इन फोटो को देखकर आपको आश्चर्य नहीं हुआ होगा? होना भी नहीं चाहिए क्योंकि आज की कम्प्यूटर तकनीक वाले ज़माने में, फोटोशॉप वाले युग में ऐसी फोटो तो बहुत ही आम हैं. आये दिन इस तरह की
फोटो सोशल मीडिया के द्वारा हम सबके सामने आती हैं. ऐसे में इन दोनों फोटो को
देखकर आश्चर्य न होना आम बात है मगर यदि आपसे कहा जाये कि ये फोटो उस समय की हैं
जबकि कैमरा रील वाला हुआ करता था, किसी भी तरह की एडिटिंग के
लिए कम्प्यूटर का इस्तेमाल नहीं होता था, तो शायद आश्चर्य
लगे. ये दोनों फोटो सन 1998 की
हैं. उस समय कम्प्यूटर का चलन भले ही देश के बड़े-बड़े शहरों में होने लगा हो मगर
उरई जैसे कस्बेनुमा शहर में कल्पना ही थी. डिजिटल कैमरे भी उस समय उरई के किसी
स्टूडियो में दिखाई नहीं पड़ते थे. ऐसे में
इस तरह की फोटो का निकाला जाना किसी आश्चर्य से कम नहीं.
इस तरह की फोटो
को अक्सर पत्रिकाओं में देखा करते थे. मन बहुत होता था कि ऐसी फोटो हम भी खिंचवाएँ
मगर समझ नहीं आता था कि ऐसी फोटो कैसे खिंचे? जो मित्र हमारे ब्लॉग से पूर्व
परिचित हैं या फिर हमसे बहुत लम्बे समय से जुड़े हैं, वे सभी हमारे फोटोग्राफी के शौक के बारे में भली-भांति परिचित हैं. एक दिन
पुराने एल्बम देखते समय कुछ ब्लैक एंड व्हाइट फोटो ऐसी दिखीं, जिनमें एक फोटो में दो दृश्य दिख रहे थे. ऐसी कुछ
फोटो वे भी थीं जिनको हमने अपने क्लिक थर्ड कैमरे से निकाला था. उन फोटो को देखकर
दिमाग में एक ख्याल आया कि यदि एक ही निगेटिव पर दो शॉट ले लिए जाएँ तो शायद फिल्म
ओवरलैप कर जाने के कारण एक ही फोटो में दो अलग-अलग दृश्य दिखाई पड़ें?
चूँकि यह हमारे
दिमाग की कल्पना भर थी, इसे साकार करने के लिए कैमरा चाहिए था.
अपने एक मित्र के जिस कैमरे से हम उन दिनों फोटोग्राफी का शौक पूरा कर रहे थे, उस कैमरे में रील डलवा कर अपनी कल्पना को साकार
करने का काम किया. अब आश्चर्य करने की बारी हमारी थी, जैसा सोचा था वैसा हुआ भी. एक निगेटिव की जगह पर दो शॉट लेने पर ओवरलैप
जैसी स्थिति बनी और एक ही फोटो में दो दृश्य निगेटिव डेवलप करने के बाद सामने आ
गए. अब जैसा सोचा था फोटो निकलवाने के बारे में, उसे साकार रूप देने का मौका आ गया था. ये समझ आ चुका था कि एक निगेटिव से
ही एक फोटो में दो दृश्य आ सकते हैं. बस जो सेटिंग अपने कैमरे में करके ऐसा किया
था, उसे दिमाग में लेकर एक दिन पहुँच गए
अपने जीजा जी के स्टूडियो.
उरई में हमारे
जीजा जी का स्टूडियो बहुत पुराना है और उनको खुद फोटोग्राफी की बहुत अच्छी जानकारी
है. उनको अपनी कल्पना और उसे कैसे साकार किया है, इस बारे में बताया तो वे सहर्ष तैयार हो गए हमारी फोटो निकालने को. अब ये
हमें जानकारी नहीं कि उनको उस तकनीक का ज्ञान पहले से था या उन्होंने हमारा मन
रखने के लिए ऐसा दिखाया जैसे उनको पहली बार उस तकनीक की जानकारी हुई है. बहरहाल, जीजा जी ने स्टूडियो में आवश्यक लाइट इफेक्ट
बनाए और फिर उसी तकनीक से फोटो खींची जैसी कि हमने अपनाई थी. उन दो खींची हुई फोटो
का रिजल्ट आपके सामने है.
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असल में रील
वाले कैमरे से एक क्लिक करने के बाद निगेटिव को आगे बढ़ाना पड़ता था. कैमरे की
सेटिंग ऐसी हुआ करती थी कि यदि रील को आगे नहीं बढ़ाया जायेगा तो फिर अगली फोटो
नहीं खिंच सकती थी. ऐसे में वापस उसी निगेटिव पर क्लिक करने के लिए आवश्यक था कि
वही निगेटिव वापस शटर के सामने रहे. कैमरे के नीचे एक बटन लगा हुआ करता था, जिसे दबाकर पूरी रील को वापस उसके बॉक्स में बंद
कर दिया जाता था, जबकि पूरी फोटो खिंच जाया करती थीं. एक
शॉट में दो दृश्य निकालने के लिए इसी तकनीक का प्रयोग किया गया. कैमरे के उसी बटन
को दबाकर रील को उतना ही वापस किया गया, जितना वह एक फोटो
को क्लिक करके आगे बढ़ा था. वही निगेटिव वापस लेंस के सामने था. अब दोबारा हमारी
जगह बदली गई, क्लिक किया गया. ऐसे एक फोटो में हम दो
दिखाई देने लगे.
ये फोटो निश्चित ही आज की उस पीढ़ी के लिए आश्चर्य का विषय होगी जिन्होंने डिजिटल कैमरे ही देखे हैं, कम्प्यूटर में होती एडिटिंग देखी है, फोटोशॉप से बदलती फोटो देखी है. ये दोनों वे फोटो हैं जो कैमरे की तकनीक का लाभ उठाकर सीधे कैमरे में ही फोटोशॉप कर दी गईं.
फ़ोटो अच्छी है खींची कैसे गई,ये पढ़ने में अच्छा लगा।समझ लेकिन कुछ नहीं आया।
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