08 जून 2022

सड़क दुर्घटनाएँ और नागरिक कर्तव्य

आजकल सड़क दुर्घटनाओं के समाचार सुनाई देना आम बात हो गई है. इन दुर्घटनाओं में मारे जाने वालों में अधिकतम संख्या बच्चों की दिख रही है. ये चिंताजनक है मगर इसके बाद भी ऐसा लगता है जैसे समाज के बहुतायत लोग इस तरफ से मुँह मोड़े बैठे हैं. यदि आसपास के माहौल पर गौर करें तो बच्चों, किशोरों के साथ होने वाली दुर्घटनाओं के मूल में कारण तेज रफ़्तार वाहन का चलाया जाना है. बाइक के खुलेआम होते स्टंट, चार पहिया वाहन का अनियंत्रित रफ़्तार से दौड़ाया जाना, सुरक्षा मानकों का न मानना आदि ऐसी स्थितियाँ हैं जिनके कारण सड़क दुर्घटनाएँ आम हो चली हैं. ऐसी घटनाओं पर समाज क्षणिक प्रतिक्रिया देते हुए प्रशासन को दोषी बना देता है. 


किसी भी तरह की दुर्घटना पर शासन-प्रशासन को जिम्मेवार बताकर अपने आपको दोषमुक्त कर लेने की संकल्पना आज सहज रूप में दिखाई देने लगी है. क्या वाकई एक सामान्य नागरिक का दायित्व, उसका कर्तव्य इतना ही है? क्या वाकई समूची जिम्मेवारी सिर्फ और सिर्फ प्रशासन की है? हम नागरिकों की, माता-पिता की, घर-परिवार की कोई जिम्मेवारी नहीं है? क्या शैक्षणिक संस्थानों का एकमात्र उद्देश्य पाठ्यक्रम को समाप्त करवाना भर रह गया है? क्या शिक्षकों का, शैक्षणिक संस्थानों का दायित्व नहीं है कि वे अपने यहाँ पढ़ने वाले बच्चों को सजगता, सतर्कता, सुरक्षा के बारे में जागरूक करें?  क्या पारिवारिक स्तर पर बच्चों को संयमित रहने, अनुशासित रहने के बारे में नहीं बताया जा सकता है?




इस बात से शायद ही कोई इनकार करे कि उसके शहर में, उसके कस्बे में स्कूल यूनिफार्म पहने किशोर बाइक स्टंट करते किसी न किसी सड़क पर दिख जाते हैं. तेज गति से फर्राटा भरती बाइक, बिना हेलमेट के चलाई जाती बाइक, तीन-तीन लोगों का बाइक पर जमे होना किसी के लिए आपत्तिकारक नहीं रह गया है. यदि इस तरह की हरकतों को रोकने का काम किया जा रहा है तो सिर्फ प्रशासन द्वारा, आम नागरिक ऐसी टोकाटाकी से खुद को दूर ही रखे हैं. इसका कारण इन उद्दंड युवाओं, किशोरों द्वारा गाली-गलौज करना, हाथापाई करना है.


नियमानुसार स्कूल में पढ़ रहे बच्चों का ड्राइविंग लाइसेंस नहीं बन सकता है. ऐसे में विडम्बना यह है कि ऐसे बच्चों को न तो घर-परिवार में रोका जाता है और न ही सड़क पर यातायात पुलिस के द्वारा उनको प्रतिबंधित किया जाता है. यहाँ समझने वाली बात ये है कि स्कूल के बच्चे को बाइक किसी घर से ही मिली होगी. चाहे वो उसका अपना घर रहा हो अथवा उसके किसी दोस्त का. क्या उनके माता-पिता का दायित्व नहीं बनता है वे बच्चों को बाइक चलाने से रोकें. यहाँ दुर्घटना होने की स्थिति में प्रशासनिक लापरवाही से अधिक पारिवारिक लापरवाही का मामला सामने आता है. ऐसी कई-कई दुर्घटनाएँ नदियों, बाँधों, रेलवे ट्रेक, सड़क, आदि पर आये दिन दिखाई देती हैं.


प्रथम दृष्टया ऐसे मामलों में प्रशासन को दोषी ठहराया जा सकता है. किसी भी नागरिक की सुरक्षा का दायित्व प्रशासन का है. महज इतने भर से आम नागरिक अथवा परिवार भी अपने दायित्व से मुँह नहीं मोड़ सकता है. बच्चों को घर में, स्कूल में जागरूक किया जाना चाहिए. न केवल अपनी सुरक्षा वरन अन्य दूसरे नागरिकों की सुरक्षा के बारे में बताया जाना चाहिए. हमें समझना होगा कि प्रशासनिक तंत्र के पास नागरिकों की सुरक्षा के साथ-साथ नागरिक-विकास के, समाज-विकास के अनेकानेक कार्य होते हैं. एक सामान्य अवधारणा में नागरिकों की संख्या की तुलना में सरकारी मशीनरी, प्रशासनिक तंत्र बहुत-बहुत छोटा और अत्यंत सीमित है. उसकी पहुँच प्रत्येक क्षेत्र में बना पाना न तो व्यावहारिक है और न ही सरल है. ऐसे में आम नागरिक की भी जिम्मेवारी बनती है कि वो समाज में प्रशासनिक भूमिका निर्वहन के लिए खुद को तैयार करे. जीवन कितना अनमोल है इसकी अहमियत बच्चों को, नौजवानों को बताये जाने की आवश्यकता है.


ध्यान रखना चाहिए कि जिन बच्चों को देश की, समाज की आधारशिला रखनी है, उसका भविष्य बनना है उनका यूँ चले जाना किसी के हित में नहीं है. किसी भी बच्चे का, नौजवान का चले जाना जितना हानिकारक और दुखद एक परिवार के लिए है, उतना ही किसी समाज और देश के लिए भी है. यदि समाज का एक-एक नागरिक, माता-पिता, शिक्षक स्वयं को प्रशासन का अंग मानकर बच्चों को सचेत करने का कार्य करें, बच्चों को अनुशासित करने का दायित्व निभाएं, बच्चों को जीवन की महत्ता के बारे में समझाएँ तो आये दिन बच्चों की लापरवाही से होने वाली दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है. बच्चों को असमय मौत के आगोश में जाने से रोका जा सकता है. परिवार, समाज, देश की अमूल्य क्षति को रोका जा सकता है.  


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