24 अप्रैल 2024

माधवी लता के तीर की हलचल

लोकसभा चुनाव की सरगर्मियाँ अपने चरम पर हैं. उम्मीदवारों का अपना जोश है और उनके समर्थक अपने ही अलग जोश में है. इस जोश में, उत्साह के बीच कुछ लोकसभा सीटें और कुछ प्रत्याशी ऐसे भी हैं जिनको व्यापक लोकप्रियता मिली हुई है, वे पर्याप्त चर्चा के केन्द्र में हैं. सात चरणों में संपन्न होने वाले चुनावों का अभी पहला चरण ही पूरा हुआ है मगर सूरत लोकसभा सीट, हैदराबाद लोकसभा सीट, उम्मीदवार माधवी लता लगातार चर्चा का विषय बने हुए हैं. सूरत सीट के चर्चा में आने का कारण वहाँ से भाजपा के प्रत्याशी मुकेश दलाल का निर्विरोध निर्वाचित होना है. इस सीट से कांग्रेस उम्मीदवारी खारिज हो जाने और अन्य प्रत्याशियों द्वारा नाम वापस लेने के कारण भाजपा प्रत्याशी को निर्विरोध विजयी घोषित करने के बाद से यह सीट लगातार चर्चा में बनी हुई है.

 

कुछ इसी तरह की चर्चा का विषय, लोकप्रियता के केन्द्र में हैदराबाद की सीट बनी हुई है. इस सीट पर विगत कई वर्षों से अपना कब्ज़ा बनाये असदुद्दीन ओवैसी के सामने भाजपा ने नए चेहरे माधवी लता को उतारा है. आजादी के बाद से लोकसभा के यहाँ संपन्न हुए कुल सत्रह चुनावों में दस बार ओवैसी परिवार की जीत हुई है. 1984 में असदुद्दीन ओवैसी के पिता सलाहुद्दीन ओवैसी ने पहली बार कांग्रेस के विजय अभियान को रोका था. उसके बाद से लगातार छह चुनाव सलाहुद्दीन ओवैसी ने और चार चुनाव असदुद्दीन ओवैसी ने जीते हैं. उनके खिलाफ मैदान में उतरी माधवी लता भले ही नया चेहरा हो मगर हैदराबाद की राजनीति में वे पिछले काफी समय से लगातार सक्रिय हैं. उनकी पहचान प्रखर हिन्दू नेता के साथ-साथ सजग सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में बनी हुई है. उनके हिन्दूवादी बयानों ने जहाँ उनको ओजस्वी वक्ता के रूप में पहचान दी वहीं झुग्गी-झोपड़ियों की मुस्लिम महिलाओं के सहायतार्थ काम करने ने उनको संवेदनशील व्यक्ति के रूप में भी जाना है.

 



इस चुनाव में ओवैसी पिछले कई वर्षों का चुनावी अनुभव लेकर उतरे हैं मगर माधवी लता पहली बार चुनावी मैदान में हैं. अपना पहला चुनाव होने के बावजूद माधवी के जोश में, उत्साह में किसी तरह की कमी नहीं दिखती है. इसी जोश, उत्साह में रामनवमी के अवसर पर उनका एक काल्पनिक तीर देशव्यापी चर्चा का विषय बन गया. इंटरनेट पर वायरल हुए एक वीडियो में रामनवमी की शोभायात्रा के अवसर पर माधवी लता बिना वास्तविक धनुष-वाण लिए इस तरह की भाव-भंगिमा बनाती हैं जैसे वे धनुष पर तीर चढ़ाकर उसे किसी पर चला रही हैं. उनके इस काल्पनिक तीर चलाने को लेकर इस आरोप के साथ प्राथमिकी दर्ज की गई कि उन्होंने शोभायात्रा के दौरान रास्ते में पड़ने वाली एक मस्जिद को निशाना बनाते हुए अपना काल्पनिक तीर चलाया था. उनके इस कृत्य से, भाव-भंगिमा से मुस्लिम समाज आहत हुआ है. अपने ऊपर दर्ज प्राथमिकी का विरोध करते हुए माधवी लता ने भी ओवैसी के विरुद्ध चुनाव आयोग में शिकायत की है. माधवी लता ने एक वीडियो का जिक्र करते हुए शिकायत की कि ओवैसी अपने चुनाव प्रचार के दौरान कसाइयों को गाय काटने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं. वीडियो में वह ‘काटते रहो’ कहकर ‘बीफ जिंदाबाद’ का नारा भी लगा रहे हैं. यह एक प्रकार से खुलेआम गोमाँस खाने का समर्थन है. इससे एक समुदाय विशेष की भावनाएँ आहत हुई हैं.

 

हिन्दू, मुस्लिम समाज की भावनाओं के आहत होने की बात हो, तीर चलाने की मुद्रा बनाना हो, बीफ जिंदाबाद का नारा लगाना हो, ये सब राजनैतिक गलियारे की हलचल हैं. सोचने वाली बात ये है कि मुस्लिम समाज की खुलेआम कट्टरता से, उनके अतिवाद से हिन्दू समाज की भावनाएँ आहत नहीं होती हैं मगर एक काल्पनिक तीर पूरे समाज को आहत कर जाता है. यदि हैदराबाद के चुनावी माहौल को देखें तो इस बार स्पष्ट रूप से दिख रहा है कि भाजपा का जिस तरह से दक्षिण में विस्तार हो रहा है उससे उसके विरोधियों में हलचल मची हुई है. वैसे तो हैदराबाद मुस्लिम बहुल सीट है किन्तु इस बार पाँच लाख से अधिक मतदाताओं के कम हो जाने तथा माधवी लता के प्रचार के निराले अंदाज से विरोधी खेमे में बेचैनी है. इस बेचैनी का एक और कारण असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा का तेलंगाना विधानसभा चुनाव के दौरान किया गया दावा भी है. उन्होंने दावा किया था कि राज्य की सत्ता में आने पर तीस मिनट के भीतर हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर कर दिया जाएगा. केंद्रीय मंत्री और तेलंगाना भाजपा अध्यक्ष जी. किशन रेड्डी ने भी इसी तरह का बयान देकर हैदराबाद नाम परिवर्तन की राजनीति को हवा दी. विगत लम्बे समय से भाजपा जिस तरह से सनातन संस्कृति, राष्ट्रीय भावना को लेकर काम कर रही है उसे लेकर हैदराबाद का नाम भाग्यनगर किये जाने के समर्थकों में जबरदस्त उत्साह है.  

 

हैदराबाद में मुस्लिम लगभग साठ प्रतिशत, हिन्दू पैंतीस प्रतिशत और शेष में अन्य समुदाय हैं. भले ही 1984 में पहली जीत के बाद से ओवैसी परिवार का मत प्रतिशत बढ़ता रहा हो किन्तु माधवी लता द्वारा गरीब मुस्लिम महिलाओं के लिए काम करते रहने से उनको मुस्लिम समाज का समर्थन मिल रहा है. निवर्तमान सांसद एवं प्रत्याशी असदुद्दीन ओवैसी अथवा भाजपा के नए चेहरे माधवी लता में से किसका निर्वाचन होगा, ये तो यहाँ के मतदाताओं पर निर्भर है. यदि ओवैसी अपने पिछले रिकॉर्ड को बनाये रख पाते हैं तो सबकुछ जैसे का तैसा नजर आएगा किन्तु यदि माधवी लता की जीत होती है तो निश्चित ही इस शहर की पहचान की पुनर्व्याख्या तय होगी. चुनाव परिणाम कुछ भी हो ओवैसी के गढ़ में एक महिला का खम ठोकना दिलचस्प है. आत्मविश्वास से भरी हुई माधवी लता जोरदार चुनौती दे रहीं है. लोकसभा चुनाव परिणाम कुछ भी हो, हैदराबाद का भाग्य किसी भी करवट बैठे मगर इस सितारे का राष्ट्रीय राजनीति के पटल पर चमकना तय है, एक उत्कृष्ट महिला नेत्री का उदय अवश्य है. 






 

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