही उठाना पड़ रहा है. विकास के नाम पर, औद्योगीकरण के नाम पर अंधाधुंध तरीके से पेड़ों को काटा जा रहा है. विगत वर्षों में बनी सड़कें, एक्सप्रेस वे को इसके उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है. जहाँ सड़कों का विकास सकारात्मक रूप में हुआ मगर प्राकृतिक विकास में जबरदस्त नकारात्मकता देखने को मिली. पेड़ों की इस तरह से होने वाली कटाई के कारण उत्पन्न पर्यावरण असंतुलन ने पर्यावरण में जहरीली गैसों को बढ़ा दिया है. उनको अवशोषित करने वाले पेड़ों को काटा गया मगर उनके स्थान पर भरपाई नहीं की गई.

 



सुख-सुविधाओं के चलते, उपभोक्तावादी प्रकृति के चलते आज लगभग पूरा समाज अत्याधुनिक उपकरणों पर निर्भर हो गया है. मोबाइल, कम्प्यूटर, एसी, फ्रिज आदि लगभग प्रत्येक घर में उपयोग किये जा रहे हैं. इन सबसे उत्सर्जित होने वाली गैसों के कारण भी पर्यावरण असंतुलन उत्पन्न हुआ है. ग्रीन गैसों का मामला हो या फिर तापीय प्रदूषण इनके द्वारा मानवीय सभ्यता को ही संकट का सामना करना पड़ रहा है. वायुमंडल में कार्बन मोनोक्साइड, नाइट्रोजन, ओजोन आदि के लगातार बढ़ते जाने के कारण हवा में इन प्रदूषित तत्वों की उपस्थिति बढ़ गई है. इसके चलते भी तापमान वृद्धि देखने को मिलती है. नीति आयोग के एक सदस्य का कहना है कि प्रदूषण के लिए ग्लोबल थ्रेशहोल्ड या पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) 440 है जबकि इसका वर्तमान स्तर 417 पीपीएम से 420 पीपीएम के बीच है. जिस तरह से इसमें वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष 2.3 पीपीएम जुड़ जाता है, उसके चलते माना जा रहा है कि अगले दस वर्षों में यह स्तर 440 पीपीएम तक पहुँच जाएगा. निश्चित ही यह सुखद स्थिति नहीं कही जा सकती है.

 

जलवायु परिवर्तन एक ऐसा खतरा है जिसके चलते मानव स्वास्थ्य नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है. इसमें भी तापमान के बढ़ने से सर्वाधिक खतरा ब्रेन स्ट्रोक पड़ने का होता है. वैश्विक रूप से होते आये अनेक शोध-कार्यों की रिपोर्ट के आधार पर ऐसा माना गया है कि बढ़ते तापमान, जलवायु परिवर्तन के कारण स्ट्रोक से होने वाली मौतों और विकलांगता में वृद्धि देखने को मिली. ये अपने आपमें खतरनाक संकेत है. आँकड़े बताते हैं कि देश में लू के कारण प्रतिवर्ष औसतन तीस हजार से अधिक मौतें होती हैं. इसके अलावा साँस की बीमारियों के साथ-साथ टीबी, कैंसर, त्वचा रोग आदि जैसी कई असाध्य बीमारियाँ भी इसी कारण उत्पन्न होती हैं. ऐसा नहीं कि बढ़ते तापमान से सिर्फ़ इंसान ही प्रभावित होता है बल्कि इससे वन्यजीवों और पारिस्थितिकी तंत्रों पर भी प्रभावित होते हैं. पशु-पक्षियों की अनेक प्रजातियाँ दूसरे क्षेत्रों में पलायन कर जाती हैं अथवा विलुप्त हो जाती हैं. इससे पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. ग्लोबल वार्मिंग, कृषि क्षेत्र की गिरती स्थिति आदि भी इसी कारण से है.

 

पर्यावरणीय असंतुलन के बढ़ते खतरों के मद्देनजर हमें स्वयं सोचना होगा कि हम अपने स्तर पर प्रकृति संरक्षण के लिए क्या योगदान दे सकते हैं. सरकार द्वारा पॉलीथीन पर पाबंदी लगाने के लिए समय-समय पर कदम उठाए गए लेकिन हम अपनी तरफ से इस ओर सजगता नहीं दिखा सके हैं. प्रयास किया जाये कि हमारे दैनिक उपभोग में ऐसे पदार्थों का कम से कम इस्तेमाल हो जिनके द्वारा किसी भी रूप में प्रकृति को, पर्यावरण को नुकसान होता हो. उपभोक्तावादी संस्कृति में जीवन बिताना मजबूरी हो सकती है मगर प्राकृतिक स्त्रोतों का दोहन उसी रूप में किया जाये, जिससे कि प्रकृति को संकट न हो. ऊर्जा के लिए रासायनिक पदार्थों, पेट्रोलियम आदि के उपभोग से ज्यादा सौर-ऊर्जा पर निर्भरता को बढ़ाना होगा. पेड़-पौधों की कटाई रोकने के साथ-साथ हम सभी को खाली पड़ी जगहों पर अधिक से अधिक पौधारोपण करने की आदत डालनी होगी. अच्छा हो कि हम अन्य किसी पर दोषारोपण करने के स्थान पर स्वयं जागें और प्रकृति संरक्षण में अपनी सक्रिय भागीदारी निभाने का संकल्प लें.


1 टिप्पणी:

  1. पर्यावरण के प्रति उदासीनता की भारी कीमत है ये जानते हुए भी हम निरंतर ये करते जा रहें है ।बढ़िया आलेख।

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