काशी को केन्द्र और उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार
होने के बाद से भगवान शिव की नगरी नहीं स्वीकारा गया है बल्कि महादेव की इस नगरी का
जिक्र सनातन संस्कृति में अनादि काल से देखने को मिलता है. विगत कई वर्षों से जिस तरह
से रामलला की जन्मभूमि को लेकर इस देश में विवाद मचा रहा, वैसा
ही कुछ मसला काशी में ज्ञानवापी को लेकर बना रहा. अब जबकि विगत दिनों अदालत के आदेश
के बाद हुए सर्वे से मस्जिद में यह स्पष्ट रूप से देखने में आया कि वुजू करने की जगह
पर शिवलिंग स्थापित है. शिवलिंग जैसे पावन स्थल को, श्रद्धा के
केन्द्र को किसने वुजू करने के स्थान में परिवर्तित किया होगा, ये अलग चर्चा का विषय है मगर इस बात से शायद ही कोई इनकार कर सके कि ऐसा करने
के पीछे तात्कालिक आतातायियों में मन में, दिल में हिन्दुओं और
उनके आराध्यों के विरुद्ध नफरत का होना रहा होगा.
ऐसा समझने के लिए किसी राकेट साइंस की आवश्यकता नहीं
है. देश भर में सैकड़ों की संख्या में हिन्दुओं के, सनातनधर्मियों
के आस्था के केन्द्रों को, उनके आराध्यों को क्षत-विक्षत किया
गया. बहुतेरे मंदिरों, श्रद्धा केन्द्रों का ध्वंस करके उन आतातायियों
ने अपने मजहबी स्थलों का निर्माण किया. कालांतर में सनातनधर्मियों के सहिष्णु व्यवहार
और सरकारों के तुष्टिकरण नीति के कारण ऐसे स्थलों पर विवाद भले ही बना रहा हो मगर कब्ज़ा
मुस्लिम समाज ने बनाये रखा.
कहते हैं कि इतिहास खुद को दोहराने का काम करता है.
पूर्व में सरकारों के सामने, इतिहास लेखन करने वालों के सामने,
इतिहास पढ़ाने वालों के सामने, पुरातत्त्व विभाग
वालों के सामने, धार्मिक-मजहबी व्यक्तित्वों के सामने क्या स्थिति
रही होगी कि उनके द्वारा भी सत्य को सामने लाकर विवादों को समाप्त करने का प्रयास नहीं
किया गया. बहरहाल, अब जबकि अदालत के आदेश पर हुए सर्वे में ज्ञानवापी
में शिवलिंग मिला है. यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य ये है कि ऐसा होने के चिन्ह मात्र
नहीं मिले हैं, कोई ध्वंस अवशेष नहीं मिले हैं बल्कि स्पष्ट दृष्टिगोचर
शिवलिंग मिला है. ऐसी स्थिति के बाद किसी तरह के विवाद की कोई गुंजाइश नहीं बचती थी
मगर इसके बाद भी मुस्लिम पक्ष की तरफ से ऐसा किया गया.
एक पल को ये स्वीकार लिया जाये कि मुस्लिम समाज बहुत
लम्बे समय से उस स्थान पर अपने मजहबी कृत्य को अंजाम देता आ रहा था, तो इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि वर्तमान में जो प्रमाण मिला है उसे सिरे से
नकार दिया जाये. इस स्थान पर सन 1993 तक नियमित रूप से श्रृंगार
गौरी की पूजा होती थी, बाद में सन 1996-97 में हिन्दू और मुस्लिम, दोनों धर्मों के त्योहार एक
ही दिन पड़ गए थे. रामजन्मभूमि मामले के चलते पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा की दृष्टि से
यहाँ केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की एक टुकड़ी की तैनाती कर दी. बाद में यही टुकड़ी यहाँ
स्थायी हो गई. समय के गुजरने के साथ श्रृंगार गौरी जाने वाले रास्ते को भी पुलिस-प्रशासन
ने बंद कर दिया. ऐसा होने के बाद मामला अदालत पहुँचा तो अदालत ने वासंतिक नवरात्रि
के चौथे दिन दर्शन-पूजन करने का आदेश दिया. अदालत के आदेश के बाद श्रृंगार गौरी की
साल में एक दिन वासंतिक नवरात्रि की चतुर्थी को दर्शन-पूजन की अनुमति प्रशासन ने दी.
इसके बाद गत वर्ष 2021 में पाँच महिलाओं ने श्रृंगार गौरी की
नियमित पूजा-अर्चना की माँग को लेकर वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन रवि कुमार दिवाकर
की अदालत में याचिका दायर की. इन महिलाओं ने अदालत से ये माँग भी की थी कि नंदी,
गणेश के साथ अन्य देवताओं की स्थिति जानने के लिए एक कमीशन बनाया जाए.
सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत ने इसी के बाद एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त किया और कमीशन
की कार्यवाही, वीडियोग्राफी की कार्यवाही पूरी कर रिपोर्ट देने
के लिए कहा.
रिपोर्ट के बाद जब सच्चाई सामने आ ही गई थी तो मुस्लिम
पक्ष को एक कदम आगे आकर उस स्थल पर पूर्व की भांति हिन्दुओं को पूजा-दर्शन करने की
पहल की जानी चाहिए थी. ऐसा तो हुआ नहीं बल्कि इसके उलट जाकर शिवलिंग को फव्वारा बताये
जाने की, औरंगजेब को दयालु बताये जाने की, तमाम मंदिरों के नीचे मस्जिद होने की अनर्गल बयानबाजियाँ होने लगीं. देश में
एक तरफ सरकारें, अनेक बुद्धिजीवी, संस्थाएँ
हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए जी-जान से लगी रहती हैं. बात-बात पर गंगा-जमुनी संस्कृति
का उदाहरण दिया जाता है. बहुत से मुस्लिम व्यक्तित्वों को देश में भय लगने लगता है.
असहिष्णुता बढ़ती दिखाई देने लगती है मगर जब भी मुस्लिम समाज के सामने इस तरह का कोई
भी अवसर आता है जबकि वे सौहार्द्र, समन्वय का उदाहरण दे सकते
हैं, उसी समय उनकी तरफ से अनर्गल बयान दिए जाने शुरू कर दिए जाते
हैं.
इसे लोग भले ही सार्वजनिक रूप से न स्वीकारें मगर
सत्य यही है कि विदेशी मुस्लिम आक्रांताओं ने देश में हिन्दू धार्मिक स्थलों,
सनातनधर्मी आस्था केन्द्रों को नष्ट करके उन पर अपने मजहब की इमारतों
का निर्माण किया है. अब जबकि ज्ञानवापी में स्पष्ट रूप से शिवलिंग मिला है,
कुतुबमीनार और ताजमहल की चर्चा जनमानस के बीच टहलने लगी है, तब मुस्लिम समुदाय को अपने सहिष्णु होने का उदाहरण देना चाहिए. अभी तक किसी
भी मुस्लिम संगठन ने खुलकर ज्ञानवापी में स्थापित शिवलिंग पर कोई सकारात्मक बयान नहीं
दिया है. किसी मुस्लिम बुद्धिजीवी, किसी मुस्लिम साहित्यकार ने,
किसी मुस्लिम फ़िल्मी कलाकार ने अथवा किसी मुस्लिम राजनीतिज्ञ ने हिन्दुओं
के पक्ष में कोई बयान या कोई अपील नहीं की है. एक मुस्लिम राजनीतिक व्यक्ति शिवलिंग
के मिलने के दिन से बयान देने में लगे हैं, तो वे भी भड़काऊ हैं,
मुस्लिम समाज को बरगलाने वाले हैं.
ज्ञानवापी पर जिस तरह से गैर-मुस्लिम नागरिकों द्वारा
समर्थन आ रहा है, उसी तरह से देश के समस्त मुस्लिम नागरिकों को
भी संगठित होकर इसका समर्थन करना चाहिए. यदि इसके बाद भी मुस्लिम नेताओं, मुस्लिम मजहबी संगठनों, मुस्लिम बुद्धिजीवियों द्वारा
समर्थन नहीं किया गया तो न केवल आपसी समन्वय, सौहार्द्र कमजोर
होने की आशंका है बल्कि अन्य स्थलों पर विवाद बढ़ना भी स्वाभाविक है.
सटीक 👌👌👌👌 लेकिन मुस्लिम समुदाय से ऐसी आशा करना व्यर्थ ही क्योंकि उनको तुष्टिकरण की आदत हो गयी है ।
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