इस समय बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी की वार्षिक परीक्षाएँ संचालित हो रही हैं. इन्हीं परीक्षाओं के
साथ-साथ सेमेस्टर परीक्षाएँ भी हो रही हैं. विश्वविद्यालय के अनेक महाविद्यालयों
के लिए यह पहला अवसर है जबकि उनको सेमेस्टर परीक्षाएँ आयोजित करनी पड़ रही हैं.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के
लागू किये जाने के कारण से स्नातक प्रथम वर्ष की परीक्षाओं का आयोजन सेमेस्टर रूप
में होना है. प्रदेश के, देश के अन्य भागों में विद्यार्थियों की
क्या स्थिति होगी, ये तो वहाँ के लोग अच्छे से बता सकते
हैं किन्तु जिस तरह से बुन्देलखण्ड क्षेत्र में विद्यार्थी सेमेस्टर परीक्षाओं को
लेकर अनभिज्ञ हैं, उससे कोई आश्चर्य नहीं.
राष्ट्रीय
शिक्षा नीति में मूल विषयों के साथ-साथ तीन माइनर विषयों को शामिल करना
विद्यार्थियों के लिए भी और महाविद्यालय प्रशासन के लिए एक तरह की परेशानी का कारण
बनता दिख रहा है. जल्दी-जल्दी में राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू तो कर दिया गया
मगर उन महाविद्यालयों का ध्यान नहीं रखा गया जहाँ संकाय की कमी है, प्राध्यापकों की कमी है, मूलभूत संसाधनों की कमी है. इसमें कहीं कोई दोराय नहीं कि वर्तमान शिक्षा
नीति में विषयों को लेकर, विद्यार्थियों के भविष्य को लेकर एक
सकारात्मक सोच प्रदर्शित की गई है मगर इसके फलीभूत होने में अभी समय लगेगा.
बुन्देलखण्ड
विश्वविद्यालय के अंतर्गत बहुतायत महाविद्यालयों में संकायों की कमी है. किसी-किसी
महाविद्यालय में अकेले कला संकाय है, ऐसे में यहाँ शिक्षा नीति के माइनर विषयों को
लेकर समस्या हो सकती है. कला, विज्ञान, वाणिज्य को लेकर
जिस तरह की योजना शिक्षा नीति में रखी गई है वह निश्चित ही प्रशंसनीय है मगर
महाविद्यालयों में अभी स्थिति ऐसी नहीं है कि इसका अध्यापन कार्य पूरी तरह से
करवाया जा सके. इसके साथ-साथ कौशल विकास कोर्स (Vocational/Skill
Development Course) सह-विषय कोर्स
(Co-Curricular Course) को भी नई शिक्षा नीति में शामिल किया गया
है. इन विषयों को पढ़ाये जाने की कोई व्यवस्था महाविद्यालयों में नहीं है. ऐसे में
समस्या न केवल विद्यार्थियों के सामने है बल्कि प्राध्यापकों के सामने भी है.
समस्या यह भी है कि केवल सेमेस्टर परीक्षाओं को करवा लेना ही एकमात्र काम नहीं
बल्कि महाविद्यालय को मिड-टर्म परीक्षाओं को सम्पन्न करवाना होगा. ये परीक्षाएँ
सेमेस्टर परीक्षाओं के पहले सम्पन्न करवानी होंगी. ऐसे में ये बहुत बड़ा सवाल है कि
मिड-टर्म परीक्षाओं के लिए प्रश्न-पत्र कौन बनाएगा, उनका
मूल्यांकन कौन करेगा?
इन समस्याओं के कारण उत्पन्न होने वाली परेशानी
परीक्षाओं में देखने को मिल रही है. महाविद्यालयों को समवेत रूप में अपनी इन
परेशानियों से विश्वविद्यालयों को, प्रदेश सरकार को अवगत
कराना चाहिए. इनके सम्बन्ध में एक स्पष्ट नीति सरकार की तरह से बनाई जानी चाहिए
ताकि उस पर एकसमान रूप से अमल किया जा सके. यहाँ ध्यान रखना होगा कि राष्ट्रीय
शिक्षा नीति 2020 को देश के
भविष्य के लिए बनाया गया है. ऐसे में यदि यह भविष्य ही समस्या के साथ आगे बढ़ेगा तो
देश का भविष्य कैसे उज्ज्वल होगा?
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-04-2022) को चर्चा मंच "अब गर्मी पर चढ़ी जवानी" (चर्चा अंक 4413) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' --
सुन्दर एवं सामयिक विषय. बहुत से महाविद्यालय केवल इनरोलमेंट सेंटर मात्र हैँ. कुछ में अयोग्य शिक्षकों से शिक्षण कार्य भी.
जवाब देंहटाएंसामयिक चिन्तन
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