वर्तमान दौर भारत के पड़ोसी देशों के लिए सुखद
नहीं है. श्रीलंका का आर्थिक और राजनैतिक संकट कुछ दिनों पहले ही वैश्विक पटल पर
उभर कर सामने आया था. पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है. अब बांग्लादेश की बिगड़ती आर्थिक स्थिति
सबके सामने आ रही है. इन तीनों पड़ोसी देशों में जनसामान्य को रोजमर्रा की वस्तुओं
का मिलना दुष्कर होता जा रहा है. मँहगाई का स्तर बढ़ता जा रहा है. विदेशी मुद्रा
कोष में लगातार गिरावट आती जा रही है. इन सभी देशों की मुद्रा की कीमत भी डॉलर के
मुकाबले लगातार गिर रही है. बांग्लादेश सरकार ने अपने निर्माण के बाद पहली बार तेल
कीमतों में अतिशय वृद्धि करके डाँवाडोल होती अपनी आर्थिक स्थिति से निपटने को एक
अजब सा कदम उठाया है.
बांग्लादेश की
सरकार भले कहे कि उसके देश में हालात सामान्य हैं किन्तु यह अंतिम सत्य नहीं है.
तेल कीमतों के बढाए जाने के बाद जिस तरह से नागरिकों ने सड़क पर उतर कर विरोध, विद्रोह किया है वह वहाँ के हालात बताने को
पर्याप्त है. बांग्लादेश की आर्थिक स्थिति के खराब होने की एक बड़ी वजह वहाँ आयात के
बढ़ना और निर्यात का घटना रहा है. आयात बढ़ने के का सीधा असर वहाँ के खजाने पर
हुआ. एक रिपोर्ट के अनुसार जुलाई 2021 से लेकर मई 2022 के बीच 81.5 अरब डॉलर का आयात किया गया. पिछले साल की तुलना
में यह 39 प्रतिशत अधिक है.
जाहिर सी बात है कि ऐसा होने के कारण वहाँ के मुद्रा कोष पर नकारात्मक प्रभाव पड़ना
ही था. बांग्लादेश का विदेशी मुद्रा भंडार वर्ष 2021 जुलाई तक 45 अरब डॉलर था, जो जुलाई 2022 को यह
घटकर 39 अरब डॉलर रह गया. अनुमान है कि इस स्थिति में बांग्लादेश के पास पाँच महीने
आयात करने की क्षमता बची है. इन स्थितियों से निपटने के लिए बांग्लादेश के वित्त
मंत्री ने अंतरराष्ट्रीय
मुद्रा कोष से 4.5
अरब डॉलर का कर्ज माँगा है. इसका
उद्देश्य एक प्रकार से देश के विदेशी मुद्रा भंडार को कुछ ताकत प्रदान करना है.
बांग्लादेश के
ऐसे आर्थिक हालातों पर प्रश्न अवश्य ही उठता है कि भारत का नजरिया क्या होना चाहिए? भारत उसकी सहायता के लिए क्या कदम उठाता है यह एक
राजनयिक बिंदु है मगर भारत को वहाँ की बिगड़ती स्थिति से मुँह फेर कर नहीं बैठना
चाहिए. बांग्लादेश की बिगड़ती आर्थिक स्थिति भारत के लिए भी चिंता का कारण होनी
चाहिए. इसके पीछे का कारण बांग्लादेश का पड़ोसी होना मात्र नहीं है वरन अन्य दूसरी
स्थितियाँ भी हैं. बांग्लादेश वर्ष 1971 में बनने के साथ ही भारत का पड़ोसी देश कहलाया अन्यथा की स्थिति में वह पहले
अविभाज्य भारत का ही हिस्सा था. वहाँ की संस्कृति, वातावरण आदि में बहुत हद तक समानता देखने को मिलती है. अविभाजित भारत का
भाग होने के कारण दोनों तरफ के बहुतेरे नागरिकों में दो देशों जैसा भाव का एहसास
नहीं जन्मा है. रोजगार की तलाश में आज भी बांग्लादेश से हजारों की संख्या में
नागरिक भारत में घुसपैठ करते हैं. अवैध तरीके से होने वाली घुसपैठ ही
भारत-बांग्लादेश संबंधों में कटुता का कारण भी बनी है.
बांग्लादेश की
तरफ से होने वाली अवैध घुसपैठ के चलते भारत में तनाव बना रहता है. इस घुसपैठ ने न
केवल भारतीय संसाधनों, आर्थिक स्थितियों पर बोझ डाला है बल्कि
सामाजिक ताने-बाने को भी ध्वस्त किया है. बांग्लादेशी घुसपैठियों के यहाँ अनेक तरह
के अपराधों में लिप्त होने के प्रमाण मिले हैं. ऐसे में यदि बांग्लादेश का आर्थिक
संकट लम्बा चलता है, वहाँ के नागरिकों में इसी तरह विरोध की
मानसिकता बनी रही, रोजगार के अवसरों में कमी आती रही तो
निश्चित ही वहाँ से घुसपैठ करने वालों की संख्या बढ़ेगी. रोजगार की तलाश में हजारों
की संख्या में नागरिकों का भारत में आना होगा. यह स्थिति कतई सुखद नहीं होगी. इससे
न केवल दोनों देशों के राजनयिक, कूटनीतिक संबंधों
पर नकारात्मक असर होगा, भारत के सामाजिक ढाँचे और आर्थिक
संसाधनों पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा.
इसके अलावा दोनों
देशों की सीमा अत्यंत विस्तीर्ण है, जहाँ की भौगौलिक
स्थिति के कारण पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था कर पाना दुष्कर होता है. इसका लाभ उठाते
हुए नकली नोटों, हथियारों, नशीले पदार्थों आदि की तस्करी की घटनाएँ नियमित रूप से अंजाम दी जाती हैं.
बांग्लादेश का आर्थिक संकट इस तरह की अवैध गतिविधियों को और बढ़ावा देगा. जाहिर सी
बात है कि बांग्लादेश में वस्तुओं की कमी को पूरा करने के लिए भारत से तस्करी करके, अवैध रूप से वस्तुओं को बांग्लादेश पहुँचाया
जायेगा. निश्चित ही यह भारत के लिए आर्थिक समस्या ही उत्पन्न करेगा. बांग्लादेश
आर्थिक संकट के दौरान भारत की तरफ से उसे खाद्यान्न सहायता प्रदान की गई है. अन्य
आवश्यक संसाधनों की सहायता प्रदान करने की दृष्टि से उच्चस्तरीय कदम उठाये जा रहे
हैं.
चूँकि बांग्लादेश
कपड़ा निर्यातकों में अपना एक विशेष स्थान रखता है. वैश्विक बाजार में यहाँ के
कपड़े की जबरदस्त माँग रहती है. रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण यहाँ के कपड़ा निर्यात
की माँग पर नकारात्मक असर पड़ा. बिगड़ते आर्थिक हालातों में खाने-पीने की चीजों और
ईंधन के बढ़े दाम से नागरिकों को परेशानी पैदा हुई. नागरिकों के सड़कों पर उतरने से
वहाँ भी श्रीलंका जैसे हालात दिखाई दे रहे हैं. ऐसे में बांग्लादेश चीन के कर्ज जाल में फँस जाये
तो कोई आश्चर्य की बात नहीं. चीन पहले भी चटगाँव को लेकर बहुत ज्यादा रुचि दिखाता
रहा है, ऐसे में उसके द्वारा आर्थिक सहायता की
बड़ी पहल करना कोई नई बात नहीं होगी. यदि बांग्लादेश चीन के आर्थिक चंगुल में फँसता
है तो यह भारत के दृष्टिकोण से भी उचित नहीं होगा. इसलिए भारत को बांग्लादेश के
आर्थिक संकट को जल्द से जल्द दूर करने हेतु यथासंभव कदम उठाने की आवश्यकता है.
बढ़िया विश्लेषण।सार्क देशों की अर्थव्यवस्थाओं के दबाव में आने का सीधा असर भारत पर पडेगा।हम व्यापारिक साझीदार भी है और पड़ोसी भी।यदि हम अपनी वृहतर भूमिकाओं को नही निभा सकेंगे तो निश्चित ही चीन के लिए विकल्प खुल जाएंगे,जो हमारे दूरगामी हितो के लिए उचित नही होगा।
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