राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लागू किये जाने के
बाद से अनेक शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षकों, विद्यार्थियों के बीच क्रेडिट
प्रणाली को लेकर कुछ शंकाएँ उभरीं. इस तरह की समस्या मूलरूप में उन क्षेत्रों में
ज्यादा उठी जहाँ राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लागू होने के ठीक पहले तक की
शैक्षणिक व्यवस्था चल रही थी. वार्षिक परीक्षा प्रणाली के रूप में अंकों के साथ ही
विद्यार्थियों का परिचय हुआ करता था. उनके सामने पूरे साल में एक परीक्षा का आना
हुआ करता था न कि इस नई शिक्षा नीति के आने के बाद से मिड टर्म परीक्षा, सेमेस्टर
परीक्षा का आना. अंकों के स्थान पर अब उनको क्रेडिट से अपना परिचय बनाना पड़ रहा
है. विषयों के चयन में भी विद्यार्थियों के सामने अनेक तरह के संकट खड़े हो गए हैं.
पहले की तरह गिने-चुने विषयों से अलग अब उनके सामने मेजर, माइनर विषयों का आना तो
हुआ ही, इसके अलावा अपने संकाय (फैकल्टी) से अलग दूसरे विषय का चयन करने की एक
अनोखी प्रक्रिया भी सामने आई. ऐसी अद्भुत प्रक्रिया से बहुत से शिक्षकों का,
विद्यार्थियों का पहले से परिचय नहीं होने के कारण असमंजस जैसी स्थिति में आना
स्वाभाविक था.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में जिस क्रेडिट
प्रक्रिया को लागू करने की बात कही गई है वह देश की शिक्षा प्रणाली के लिए नई नहीं
है. इस शिक्षा नीति के लागू होने के पहले से यह प्रक्रिया कई शैक्षिक संस्थानों
में लागू थी. यह व्यवस्था विकल्प आधारित क्रेडिट प्रणाली अर्थात च्वाइस
बेस्ड क्रेडिट सिस्टम (CBCS) कहलाती है. यह व्यवस्था विश्वविद्यालय अनुदान
आयोग (UGC) की एक अवधारणा है. यह प्रक्रिया विद्यार्थियों
के लिए वैश्वीकृत शिक्षा की बात करती है. इस प्रणाली
अर्थात सीबीसीएस के द्वारा उच्च शिक्षा में छात्रों को तीन तरह से विषयों को चुनने की आजादी है. इसमें पहले तो वे मूल पाठ्यक्रम हैं, जिस
संकाय में कोई विद्यार्थी प्रवेश लेता है. इसके साथ-साथ राष्ट्रीय शिक्षा नीति
2020 विद्यार्थियों को अपने संकाय से इतर संकाय से भी विषय चयन की स्वतंत्रता देती
है. इसमें ऐच्छिक पाठ्यक्रम शामिल हैं. इसके अलावा विद्यार्थियों में कौशल विकास
हेतु भी कुछ विषयों को रखा गया है. इनको क्षमता वृद्धि पाठ्यक्रम के रूप में जाना
जाता है. इस तरह से एक विद्यार्थी अपने अध्ययन काल में अलग-अलग तरह से अपने संकाय
से अलग संकाय के विषयों का अध्ययन करने के साथ-साथ कौशल विकास सम्बन्धी विषयों को
भी पढ़ सकता है. इस प्रणाली के द्वारा शिक्षा व्यवस्था को इस तरह से बनाया गया है
कि वह सम्पूर्ण देश में एकसमान पाठ्यक्रम पर सहमति देती है. विद्यार्थी-केन्द्रित
ऐसी शिक्षा प्रणाली एक देश एक पाठ्यक्रम की बात करती है.
इस तरह की सुविधा के साथ-साथ राष्ट्रीय शिक्षा नीति में विशेष बात यह है कि यदि
किसी कारण से किसी भी विद्यार्थी की पढ़ाई बीच में छूट जाती है तो वह उसी
विश्वविद्यालय से अथवा किसी अन्य विश्वविद्यालय से शेष पढ़ाई को पूरा कर सकता है.
सीबीसीएस प्रणाली में अंकों के स्थान पर क्रेडिट
को महत्त्वपूर्ण माना गया है. इसमें पूर्व व्यवस्था के अनुसार एकमात्र वार्षिक
परीक्षा का ढाँचा पूरी तरह से बदला गया है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में
परीक्षा का आधार सेमेस्टर सिस्टम होगा. इसमें विद्यार्थियों का मूल्यांकन सेमेस्टर के अनुसार किया जायेगा. एक वर्ष में दो सेमेस्टर हुआ करेंगे. प्रत्येक सेमेस्टर में 15 से 18 सप्ताह के शैक्षणिक कार्य होंगे, जो 90 शिक्षण दिनों
के बराबर होंगे. इसके साथ-साथ संस्थान के अपने स्तर पर
मिड टर्म परीक्षा की व्यवस्था भी की गई है. यह परीक्षा प्रवेश होने और सेमेस्टर
परीक्षा के बीच में हुआ करेगी. परीक्षा प्रक्रिया में सेमेस्टर व्यवस्था लागू किये
जाने के साथ ही अंक पद्धति में भी बदलाव किया गया है. अब विद्यार्थी को अंकों के
स्थान पर क्रेडिट प्रदान किये जायेंगे. प्रत्येक पाठ्यक्रम को एक निश्चित क्रेडिट दिया गया है. जब कोई विद्यार्थी किसी सेमेस्टर में एक पाठ्यक्रम उत्तीर्ण करेगा करता है तो उसे बाद में उस पाठ्यक्रम को दोहराना नहीं पड़ेगा और उस पाठ्यक्रम के लिए निर्धारित क्रेडिट उस
विद्यार्थी को प्रदान किये जायेंगे. क्रेडिट प्रणाली का लाभ विद्यार्थी को है. यदि
किसी कारण से कोई विद्यार्थी बीच में अपनी पढ़ाई छोड़ता है तो उसे उसके प्राप्त क्रेडिट
के अनुसार ही उसे प्रमाण-पत्र, डिप्लोमा अथवा डिग्री प्रदान की जाएगी. किसी भी
विद्यार्थी द्वारा प्राप्त किये गए क्रेडिट अर्जित करने के बाद ही सांख्यिकीय विधि
से गणना करके प्रत्येक विद्यार्थी को ग्रेड प्रदान किया जायेगा.
क्रेडिट की गणना का आधार प्रति सप्ताह होने वाले व्याख्यान, ट्युटोरियल
और प्रयोगात्मक कार्य को बनाया गया है. विद्यार्थी द्वारा चुने गए पाठ्यक्रम को एक
निश्चित क्रेडिट प्रदान किया गया है. उसी के आधार पर प्रति सप्ताह व्याख्यानों का
निर्धारण किया गया है. इसमें लिखित और प्रयोगात्मक कार्य मुख्य है. लिखित कार्य के
रूप में व्याख्यानों या फिर ट्युटोरियल को शामिल किया गया है जबकि प्रयोगात्मक
कार्य के रूप में प्रयोग अथवा व्यावहारिक कार्य को जोड़ा गया है. एक क्रेडिट को
व्याख्यान और प्रयोगात्मक के रूप में अलग-अलग घंटों में बाँटा गया है. व्याख्यान
के रूप में एक क्रेडिट को एक घंटे के बराबर माना गया है जबकि प्रयोगात्मक रूप में
एक क्रेडिट दो घंटे के बराबर होगा. उदाहरण के रूप में यदि किसी पाठ्यक्रम में
लिखित क्रेडिट चार है और प्रयोगात्मक क्रेडिट दो है तो इसका अर्थ हुआ कि उस
पाठ्यक्रम में विद्यार्थी को प्रति सप्ताह चार घंटे का व्याख्यान और चार घंटे का
प्रयोगात्मक कार्य संपन्न करना होगा.
सेमेस्टर परीक्षा के आधार पर प्राप्त अंकों को ग्रेडिंग पद्धति में
बदला जायेगा. अब किसी भी विद्यार्थी का परीक्षा परिणाम अंकों में आने के स्थान पर
ग्रेडिंग रूप में आया करेगा. इसमें उसे अंक तो प्रदान किये जाया करेंगे मगर वे
ग्रेड निर्धारित करने का आधार मात्र होंगे. उन्हीं अंकों के द्वारा सांख्यिकीय
पद्धति से सीजीपीए ग्रेडिंग सिस्टम से उसका ग्रेड निर्धारित किया जायेगा. सीजीपीए
अर्थात Cumulative Grade Point Average को औसत ग्रेड बिन्दु कहा जाता है. सीजीपीए द्वारा
प्राप्त ग्रेड से ग्रेडिंग पद्धति में दस बिन्दुओं को आधार बनाकर
किसी विद्यार्थी का परीक्षा प्रदर्शन निर्धारित किया जाता है.
ग्रेड |
परिणाम |
अंक |
O |
Outstanding -
असाधारण |
10 |
A+ |
Excellent - उत्कृष्ट |
09 |
A |
Very Good - बहुत अच्छा |
08 |
B+ |
Good – अच्छा |
07 |
B |
Above Average – औसत के ऊपर |
06 |
C |
Average – औसत |
05 |
P |
Pass – उत्तीर्ण |
04 |
F |
Fail – अनुत्तीर्ण |
00 |
Ab |
Absent – अनुपस्थित |
00 |
(किसी विद्यार्थी
का सीजीपीए कैसे निकालते हैं, इस बारे में आगे किसी पोस्ट में)
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