आये दिन समाचार देखने को मिलते हैं जिनमें चित्रण होता है ऐसे परिवार का जिसकी
संताने अपने माता-पिता को वृद्धावस्था में अकेला छोड़कर विदेश की तरफ अपना रुख कर
लेते हैं. वहाँ जाकर भी उनका काम उस देश में नौकरी करना ही होता है. देखा जाये तो
नौकरी का स्पष्ट सन्देश नौकर बनने से है, वो चाहे करोड़ों के पैकेज में हो या फिर हजारों के. इस बात को
सहजता से आज बहुत से परिवार समझ नहीं रहे हैं. उनके लिए यह गर्व का विषय होता है
कि उनकी संतानें विदेश में किसी बहुत बड़े पैकेज पर काम कर रही हैं. ऐसे परिवार के
वृद्ध माता-पिता अपने अंतिम समय में एकदम अकेले रह जाते हैं. 
यहाँ विचार करना होगा इस बात पर कि भारतीय समाज में आम पारिवारिक अवधारणा में
विवाह और संतानोत्पत्ति के पीछे एक प्रमुख आधार बुढापे का सहारा छिपा होता है. आज
के दौर में इस अवधारणा में दोनों बातों पर ही संकट छाया हुआ है. कैरियर के चक्कर
में युवाओं ने विवाह की तरफ ध्यान देना बंद कर दिया है. इसी के चलते लिव इन
रिलेशनशिप जैसे सम्बन्ध समाज में अपना स्थान बनाने लगे हैं. खैर, इस पर फिर कभी. आज जिस तरह धन
लोलुपता बढ़ती जा रही है, उसमें लगभग सभी अभिभावक चाहते हैं
कि उनकी संतानों को बहुत बड़ा पैकेज मिले, जिसके चलते वे भी
समाज के बीच अहंकार से अपनी बात रख सकें. अपने बच्चों को लाखों-करोड़ों के पैकेज के
सहारे विदेश भेजते माता-पिता उसके पार्श्व में छिपे कष्ट को नहीं देख पाते जो बहुत
जल्दी उनको मिलने वाला होता है. विदेश की लाइफ स्टाइल,
अकेले-स्वतंत्र रहने की आदत, सुख-सुविधा, भोग-विलास वाला जीवन जीने के आदी हो चुके बच्चे वापस अपने बुजुर्ग
माता-पिता की सेवा करने को नहीं आना चाहते. उनके लिए यह सब अत्यंत कष्टकारी होता
है. आये दिन हम सभी ऐसी खबरों को पढ़ते-देखते हैं जहाँ बच्चों ने अपने माता-पिता के
अंतिम संस्कार तक में आने से इंकार कर दिया. 
निश्चित ही एक सुखद,
सुखमय जीवन-शैली सभी लोग चाहते हैं मगर संतानों को,
माता-पिता को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी सुख-सुविधा से अधिक महत्त्वपूर्ण
रिश्ता माता-पिता का होता है. जहाँ माता-पिता को अपने बच्चों के आरंभिक जीवन से ही
उनको रिश्तों का सम्मान करने के बारे में बताया जाना चाहिए वहीं खुद को भी इसके
लिए तैयार करना चाहिए कि वे अपने बच्चों को धन की अंधी दौड़ में दौड़ने के लिए विवश
नहीं करेंगे. कहते हैं न कि ताली दोनों हाथों से बजती है,
इसलिए न केवल संतानों को बल्कि अभिभावकों को भी समय की गंभीरता को समझने की
आवश्यकता है. 


 
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