25 सितंबर 2022

पुस्तकों से दूर होता युवा

इंसानों ने अपने विकास के विभिन्न चरणों में खुद को और अधिक विकसित करने के लिए तकनीक का चयन किया, उसके द्वारा विभिन्न उपकरणों का निर्माण किया. निश्चित ही ऐसा करने के पीछे उसका उद्देश्य जीवन-शैली को सहज ढंग से चलाना रहा होगा. इसी सहज जीवन की संकल्पना में मोबाइल भी बनाया गया होगा. मोबाइल ने इंसानों की ज़िन्दगी को कितना आसान किया या कितना कठिन किया, इस बारे में सबकी अलग-अलग राय है. इसके बाद भी एक बात से शायद ही कोई इंकार करेगा कि मोबाइल के आने ने, मोबाइल के अत्यधिक उपयोग ने प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से, समाज से जैसे अलग कर दिया है. प्रत्येक व्यक्ति अपने मोबाइल के साथ अपने ही बने-बनाए एक खाँचे में बंद नजर आ रहा है. कहीं भी निकल जाइए, किसी भी जगह नजर दौड़ाइए, हर कोई मोबाइल में तल्लीन दिखाई दे रहा है. बड़े हों या बच्चे, युवा हों या वृद्ध, स्त्री हो या पुरुष, अधिकारी हो या व्यापारी सभी के सभी मोबाइल में ऐसे मग्न समझ आते हैं जैसे बिना मोबाइल के उनका एक पल काटना मुश्किल है.


मोबाइल किसके लिए कितना उपयोगी है, कितना नहीं यह उसकी स्थिति और उसके कार्य पर निर्भर करता है. इधर देखने में आ रहा है कि विद्यालयों, महाविद्यालयों के विद्यार्थी भी मोबाइल का बुरी तरह से इस्तेमाल कर रहे हैं. इनमें से शायद ही इक्का-दुक्का होंगे जो अपने पाठ्यक्रम से सम्बंधित जानकारियों को मोबाइल पर खोजते होंगे. महाविद्यालय में घुसते ही चारों तरफ हरियाली मन प्रसन्न कर देती है और उसी हरियाली के बीच जगह-जगह लड़के-लड़कियों के छोटे-छोटे झुण्ड सेल्फी लेने में तल्लीन दिखाई देते हैं. अध्ययन संस्थाओं के अलावा भी बाजार में, टैम्पो में, बस में, ट्रेन में, रिक्शे आदि में भी लड़के, लड़कियों का मोबाइल से चिपके रहना दिखाई देता है. अब सफ़र के दौरान या फिर कहीं फुर्सत के समय में युवाओं का किताबों से दोस्ती करते दिखाई पड़ना लगभग विलुप्त सा हो गया है.




सफ़र के दौरान, ट्रेन या बस का इंतजार करने के समय, खाली समय में पहले की तरफ अब इक्का-दुक्का लड़के-लड़कियाँ दिखाई देते हैं जो किसी पुस्तक के साथ हैं. युवा वर्ग बहुतायत में अपने मोबाइल में ही मगन है. तकनीकी ने ही पुस्तकों का विकल्प किंडल संस्करण के रूप में उतारा था. इसके प्रति भी युवाओं का रुझान बहुत ज्यादा देखने को नहीं मिलता है. समझ नहीं आता है कि आखिर कोई युवा बिना पढ़े कैसे अपने आपको भविष्य के लिए तैयार कर रहा है? इस आश्चर्य से ज्यादा आश्चर्य की बात यह लगती है कि अध्यापन से जुड़े हुए बहुतेरे लोग भी किताबों से दूरी बनाये हुए हैं. अपने आसपास के लोगों में, अपनी मित्र-मंडली में बहुत कम ही मित्र ऐसे मिलते हैं जो पुस्तक पाठन के प्रति आकर्षण बनाये हुए हैं. आये दिन प्रकाशित होने वाली पुस्तकों के सम्बन्ध में चर्चा करने पर जानकारी मिलती है कि न तो युवा वर्ग के लोग पुस्तक पढ़ना चाहते हैं और न ही बच्चों को पुस्तकें पढ़ने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. 


असल में पठन-पाठन के प्रति रुचि को जागृत करना पड़ता है. समाज में जिस तरह से मोबाइल के अथवा अन्य आधुनिक उपकरणों के आने से व्यक्तियों ने अपने आपको उसी में व्यस्त रखना शुरू कर दिया है, उससे भी पुस्तकों के प्रति लोगों की अरुचि देखने को मिलती है. मोबाइल और इंटरनेट की सहज उपलब्धता में युवा वर्ग तेजी से सोशल मीडिया की तरफ मुड़ा है. उसका बहुतायत समय इसी पर गुजरने लगा है. सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों पर उसकी लेखकीय सक्रियता देखने को मिलती है किन्तु यह भी सीमित शब्दों में बनी हुई है. इन सीमित शब्दों की लेखकीय यात्रा में भी ज्यादातर युवा कॉपी-पेस्ट की तकनीक के सहारे अपना काम चला रहे हैं. यह सोचने वाली बात है कि जब पढ़ा ही नहीं जा रहा है तो लिखा कैसे जा सकता है? लिखने के पहले बहुत सारा पढ़ने की आवश्यकता होती है. सच तो यह है कि अब घरों से ही धीरे-धीरे पढ़ने की, पुस्तकें-पत्रिकाएं लाने की प्रक्रिया ही समाप्त होती जा रही है.


चूँकि एक धारणा लगभग सभी ने बना रखी है कि मोबाइल के, तकनीक के इस दौर में आज सबकुछ इंटरनेट पर उपलब्ध है. इसने भी पढ़ने के प्रति सक्रियता को कम किया है. किसी भी जानकारी के लिए, तथ्यात्मक खोज के लिए बजाय पुस्तकों के युवा वर्ग अब मोबाइल की तरफ जाना पसंद करने लगे हैं. यही कारण है किंडल संस्करण एकसाथ, एक जगह पर हजारों-हजार पुस्तकों को उपलब्ध करवाने के बाद भी युवा वर्ग में पुस्तक पाठन के प्रति शौक पैदा नहीं कर पा रहा है. इसका एक बहुत बड़ा कारण बचपन से ही बच्चों में किताबों को पढ़ने के लिए प्रेरित न कर पाना रहा है. आज बच्चे जिस शौक के साथ मोबाइल को अपना साथी बना रहे हैं, यदि उन्हें किताबों का महत्त्व समझाएं, उसकी उपयोगिता के बारे में बताते हुए किताबें पढ़ने को प्रोत्साहित करें तो संभव है कि वे इस ओर आगे बढ़ें. बच्चों को समझाना होगा कि अपने देश की संस्कृति, सभ्यता, इतिहास, महापुरुषों आदि के बारे में जानने-समझने के लिए किताबों से अच्छा कोई साथी नहीं. वास्तव में यदि समझ आ जाये तो पुस्तकों से बेहतर कोई मित्र नहीं. सफ़र हो, घर को, भीड़ हो, अकेलापन हो या कहीं, कैसी भी स्थिति सभी में किताबें मित्रवत साथ निभाती हैं.




 

1 टिप्पणी:

  1. गहन विचारणीय विषय है। मोबाइल क्रांति ने पुस्तकों को हाशिये पर पटक दिया है। एक समय आएगा जरूर जब पुस्तकों का महत्व समझ आने लगेगा फिलहाल तो युवा समझने को तैयार ही कहाँ होते है। बहुत कम होंगे जो किताबों को पढ़ना पसंद करते हैं। अधिकांश को तो अपनी किताबों से ज्यादा इंटरनेट में सर खपाये रखने में दिलचस्पी अधिक रहती हैं।

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