किसी भी व्यक्ति
के जीवन में यदि उसकी सबसे ज्यादा और सबसे कड़ी परीक्षा कोई लेता है तो वो है उसकी
ज़िन्दगी. एक ज़िन्दगी पूरे जीवन भर न जाने कितनी बार परीक्षा लेती है. इस परीक्षा
की प्रक्रिया में ज़िन्दगी भले न थके किन्तु बहुत बार व्यक्ति थक जाता है. यही थकान
उसे ज़िन्दगी के प्रति नकारात्मक बना देता है. नकारात्मक भाव का आना ही पहली हार
होती है, किसी भी
व्यक्ति के जीवन में. सामाजिक जीवन में सक्रियता के कारण अनेक बार ऐसे मौके सामने
आते हैं, अनेक लोग ऐसे मिलते हैं जहाँ साफ़-साफ़ समझ आता है कि
यहाँ नकारात्मकता का माहौल अधिक है. ऐसे लोग अक्सर इसका उपाय भी खोजा करते हैं या
फिर पूछा करते हैं. इस बिंदु पर हमारा व्यक्तिगत मानना है ये ज़िन्दगी है तो
समस्याएँ भी आयेंगी, किसी के पास कम तो किसी के पास ज्यादा. यहाँ व्यक्ति को अपनी
कोशिश करते रहना चाहिए. ज़िन्दगी के प्रति एक नजरिया होना चाहिए. खुद में आत्मविश्वास
से भरा रहना चाहिए. हमारा तो यही विचार है. हमारा मानना है कि ज़िन्दगी जिस
परमसत्ता द्वारा दी गई है, जिस प्रकृति द्वारा दी गई है,
जिस विज्ञान द्वारा दी गई है वह महज उम्र काटने के लिए नहीं दी गई
है. यदि उसका उद्देश्य किसी भी जीव को, विशेष रूप से इन्सान
को ज़िन्दगी देना है तो उसके पीछे अनेक अर्थ छिपे हुए हैं. यदि उसे महज जीवन देना
होता, मात्र जीवित रखना होता तो वह ज़िन्दगी के साथ
अनिश्चितता नहीं जोड़ता. सबकुछ निर्धारित होने के बाद भी इन्सान उससे अनभिज्ञ है,
ऐसा महज इसलिए कि वह ज़िन्दगी के प्रति सकारात्मकता अपनाता हुआ आगे
बढ़ता रहे.
जैसा कि प्रकृति
का सिद्धांत है कि यहाँ सब कुछ परिवर्तनीय है. एक पल में ही यहाँ सबकुछ उलट-पुलट
हो जाता है. प्रकृति की गोद में एक दिन में ही जाने कितना परिवर्तन होता रहता है.
पूरे चौबीस घंटों की समयावधि देखें तो पल-पल में ही परिवर्तन देखने को मिलते हैं.
ऐसे में कैसे स्वीकार कर लिया जाये कि उसी प्रकृति की गोद में रहने वाले व्यक्ति
के जीवन में परिवर्तन नहीं होगा? कैसे मान लिया जाये कि जो पल आज है वह अगले पल बदलेगा नहीं? सुख और दुःख मन की अवस्था होंगी, इससे इंकार नहीं
किया जा सकता किन्तु यह व्यावहारिक जगत की भी एक स्थिति है. इस स्थिति को
स्वीकारते हुए एक सत्य यह भी स्वीकार करना चाहिए कि जैसे दुःख आया है वैसे जाएगा
भी उसी के साथ सुख भी आएगा. दुःख जाने के बाद आया सुख भी स्थायी अवस्था के साथ
नहीं आता है, वह भी दुःख के जाने की तरह कुछ पल बाद चला
जायेगा. अपने आपको इसी बदलाव के द्वारा, इस परिवर्तन के
द्वारा आने वाली किसी भी घटना के लिए तैयार रहने के लिए, खुद
में संतोष का भाव जागृत करने के लिए किसी भी व्यक्ति द्वारा मान लिया जाता है कि
ऐसा होना ज़िन्दगी का लक्षण है. ऐसा होता है से ज्यादा वह इस पर विश्वास करता है कि
ज़िन्दगी ऐसा करती है. इस विचारधारा से वे व्यक्ति सहज रूप में बाहर निकल आते हैं
जो विश्वास के साथ किसी भी परिवर्तन का सामना करते हैं. इसके ठीक उलट वे लोग
परेशान हो जाते हैं जो ज़िन्दगी के ऐसे परिवर्तनों के वशीभूत होकर अपना संतुलन खो
देते हैं, अपने विश्वास को डगमगा देते हैं.
ध्यान रखना चाहिए
कि किसी भी व्यक्ति को अगले पल की जानकारी नहीं, सभी व्यक्तियों को चौबीस घंटे ही मिले हैं, हाँ बस संसाधनों का, माध्यमों का अंतर अवश्य हो सकता
है. इस अंतर को कोई भी व्यक्ति अपने विश्वास के द्वारा भले न मिटा सके मगर कम तो
कर ही सकता है. जैसे-जैसे कोई व्यक्ति अपने कार्यों से अपने सामने आने वाली
विसंगतियों को दूर करता जाता है, अपने जीवन में आने वाली
समस्याओं का समाधान करता जाता है वैसे-वैसे उस व्यक्ति के अन्दर विश्वास का लेवल
बढ़ता चला जाता है. किसी भी व्यक्ति को यही विश्वास विजयी बनाता है, यही विश्वास आगे बढ़ाता है. ऐसे में ज़िन्दगी में मिलने वाली चुनौतियों को,
ज़िन्दगी से मिलने वाली चुनौतियों को वह सिर्फ और सिर्फ अपने विश्वास
से ही जीत सकता है. ऐसे में कोई भी व्यक्ति अपने विश्वास को बनाये रखे और ज़िन्दगी
की चुनौतियों से जीतते हुए उसे ही चुनौती देता रहे.
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