07 जून 2023

जल संकट की भयावहता को समझना होगा

जल-संकट से जूझती धरती और धरती-वासियों को पर्याप्त पेयजल उपलब्धता, जल-उपलब्धता के लिए लगातार प्रयास किये जा रहे हैं. इन्हीं प्रयासों के बीच जो खबर आई है वह अत्यंत भयावह है. दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन को दुनिया का पहला जल-विहीन शहर घोषित किया गया है. यहाँ की सरकार ने अप्रैल 2023 के बाद से पानी की आपूर्ति करने में असमर्थता जताई है. वहाँ नहाने पर रोक लगा दी गयी है. दस लाख लोगों के कनेक्शन काटने की तैयारी चल रही है. पेट्रोल पंप की तरह से केपटाउन में जगह-जगह पानी के टैंकर लगाये गए हैं, जहाँ एक निश्चित मात्रा में पानी मिलेगा. निकट भविष्य में ऐसी खबरें दुनिया के तमाम देशों से सुनाई देने की आशंका है.


जल हमेशा से सम्पूर्ण प्रकृति के लिए एक महत्वपूर्ण और जीवनदायक तत्त्व रहा है. विशुद्ध रासायनिक स्थिति के बाद भी इसे प्रयोगशाला में मानव उपयोग योग्य नहीं बनाया जा सकता है. यह एक प्राकृतिक अवस्था है, जिसके कारण इसकी आवश्यकता मनुष्य के जीवन में अत्यंत महत्त्वपूर्ण तरीके से है. वर्तमान में स्थिति यह है कि सम्पूर्ण धरती के 70 प्रतिशत भाग में जल होने के बाद भी इसका कुल एक प्रतिशत ही मानवीय आवश्यकताओं के लिये उपयोगी है. सभी को जल की उपलब्धता करवाना आज का मुख्य मुद्दा है. स्वच्छ पेयजल की अनुपलब्धता के चलते संक्रमण और अन्य बीमारियों से प्रतिवर्ष 35 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है.




समूचे विश्व की भांति हमारा देश भी जल संकट की समस्या से जूझ रहा है. यहाँ के शहरी क्षेत्रों में, ग्रामीण क्षेत्रों में भी जल संकट की समस्या पैदा हुई है. वर्तमान में 20 करोड़ भारतीयों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं हो पाता है. नगरों में भूगर्भीय जल का अत्यधिक दोहन होने के कारण शहरी क्षेत्र जल-संकट से परेशान हैं. पेयजल की कमी होने से एक तरफ पेयजल संकट बढ़ा है वहीं दूसरी तरफ पानी की लवणीयता भी बढ़ी है. सरकार के नीति आयोग ने जल संकट के प्रति आगाह करने वाली कंपोज़िट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स (CWMI), अ नेशनल टूल फॉर वाटर मेज़रमेंट, मैनेजमेंट ऐंड इम्प्रूवमेंट नामक एक रिपोर्ट  जारी की थी. इस रिपोर्ट में बताया गया था कि वर्ष 2030 तक देश की 40 प्रतिशत आबादी को पीने का पानी उपलब्ध नहीं होगा. नीति आयोग की इस रिपोर्ट को महज सरकारी आँकड़ा कहकर झुठलाया नहीं जा सकता है और न ही अनदेखा किया जा सकता है. अनुमान है कि सन 2025 तक भारत में पानी की माँग में वर्तमान की तुलना में 50 प्रतिशत वृद्धि हो जाएगी.


पानी की दिन पर दिन विकराल होती जा रही समस्या के समाधान के लिए गंभीरतापूर्वक विचार करने की आवश्यकता है. सरकारों और समुदायों को उचित जल प्रबंधन की ओर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है. सबके द्वारा जल प्रबंधन हेतु कारगर कदम अपनाये जाएँ. प्रयास यह हो कि किसी भी तरह की बड़ी जल-परियोजनाओं की जगह छोटे जलाशयों का निर्माण हो. बड़ी परियोजनाओं की तरफ जाना तभी उचित है जबकि इनकी अनिवार्यता हो अन्यथा छोटे-छोटे जलाशयों के द्वारा अधिक जनसंख्या को जल की उपलब्धता करवाई जाए.


देश की बहुत बड़ी जनसंख्या शहरों में निवास कर रही है. इसके साथ ही शहर की ओर पलायन भी हो रहा है. इसके चलते न केवल घरेलू उपयोग में वरन औद्योगिक कार्यों में जल की आवश्यकता बढ़ी है. जल माँग के सापेक्ष आपूर्ति नहीं हो रही है. ऐसे में शहर के उपयोग पश्चात् व्यर्थ जल को रोककर उसका पुनर्चक्रीकरण हो. इससे एक तो उपयोग पश्चात् जल व्यर्थ नहीं जायेगा साथ ही उसके पुनः उपयोग में लाये जाने के कारण माँग और आपूर्ति के बीच का अंतर भी कम करने में सहायता मिलेगी. कृषि में सिंचाई और ऐसे कार्यों, जिनमें जल की आवश्यकता होती है, ऐसी तकनीकों को अपनाया जाना चाहिए जिनके द्वारा कम से कम मात्रा में जल का उपयोग हो और अधिक से अधिक लाभ मिल सके. इसके लिए ड्रिप तथा स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी जल संरक्षण तकनीकों को अपनाया जाना चाहिए. रेन वाटर हारवेस्टिंग को प्रोत्साहन देकर भी बहुत हद तक जल-संकट को दूर किया जा सकता है. तालाबों, कुओं आदि में एकत्रित जल से सिंचाई को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जिससे भूमिगत जल का उपयोग कम हो. इसके लिए बड़े-बड़े खेतों में जलाशय योजना को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.


शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के निवासी अपने मकानों की छतों पर वर्षा जल को तकनीक के द्वारा एकत्र भी कर सकते हैं. इसके लिए वे छतों से गिरने वाले बरसात के पानी को खुले में रेन वाटर कैच पिट बनाकर उसे धरती में समाहित कर सकते हैं. इससे वर्षा जल बहुत बड़ी मात्रा में बर्बाद होने से बचेगा साथ ही जल संचयन के द्वारा भूगर्भ जल स्तर भी बढ़ाया जा सकेगा. शहरों में प्रत्येक आवास के लिए रिचार्ज कूपों का निर्माण किया जाना चाहिए, जिससे वर्षा का पानी बहकर बर्बाद होने के स्थान पर जमीन में संचयित हो सके. वर्षा जल को संरक्षित करने के लिए मकानों में आवश्यक रुप से वाटर टैंक बनाये जाने चाहिए. जल-संकट या घरेलू उपयोग की स्थिति में इस पानी का उपयोग किया जा सकता है.


आज आवश्यकता इस बात की है कि हम जल का पूरी तरह से संरक्षण करें. यह भले ही भूगर्भ के रूप में हो, वर्षा जल हो, घरेलू, औद्योगिक रूप से उपयोग का जल हो. इन सभी का पूर्ण रूप से संचय करना होगा. आवश्यकता इसके प्रति लोगों की मानसिकता विकसित करने की, लोगों को प्रोत्साहित करने की है. अब हालात ऐसे हो गए हैं कि कमियाँ निकाल कर, अव्यवस्थाओं का रोना रोकर इनका समाधान नहीं किया जा सकता है. अब जल को बचाए जाने की जरूरत है. सरकार के साथ-साथ जनसामान्य को जागरूक होने की आवश्यकता है. कृषि फसलों में ऐसी फसलों का चुनाव हो जिनमें कम से कम पानी की आवश्यकता हो. वर्षा जल के संग्रहण की व्यवस्था भी करनी होगी. पानी की बर्बादी को रोकना होगा. अपने-अपने क्षेत्रों के तालाबों, जलाशयों, कुँओं आदि को गन्दगी से, कूड़ा-करकट से बचाना होगा. जहाँ तक संभव हो नए-नए तालाबों, कुँओं आदि का निर्माण भी जनसामान्य को करना चाहिए. भविष्य की भयावहता को वर्तमान की भयावहता से देखा-समझा जा सकता है. हमारी एक-एक दिन की निष्क्रियता अगली कई-कई पीढ़ियों के दुखद पलों का कारक बनेगी. 

 





 

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