22 नवंबर 2023

सादगी की प्रतिमूर्ति मेहरुन्निसा परवेज़

आज सोशल मीडिया में टहलते-टहलते अचानक से एक पोस्ट सामने आई, पोस्ट से पहले उसके संग लगी फोटो ने हमारा ध्यान अपनी तरफ खींचा. बिना किसी शंका के इतने वर्षों बाद भी उस चित्र को पहचानने में कोई दिक्कत नहीं हुई. समय जिस तेजी से गुजरा था उसी तेजी से उम्र ने अपना असर भी उनके चेहरे पर दिखाया था मगर चेहरे पर जिस तेज को उनके साथ हुई पहली मुलाकात में देखा था, वह अब भी उसी तरह था या कहें कि उसमें और अधिक सौम्यता के दर्शन हो रहे थे. चलिए, आपका संशय दूर करते हैं. हम बात कर रहे हैं सुप्रसिद्ध साहित्यकार मेहरुन्निसा परवेज़ जी की. उनसे हमारी पहली मुलाकात हुई थी, उस समय को बीते भी कोई दो दशक से अधिक समय हो गया है. 




उनके सम्पादन में प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘समर लोक’ से परिचय उनसे भी पहले से हुआ. पत्रिका पहली नजर में ही आकर्षित करने वाली थी. उसका कलेवर, उसकी सामग्री ने मन मोह लिया. एक-दो अंकों के बाद पत्रिका के नामकरण का राज़ पता चला. उसी दौरान समर लोक के बैनर के अंतर्गत समर समागम जैसे मंचों की स्थापना के बारे में जानकारी हुई. पत्रिका के वशीभूत आनन-फानन अपने मित्रों की सहमति से समर समागम का गठन करके उसके बैनर तले साहित्यिक गतिविधियाँ संचालित होने लगी.


इसी बीच चाचा जी के पास भोपाल जाना हुआ. यह संयोग ही कहा जायेगा कि चाचा और मेहरुन्निसा जी का निवास आसपास ही था. चार इमली नामक स्थान पर बने प्रशासनिक भवनों में से एक भवन मेहरुन्निसा जी का था. इसी चार इमली में प्रशासनिक परिसर से लगा हुआ भारतीय स्टेट बैंक का परिसर था. मेहरुन्निसा जी का निवास अत्यंत नजदीक होने के कारण उनसे मुलाकात का लोभ संवरण नहीं कर सके. उनसे मुलाकात का समय लेकर निश्चित समय पर उनके निवास पहुँचे. वरिष्ठ आईएएस परिवार की सदस्य, खुद में अत्यंत प्रतिष्ठित साहित्यकार-व्यक्तित्व होने के बाद भी उनकी सादगी, सौम्यता अनुकरणीय कही जाएगी. नौकरों-चाकरों की भीड़ के बाद भी खुद अन्दर जाकर चाय-नाश्ता लेकर आना, केतली से चाय अपने हाथों निकाल कर अत्यंत स्नेह के साथ स्वयं ही देना उनके सरल व्यवहार को दर्शा रहा था. बहुत देर तक उनके साथ अनेकानेक बिन्दुओं पर चर्चा होती रही. आज के कई प्रतिष्ठित प्रकाशनों की वास्तविक स्थिति के बारे में उन्होंने समझाया.


कालांतर में स्थिति ऐसी बनी कि उनके वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी पति के सेवानिवृत्त होने के कारण प्रशासनिक परिसर को छोड़कर वे अपने घर में आ गईं, हम भी अपनी दुर्घटना के कारण कई साल भोपाल नहीं जा सके. फोन से, पत्राचार से सम्पर्क बना रहा. विचार है कि पुनः समर समागम की गतिविधियों को शुरू किया जाये. एक बार पुनः उनसे मुलाकात की जाये. फिर एक बार उनके हाथ से मिली चाय का स्वाद लिया जाये. 




 

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