तारीखों का भी अपना एक अलग एहसास होता है. किसी
भी महीने की किसी भी तारीख को किसी ऐसी घटना के घटित होने पर, जो व्यक्ति के दिल-दिमाग पर अपना प्रभाव छोड़ जाती है, वह तारीख प्रत्येक महीने अपने उसी एहसास के साथ सामने आती है. किसी ख़ुशी
की घटना के होने के कारण वह तारीख सुखद एहसास दिलाती है और यदि इसके उलट यदि उस
तारीख में कुछ सुखद न हुआ हो तो वह तारीख ग़म का एहसास कराती है. कभी-कभी लगता है
कि क्या उन तारीखों में किसी तरह की तासीर होती है या फिर उन घटनाओं में, जो सम्बंधित तारीख आने पर उस घटना का एहसास कराती हैं. ऐसा इसलिए दिमाग
में आता है कि यदि एक पल को मान लिया जाये कि किसी वैश्विक योजना का अनुपालन करते
हुए यदि कैलेण्डर ही बदल दिया जाये, उनकी तारीखों का क्रम बदल दिया जाये अथवा उनको
किसी और नाम से परिभाषित कर दिया जाये तो किसी तारीख विशेष में उस दिन घटित घटना
का एहसास किस तरह का होगा?
ये सवाल अपने आपमें काल्पनिक ही हैं मगर
व्यक्तिगत रूप से हमें लगता है कि किसी भी घटना का घटित होना एक एहसास तो जगाता ही
है मगर उसमें सबसे बड़ी भूमिका उस दिन की, उस तारीख की होती
है. हम सबने महसूस किया होगा कि कोई भी घटना हमें पूरे माह याद नहीं आती मगर
जैसे-जैसे उस तारीख का नजदीक आना होता है, तो वह घटना बहुत
तेजी से अपना एहसास जगाती रहती है. इसके पीछे संभवतः उस तारीख के रूप में उस घटना
का केन्द्रित किया जाना प्रमुख हो. देखा जाये तो कैलेण्डर,
तिथियाँ आदि का निर्माण ही किसी भी घटना को याद रखने के लिए किया गया होगा. इन्हीं
के आधार पर हम सभी अच्छी-बुरी घटनाओं को याद रखते हैं.
तारीखों का होना हम सबके जीवन में एक अलग तरह का
एहसास जगाना है. इसमें भी यदि किसी एक ही तारीख को किसी एक ही व्यक्ति के साथ
अच्छी और बुरी घटना का जुड़ना एकसाथ हो जाये तो उसके एहसासों में अलग तरह की लहरों
का उठना-गिरना होता है. इसमें भी उस तारीख की ही भूमिका प्रमुख होती है.
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