भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के दो बड़े पुराने कलाकार किसी
ज़माने में बहुत जबर दोस्त हुआ करते थे. उनसे जुड़ी एक घटना श्रीराम जन्मभूमि मंदिर
से संदर्भित समझ में आई तो यहाँ उसका उल्लेख कर रहे हैं.
उन दो कलाकारों ने एक साथ मुम्बई में आकर अपने सपनों
को सच करने के लिए मेहनत करना शुरू किया. शुरूआती दौर में दोनों एकदूसरे के संघर्ष
में साथ रहे, एकदूसरे की सफलता-असफलता में साथ दिया. कालांतर में दोनों कलाकार
अपने-अपने स्तर पर प्रसिद्धि पाते रहे. इसी यात्रा में उन दो कलाकारों के बीच कभी
किसी कारण से झगड़ा हो गया. उनका झगड़ा सिर्फ झगड़े तक न रहा, उससे आगे बढ़ता हुआ वो उनके बीच
मनमुटाव तक भी पहुँच गया. यह इतना बढ़ा कि सामान्य रूप में, सार्वजनिक रूप में उन
दोनों की आपस में बातचीत भी बंद हो गई. बहरहाल, इस मनमुटाव
का असली रूप तब सामने आया जबकि उन दोनों कलाकारों में से एक कलाकार की बेटी की
शादी होनी थी.
उन दो कलाकारों में एक ने सिर्फ प्रसिद्धि ही पाई तो
दूसरे को महानायक के रूप में जाना गया. अब जब महानायक की बेटी की शादी का अवसर आया
तो उस महानायक कलाकार ने दूसरे पूर्व-मित्र कलाकार को भी निमंत्रण भेजा. बस यहीं
आकर इस पोस्ट की असली यात्रा शुरू होती है. जिस महानायक कलाकार की बेटी का विवाह
था, उस कलाकार के पिता
प्रसिद्ध कवि थे. ऐसा बताया जाता है कि उन्होंने सोलह पृष्ठ का निमंत्रण पत्र बनाया.
प्रत्येक पृष्ठ पर कार्यक्रम का, रीति-रिवाज का विवरण और उसी के अनुसार एक कविता.
कहने का अर्थ कि सोलह पृष्ठ का निमंत्रण पत्र काव्यात्मक रूप में तैयार किया गया
था. महानायक कलाकार दोस्त ने दूसरे कलाकार दोस्त को वो निमंत्रण पत्र दिया. यहाँ
उस निमंत्रण पत्र में जो खास बात थी वो ये कि उस कलाकार को जिसे-जिसे बुलाना था,
उसके निमंत्रण पत्र में तारीख थी, समय था,
स्थान था.... मगर जिसे नहीं बुलाना था उसे बस सोलह पृष्ठ का निमंत्रण
पत्र ही था. खाली निमंत्रण पत्र, काव्यात्मक शैली, सोलह पृष्ठ मगर उसमें न तारीख,
न समय, न स्थान अर्थात ऐसा कोई चिन्ह नहीं जिसके सहारे कार्यक्रम स्थल तक पहुँचा
जा सके. बिना समय, बिना तिथि, बिना जगह
वाला ऐसा निमंत्रण एक कलाकार ने अपने दूसरे कलाकार दोस्त को दिया.
श्रीराम जन्मभूमि मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के समय इस
घटना का याद आना महज इस कारण हुआ कि उस महानायक कलाकार द्वारा तिथि, स्थान आदि का
जिक्र न करने के पीछे की मंशा थी कि कुछ लोग न आ सकें मगर इसके उलट श्रीराम
जन्मभूमि मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण तो तिथि, समय, स्थान के
साथ दिया जा रहा है, इसके बाद भी कुछ लोग नहीं आ रहे हैं. ये बात समझ से परे है कि
ये लोग, जो अयोध्या नहीं जा रहे हैं वे श्रीराम के विरोधी हैं या फिर भाजपा के?
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