पिछले
दिनों एक कहानी सोशल मीडिया पर लगातार चर्चा का विषय बनी हुई है. इसमें एक तैराक
को उसके कोच द्वारा बचा लेने का चित्रण किया गया है. पोस्ट को आगे लिखने-पढ़ने के
पहले उस कहानी पर निगाह डाल ली जाये. कहानी कुछ इस तरह से है कि
अनीता
अल्वारेज, जो अमेरिका की एक पेशेवर तैराक हैं, ने वर्ल्ड चैंपियनशिप
के दौरान परफॉर्म करने के लिए स्विमिंग पूल में जैसे ही छलांग लगाई, वो छलांग लगाते ही पानी के अंदर बेहोश हो गई. जहाँ पूरी भीड़ सिर्फ़ जीत और
हार के बारे में सोच रही थी वहीं उसकी कोच एंड्रिया ने देखा कि अनीता एक नियत समय से
ज़्यादा देर तक पानी के अंदर है. एंड्रिया पल भर के लिए भूल गई कि वर्ल्ड चैंपियनशिप
प्रतियोगिता चल रही है. एक पल भी व्यर्थ ना करते हुए एंड्रिया ने प्रतियोगिता के बीच
में ही स्विमिंग पूल में छलांग लगा दी.
वहाँ
मौजूद हज़ारों लोग कुछ समझ पाते तब तक एंड्रिया पानी के अंदर अनीता के पास थी. एंड्रिया
ने देखा कि अनीता स्विमिंग पूल में बेहोश पड़ी है. ऐसी हालत में वो ना हाथ पैर चला
सकती ना मदद माँग सकती. एंड्रिया ने अनीता को जैसे बाहर निकाला, मौजूद हज़ारों लोग
सन्न रह गए. एंड्रिया ने अनीता को तो बचा लिया.
इस
कहानी के बाद इससे जुड़ी दार्शनिकता को, सामाजिकता को सबके बीच चर्चा के लिए छोड़
दिया गया. कहा गया कि एंड्रिया ने अनीता को बचा लिया और हम सबकी ज़िंदगी में बहुत बड़ा
सवाल छोड़ दिया! सवाल यह कि हम में से बहुत सारे लोग किसी न किसी रूप में परेशान
होकर एक तरह से डूब ही रहे हैं. विशेष बात यह है कि कौन हमारा कोच है जो हमारे
बिना बताये, बोले हमें बचाने के लिए आ जाता है.
देखा
जाये तो वाकई सवाल बहुत बड़ा है किन्तु इसी सवाल के पीछे एक सवाल और छिपा है कि हम
में से कितने लोग ऐसे हैं जो अपने मिलने वालों से, अपने माता, पिता, भाई, बहिन,
दोस्त से कुछ भी नहीं छिपाते हैं? उनके साथ सारी बातें बाँटते हैं? जिस कहानी को
सोशल मीडिया में एक आदर्श की तरह रखकर किसी कोच को बनाने की बात कही जा रही, उसी
कहानी के आलोक में यह भी समझना होगा कि उस कोच और खिलाड़ी के बीच समन्वय, सामंजस्य
के बीच किसी तरह का कोई संशय नहीं होगा. पल-पल की स्थिति, उसके आगे की परिस्थिति
का आकलन वे दोनों एकसाथ कितनी बार किये होंगे. सामाजिक, पारिवारिक वातावरण में अब ऐसी
स्थिति देखने को बहुत कम मिल रही है जहाँ कि लोग अपनी बात को, अपनी परेशानी को,
अपनी समस्या को अपने अभिन्न कहे जाने वाले के साथ बाँट रहे हों. आखिर जब तक दो
लोगों के बीच आपस में समन्वय नहीं है, वैचारिक सामंजस्य नहीं है, एक-दूसरे की
भावनाओं को समझने की मानसिकता नहीं है तब तक कहानी के कोच और खिलाड़ी जैसा सम्बन्ध
मिलना मुश्किल है.
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