समाज के लिए सेक्स हमेशा से एक ऐसा विषय रहा है
जिस पर गम्भीर चर्चा से ज्यादा विवादपूर्ण चर्चा ही हुई है. इस विवाद के पीछे का
कारण मूल रूप से स्त्री-पुरुष के बीच एक विभेदात्मक रेखा का खिंचा हुआ होना है. इधर
देखने में आ रहा है कि इक्कीसवीं सदी के पूर्व से ही समाज में आधुनिकता के नाम पर
ऐसे विषयों को उठाया जाने लगा था जो किसी रूप में भारतीय समाज में गोपनीय माने
जाते रहे. वैश्वीकरण के दौर से बाहर निकल कर समाज ने जैसे ही इक्कीसवीं सदी में
अपना कदम रखा, वैसे ही आधुनिकता की परिभाषा बदल गई. कपड़ों का सलीका बदल गया, रहन-सहन का तरीका बदल गया. बदलाव के इस दौर ने
पति-पत्नी के बीच भी अपनी पहुँच बनाकर उनके संबंधों को बजाय सुधारने के बिगाड़ने का
ही काम किया.
चर्चाओं का दौर
लगातार बना हुआ है और देखना है कि समाज की यह गति कहाँ जाकर रुकती है. बस ध्यान रह
रखना होगा कि यह गति सबको नग्नावस्था में लाकर न छोड़े.
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