गोधरा काण्ड और उसकी प्रतिक्रिया में उपजे
गुजरात दंगे अपने होने के बाद से आज तक लगातार देश में हलचल बनाये हुए हैं. कभी
किसी कार्यक्रम के द्वारा, कभी किसी आयोजन के द्वारा, कभी किसी मीडिया सन्दर्भ द्वारा, कभी किसी राजनैतिक
दल के द्वारा, कभी किसी व्यक्ति के द्वारा किसी न किसी रूप
में इनसे सम्बंधित खबरें समाज में चलती ही रहती हैं. कुछ दिनों से इस विषय पर
ख़ामोशी बनी हुई थी, उसी ख़ामोशी में बिलकिस बानो केस के
आरोपियों का जेल से रिहा कर दिया जाना एक शोर बनकर उभरा. सन 2002 के गुजरात दंगों के
दौरान बिलकिस बानो के साथ हुई वीभत्स घटना के आरोपियों को लंबी कानूनी लड़ाई के बाद
सजा हुई थी. अदालत ने सन 2008 में बिलकिस बानो के गुनाहगारों को आजीवन कारावास की सजा
सुनाई थी. सजा सुनाए जाने के 14 साल बाद बिलकिस बानो केस के आरोपी अब खुली हवा में
साँस लेने के लिए छोड़ दिए गए हैं. आरोपियों की रिहाई पर दोनों पक्ष अपनी-अपनी
दलीलें दे रहे हैं. इस मुद्दे पर कि बिलकिस बानो के आरोपियों का जेल से रिहा किया
जाना सही है या गलत ये निर्धारित हो पाता, उससे पहले आरोपियों के स्वागत की खबरें
सामने आने लगीं.
यह स्थिति निश्चित ही अस्वीकार्य होनी चाहिए.
न्यायालय से घोषित सजायाफ्ता आरोपियों का रिहा होना भले ही एकबारगी नियमों-कानूनों
के अंतर्गत आता हो मगर दोषियों का इस तरह से महिमामंडित किया जाना किसी भी रूप में
उचित कदम नहीं है. इस घटना को उन आरोपियों के परिजनों के सन्दर्भ में देखते हुए
भले ही प्रथम दृष्टया स्वीकार कर लिया जाये मगर जिस तरह से रिहा आरोपियों के
स्वागत में कुछ संगठनों का, गैर-परिजनों का, राजनैतिक लोगों
का शामिल होना सामने आया है, वह कदापि स्वीकार्य नहीं. देखा
जाये तो यह स्थिति किसी एक बिलकिस बानो के आरोपियों के सन्दर्भ में ही सामने नहीं
आई है. ऐसी स्थितियाँ आये दिन किसी न किसी रूप में हम सबको देखने को मिलती हैं.
वर्तमान में राजनैतिक क्षेत्र में इस तरह लोगों
का आना बहुत तेजी से हो रहा है जो अनेक अपराधों में लिप्त हैं, अनेक गैर-कानूनी कारनामों में सजायाफ्ता हैं. राजनीति में, समाज में ऐसे लोगों को भी खूब आदर दिया जा रहा है जो बड़ी-बड़ी, मँहगी कारों के मालिक हैं; जो कई-कई बन्दूकधारी लोगों के साए में घूमते
दिखाई पड़ते हैं. समाज के आम-नागरिक भी ऐसे लोगों के बाहुबल के प्रति सहज भाव से
आकर्षित होने लगते हैं. यही आकर्षण उनको राजनीति में जनप्रतिनिधि के रूप में
प्रतिष्ठित करवाने लगता है. देखने में भी आता है कि ऐसे बाहुबली लोग समारोहों में, सार्वजनिक आयोजनों में बाकायदा न केवल प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं बल्कि
जबरदस्त तरीके से महिमामंडित भी किये जाते हैं. इनके कार्यों का, अपराधों का बखान भी ऐसे किया जाता है, जैसे बहुत
बड़े सामाजिक कार्य इनके द्वारा सम्पादित किये गए हों.
इधर देखने में आ रहा है कि जैसे-जैसे समाज विकास
के रास्ते तय कर रहा है, वैसे-वैसे राजनीति में नकारात्मकता बढती जा रही है. ऐसा
राजनीतिज्ञों के बयानों के, राजनैतिक दलों के कारनामों से,
समर्थकों की हरकतों से स्पष्ट दिखता है. शुचिता की बात करने वाले
नैतिक रूप से कमजोर दिखाई देते हैं, विकास की चर्चा करने
वाले विनाश के कारनामे रचते आ रहे हैं. ऐसा किसी एक पार्टी, किसी
एक व्यक्ति का हाल नहीं कमोबेश पूरा राजनैतिक परिदृश्य इसी तरह का बना दिख रहा है.
इस समूचे परिदृश्य में राजनैतिक दलों को स्वार्थ दिखाई देता है, अपनी सीट दिखाई देती है, सत्ता दिखाई देती है और यही
कारण है कि हर उस व्यक्ति को, संगठन को वरीयता दी जाने लगती
है, जिससे इनका स्वार्थ सिद्ध होता नजर आता है, भले ही वे लोग अपराधी ही क्यों न हों. ये स्थितियाँ न केवल विचारधाराओं
के मर जाने का द्योतक हैं बल्कि राष्ट्रहित, जनहित के प्रति
भी संज्ञाशून्य होने की परिचायक हैं. चंद वोटों की खातिर, सता
के लालच में इस तरह के कदम किसी भी रूप में उचित नहीं कहे जा सकते हैं. इस तरह की
राजनीति नकारात्मकता को जन्म दे रही है. इस तरह की राजनीति से सत्ता तो हासिल की
जा सकती है किन्तु राजनैतिक शुचिता नहीं लाई जा सकती है. इस तरह की राजनीति से दल
विशेष के प्रतिनिधियों की संख्या बढ़ाई जा सकती है किन्तु देशहित को नहीं बढ़ाया जा
सकता है. काश! हमारे राजनैतिक दल, हमारे राजनेता तथा इन सभी
के समर्थक इस सत्य को समझ पाते.
राजनीति में निरन्तर आ रही गिरावट का कारण
राजनीति नहीं वरन उसमें शामिल होने वाले लोग हैं. इनके कुकृत्य ही राजनीति को
कलंकित कर रहे हैं. राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण ने, राजनीति
के प्रति होते नकारात्मक प्रचार ने, राजनीति के प्रति अपनी
भावी पीढ़ी को प्रेरित न कर पाने ने राजनीति को दो कौड़ी का बना दिया है. उसके द्वारा
राजनीति में आती गिरावट पर चिंता व्यक्त की जाती है मगर उसके उसमें सुधार के लिए
भावी पीढ़ी को आगे नहीं किया जाता. आज बहुतायत में हालत ये है कि अच्छे लोग राजनीति
से, चुनावी मैदान से बाहर हैं और अपराधी किस्म के लोग
राजनीति में प्रवेश करते जा रहे हैं. राजनीति में आती जा रही गंदगी सिर्फ बातें
करने से, अनावश्यक बहस करने से दूर नहीं होने वाली. यदि इसे
साफ़ करना है, राजनीतिक गंदगी को मिटाना है तो राजनीति की
बातें नहीं वरन राजनीति करनी होगी. आज के लिए न सही, कल
के लिए सही, अपने लिए न सही, अपनी
भावी पीढ़ी के लिए लोगों को जागना होगा. अपराधियों के
महिमामंडन से बचना होगा. उनके कुकृत्यों के प्रचार-प्रसार से दूर रहना होगा. उनके
प्रभाव में आने से बचना होगा.
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