11 अगस्त 2022

कुत्सित मानसिकता का शिकार होते पावन पर्व

यद्यपि उस दिन रक्षाबंधन नहीं था तथापि उनका बयान रक्षाबंधन को केंद्र में रखकर ही दिया गया था. ‘उनका इसीलिए लिख रहे हैं क्योंकि नाम लिखना एक तो हम ही नहीं चाह रहे, दूसरी बात वे स्त्री-विमर्श की स्थापित लेखिका घोषित हैं, तीसरी बात ये कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र से जुड़े होने के कारण या कहें कि हमारे परिवार से जुड़े होने के कारण वे हमारी परिजन ही हैं. इसी परिवारवाद के चलते उनको हम मामी सम्बोधन से बुलाया करते हैं. ये और बात है कि वे अक्सर हमसे नाराज रहती हैं और नाराज रहने का एक कारण उनकी बहुत सी बातों का, उनके बहुत से बयानों का विरोध हम सीधे-सीधे उनको फोन करके जता देते थे. यहाँ ‘थे इसलिए कि अब जबसे हमें जानकारी हुई कि वे हमसे नाराज रहने लगी हैं, तो हमने उनको फोन करना बंद कर दिया.


बहरहाल, अभी उन सारी बातों की चर्चा से इतर रक्षाबंधन पर उनके बयान और उसके बाद की स्थिति पर चर्चा. जैसा कि पहले ही लिखा कि उस दिन रक्षाबंधन नहीं था और न ही रक्षाबंधन पर्व का महीना. किसी कार्यक्रम में उनको मुख्य अतिथि बनाया गया तो उन्होंने अपनी आदत के अनुसार दो बयान दिए. बयान क्या ये कहें कि भाषण में दो बातें प्रमुखता से रखीं, जिनको मीडिया ने उनसे ज्यादा प्रमुखता से प्रकाशित किया. इन दो बातों में पहली बात थी रक्षाबंधन से सम्बंधित और दूसरी थी महिलाओं की साड़ी पहनने से लेकर. रक्षाबंधन के बारे में उनका विचार था कि साल में एक दिन भाई राखी बंधवा कर बहिनों को कुछ गिफ्ट इस कारण देते हैं ताकि बहिनें पैतृक संपत्ति, जायदाद में हिस्सा न माँगें. दूसरा बयान था साड़ी को लेकर कि किसी महिला को साड़ी पहनने पर विवश पुरुष करता है ताकि पुरुष उस महिला के शरीर को देख सके. यहाँ एक बात स्पष्ट कर दें कि उन स्थापित लेखिका के बयान ज्यों के त्यों ऐसे न रहे होंगे मगर भाव यही थे.




उनके कार्यक्रम के बाद इन्हीं बयानों को समाचार-पत्रों ने प्रमुखता से प्रकाशित किया. सिबह-सुबह पढ़ते ही दिमाग झनझना गया. समझ न आया कि एक महिला कैसे किसी दूसरी महिला के बारे में बुरा सोच सकती है, बोल सकती है, जबकि वह एक लेखिका है, संवेदनशील लेखिका मानी जाती है, स्त्री-विमर्श जैसे मुद्दे की साहित्यकार समझी जाती हैं. बुरा सोचने के बारे में आप लोग दिमाग न लगाइए, आगे पढ़िए, समझ आएगा कि बुरा कैसे.


उनका फोन नंबर उस समय हमारे मोबाइल में हुआ करता था, हमने तुरंत फोन लगाया. बिना ब्रश किये, बिना चाय पिए वैसे भी हमारा दिमाग भन्न रहता है, उस दिन और ज्यादा हुआ. उनका फोन कुछ घंटियों के इंतजार के बाद उठ गया, उन्हीं ने उठाया. मामी जी नमस्ते के साथ हमने अपनी बात शुरू की कि आज आपके दो विचार पेपर में पढ़े, कुछ जमे नहीं. अब चूँकि अगला तो बयान दे चुका ही था तो उसे नकारना नहीं था. उनके एक-दो बातों के कहने के साथ ही हमने अपने मुखारविंद को खोला और कहा कि मामी जी, आप साड़ी किस पुरुष के कहने पर पहनती हैं? उस समय हमारे देश की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल जी थीं, तो हमने उनका नाम लेकर पूछा कि उनको कौन सा पुरुष साड़ी पहनने को विवश करता है? इसी के साथ हमने फिर सवाल दागा कि सोनिया गांधी और जयललिता तो बराबर साड़ी में रहती हैं, इनको किस पुरुष का भय? ये लोग और आप क्यों नहीं जींस-टॉप पहनकर निकलती हैं?


कुछ इसी तरह की बात हमने उनके रक्षाबंधन वाले बयान पर कही. हमने कहा कि यदि एक राखी के बाँधने के बाद कुछ सौ-हजार रुपये मिलने के बाद यदि कोई बहिन संपत्ति पर, जायदाद पर हिस्सा माँगने से शांत रह जाती है तो इसका मतलब है कि महिलाएँ वाकई दिमाग से पैदल होती हैं. इसका अर्थ ये भी हुआ कि उन दिमागी पैदल महिलाओं के लिए आपने कुछ न किया बस अपना साहित्य बढ़ाती रहीं. इतना सुनते ही वे अपने स्वभाव के अनुसार भन्न हो गईं. हमसे जो कहा सो कहा, तुरंत अपनी मित्र और हमारी मामी जी को फोन किया और बोलीं कि इस पूरे देश में हमारे विचारों का, हमारे स्त्री-विमर्श का एकमात्र विरोधी चिंटू है. उसके बाद उन्होंने हालिया बातों को तथा पुरानी बातों को मामी जी से कहा. उस घटना के बाद एक बार वे हमें बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी में आयोजित एक सेमिनार में मिलीं तो हमने अभिवादन के बाद उनसे ऐसे ही पूछ लिया कि पहचाना? तो वे तपाक से बोलीं, कुमारेन्द्र. इस पर हमने कहा, लगता है कि अभी तक हमसे नाराज हैं? उनके सवालिया रूप पर हमने कहा, वैसे तो आप हमें चिंटू ही बुलाती हैं. इस पर वे बस मुस्कुरा कर रह गईं.


बाद में जानकारी हुई कि वे अब ख्यालों में भी हमारा नाम आने पर मुस्कुराती नहीं हैं तो हमने उनका नंबर अपनी लिस्ट से हटा दिया. वे प्रसन्न रहें क्योंकि उनको असल प्रसन्नता उनको अपनी ज़िन्दगी में नहीं मिली है. हमें तो हर रक्षाबंधन उनकी संकुचित सोच याद आ ही जाती है. बस इस बार याद आई तो इस बारे में लिख दिया. 




 

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