राष्ट्रीय पर्व हमेशा से जन-जन में
राष्ट्रभक्ति का उफान लाते रहे हैं. स्वतंत्रता दिवस हो या फिर गणतंत्र दिवस,
नागरिकों का जोश, उत्साह, उमंग देखने लायक होता है. देशभक्ति के रंग में सराबोर
होकर उनके द्वारा अपने आसपास के वातावरण को भी देशभक्तिमय बनाने का प्रयास होता
है. इसमें भी तिरंगा सबसे ऊँचे स्थान पर विराजमान होता है. इसके प्रति सम्मान
प्रदर्शित करने में आम आदमी किसी भी तरह की कंजूसी नहीं करता है, किसी भी तरह का
संकोच नहीं करता है. खुद को, अपने घर को, कार्यालय को, वाहन को या कोई भी सामान को
वह तिरंगे में रँगे देखना चाहता है. रंगीन झालरों से, कपड़ों से, रंगों से वह अपने
आसपास का वातावरण तिरंगा जैसा बना देता है.
इस तरह के प्रदर्शन में प्रशासन भी पीछे नहीं
रहता है. उसके स्तर पर जहाँ भी, जैसे भी होता है माहौल को देशभक्ति से भरपूर करने
के प्रयास किये जाते हैं. शहर भर को तीन रंगों में सजाने का अभियान सा चल पड़ता है.
चौराहों को, सरकारी भवनों को, कार्यालयों को, सड़कों पर लगे बिजली के खम्बों को,
जगह-जगह लगी लाइट को उसके द्वारा तीन रंग में चमकाने के कदम उठाये जाने लगते हैं.
देशभक्ति के इस जोश में अक्सर कुछ बातों पर ध्यान नहीं दिया जाता है. तिरंगे के
प्रति सम्मान, देशभक्ति का जूनून इस कदर हावी होता है कि छोटी-मोटी गलती को न देखा
जाता है और न ही उस पर ध्यान दिया जाता है.
उरई शहर के एक चौराहे को, जहाँ कि रानी
लक्ष्मीबाई की प्रतिमा लगी हुई है, प्रशासन द्वारा तीन रंगों में सजाने का काम किया
गया. सम्बंधित कार्यालय के कर्मी दत्तचित्त होकर चौराहे को सजाने में लगे रहे. तीन
रंग के कपड़ों से चौराहे को सजाया गया, इसके अलावा बिजली वाली झालर को भी तीन रंग
में संयोजित करके रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा को चमकाने-सजाने का काम किया गया. एक
तरफ काम पूरा करने का दबाव और दूसरी तरफ देशभक्ति का जोश, कर्मचारियों ने इसका
ध्यान ही नहीं दिया कि बिजली की जिन तीन रंगों की झालरों से रानी लक्ष्मीबाई की
प्रतिमा को सजाने का काम किया जा रहा, उन झालरों को उनके हाथ का सहारा देकर ही
चारों तरफ फैलाया गया है.
निश्चित ही किसी भी कर्मचारी द्वारा ऐसा
जानबूझकर नहीं किया गया होगा मगर उनको कम से कम इसका ध्यान रखना चाहिए था कि
देशभक्ति के जोश में जिन वीर-वीरांगनाओं के नाम की जय-जयकार की जा रही है, उनके
प्रति तो सम्मान बनाये रखा जाये. बिजली की उन झालरों को फ़ैलाने के लिए रानी
लक्ष्मीबाई की प्रतिमा के हाथ का सहारा लेने के स्थान पर उसके आसपास कोई खम्बा
अथवा कोई सहारा लगा दिया जाता.
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